हाल ही में नेदरलैण्ड के नाभिकीय अनुसंधान संस्थान ने एक प्रयोग शुरू किया है जिसमें इस बात की जांच की जाएगी कि क्या थोरियम का उपयोग करके परमाणु बिजली बनाना ज़्यादा सुरक्षित होगा।
आम तौर पर परमाणु बिजली घरों में युरेनियम के एक समस्थानिक (U-235) का उपयोग किया जाता है। इसके विखंडन की प्रक्रिया में ऊर्जा मुक्त होती है जिसका इस्तेमाल पानी को गर्म करके टर्बाइन चलाने में किया जाता है। किंतु U-235 के विखंडन के परिणामस्वरूप जो पदार्थ बनते हैं वे स्वयं रेडियोसक्रिय होते हैं और उन्हें ठिकाने लगाना एक बड़ी समस्या होती है। दरअसल परमाणु बिजली के खिलाफ यह एक महत्वपूर्ण तर्क रहा है।
पारंपरिक रूप से परमाणु बिजली परमाणु हथियारों की टेक्नॉलॉजी से जुड़ी रही है इसलिए युरेनियम और प्लूटोनियम पर ही ज़्यादा अनुसंधान हुआ है और थोरियम की उपेक्षा हुई है। सिर्फ कल्पक्कम में थोरियम आधारित परीक्षण रिएक्टर के निर्माण का काम चल रहा है, अन्यथा थोरियम रिएक्टर पर किसी ने ध्यान नहीं दिया है।
परमाणु बिजली की दृष्टि से देखें तो थोरियम कहीं ज़्यादा कार्यक्षम और सुरक्षित लगता है। नेदरलैण्ड के शोध संस्थान में साल्ट इरेडिएशन प्रयोग पर काम चल रहा है। इसमें सबसे पहले थोरियम र्इंधन को पिघलाया जाएगा और फिर इस पर न्यूट्रॉन्स की बौछार की जाएगी। न्यूट्रॉन की टक्कर से थोरियम छ-233 में तबदील हो जाएगा जो आगे एक श्रृंखला क्रिया को जारी रखेगा। इस प्रक्रिया में तापमान काफी अधिक हो जाएगा। इसकी मदद से टर्बाइन चलाकर बिजली बनाई जा सकेगी।
इसके बाद जांच का विषय यह होगा कि क्या हमारे पास ऐसी मिश्र धातुएं और अन्य पदार्थ हैं जो इतने अधिक तापमान को सहन कर सकें। और अंत में जांच की जाएगी कि क्या थोरियम रिएक्टर से उत्पन्न कचरे को आसानी से संभाला जा सकेगा।
ये सारे परीक्षण करने के बाद ही कहा जा सकेगा कि क्या थोरियम आधारित परमाणु बिजली घर व्यावहारिक रूप से उपयोगी होंगे। (स्रोत फीचर्स)