यह सवाल कई बार पूछा जाता है कि मनुष्य का विकास थम गया है या अभी जारी है। सवाल का जवाब इस बात पर निर्भर है कि विकास से आशय क्या है। हाल ही में न्यूयॉर्क के कोलंबिया विश्वविद्यालयके जोसेफ पिक्रेल और उनके सहयोगियों ने पूरे 2 लाख मानव जीनोम्स का विश्लेषण करके बताया है कि मानव आज भी विकासमान है।
पिक्रेल और उनके साथियों का मत है कि जीव वैज्ञानिक दृष्टि से किसी भी आबादी को विकासमान कहा जा सकता है यदि उसमें विभिन्न जीन्स का वितरण समय के साथ बदले। पिक्रेल और उनके साथियों ने दो जीन्स के वितरण पर ध्यान केंद्रित किया है। एक जीन CHRNA3 है जो व्यक्तियों को धूम्रपान करने को उकसाता है। इस जीन के कुछ रूप ऐसे हैं जो धूम्रपान करने वाले व्यक्ति को ज़्यादा धूम्रपान करने की ओर धकेलते हैं। प्लॉस बायोलॉजी में प्रकाशित शोध पत्र में पिक्रेल की टीम ने बताया है कि दो पीढ़ियों के अंतराल में इस जीन की उपस्थिति में 1 प्रतिशत की कमी देखी गई है।
दरअसल, पिक्रेल की टीम ने 80 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के जीन वितरण की तुलना 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों से की थी। अलबत्ता, टीम कोई पक्का दावा नहीं कर पा रही है क्योंकि उसके पास 40 से अधिक उम्र के लोगों के जीनोम आंकड़े नहीं थे।
इसी प्रकार से एक अन्य जीन APOE4 है जिसका एक रूप अल्ज़ाइमर के अलावा ह्मदय-रक्त वाहिनी रोगों का खतरा बढ़ाता है। टीम के विश्लेषण के मुताबिक दो पीढ़ियों के अंतराल में इस जीन की आवृत्ति भी घटी है।
टीम के अनुसार इस जीन की आवृत्ति घटने का एक कारण यह हो सकता है कि आजकल लोग बढ़ी हुई उम्र (40-50 की उम्र) में बच्चे पैदा करने लगे हैं। यह वह उम्र है जब जीन के इस रूप वाले लोगों की मृत्यु की संभावना ज़्यादा होती है। मतलब है कि इस जीन-रूप से युक्त व्यक्तियों की संतानोत्पत्ति से पूर्व मृत्यु की आशंका बढ़ गई।
बहरहाल, ज़रूरी नहीं कि ये रुझान स्थायी हों। जंतुओं के अध्ययन से बार-बार पता चला है कि विकास लगातार एक दिशा में नहीं चलता। परिस्थितियां बदल जाने पर दिशा भी बदल सकती है। जैसे यदि धूम्रपान कम हो गया तो धूम्रपान सम्बंधी मृत्यु कम हो जाएंगी और तब इस जीन पर दबाव कम हो जाएगा। (स्रोत फीचर्स)