मालवा महिला कबीर यात्रा (2-5 मार्च 2023)
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धरती की बानी,हेलियों की ज़ुबानी
मालवा महिला कबीर यात्रा (2-5 मार्च 2023)
एकलव्य के 40 साल और होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम (होविशिका) के 50 साल पूरे होने के मौक़े पर होविशिका व्याख्यान, होशंगाबाद शिक्षा सरिता और विज्ञान प्रसारक अरविंद गुप्ता के व्याख्यान के बाद इस शृंखला की अगली कड़ी थी धरती की बानी-हेलियों की ज़ुबानी, जिसका आयोजन 2 से 5 मार्च तक किया गया था।
समाज-देश-काल और उसकी विसंगतियों पर गहरी समीक्षाई दृष्टि डालने वाले कबीर का न सिर्फ़ साहित्य में बल्कि लोक में एक अलग मक़ाम है। उनके दोहों और उलटबासियों में न सिर्फ़ भक्ति के स्वर हैं बल्कि जाति-धर्म के बनावटी विभाजनों पर तीखा व्यंग्य भी है। मध्य प्रदेश के मालवा इलाक़े में कबीर की बानी वहाँ के लोक गायकों की ज़बान में न सिर्फ़ ज़िन्दा है बल्कि नई ऊर्जा से आगे की दिशा भी खोज रही है। वहाँ कबीर गायकों की मण्डलियाँ गाँव-कस्बों में घूम-घूम कर कबीर की बानी को लोगों तक पहुँचाती हैं। पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही इस परिपाटी में आमतौर पर पुरुष गायक ही मुख्य भूमिका में रहे हैं। महिला कलाकारों को जगह मुश्किल से मिलती है और वह भी हाशिए पर। रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से लेकर गायन सभाओं तक में ये महिला कलाकार तमाम संघर्षों से जूझते हुए अपनी कला की जगह बनाने की जद्दोजहद कर रही हैं। ऐसे में इस बात की ज़रूरत बार-बार महसूस की जाती रही है कि महिला गायकों को अपनी कला की प्रस्तुति का एक मुकम्मल मंच मिले। इसी को ध्यान में रखकर एकलव्य ने इस यात्रा का विचार रखा।
गौरतलब है कि मालवा इलाक़े में कबीर गायकों के साथ एकलव्य का जुड़ाव 1990 के दशक से ही रहा है। ‘कबीर भजन एवं विचार मंच’ (1991-1998), ‘कबीर इन स्कूल्स’ (2008-2009) और इसके बाद 2011 ‘मालवा में कबीर की वाचिक परम्पराओं के सुदृढ़ीकरण’ जैसे प्रयासों के ज़रिए एकलव्य ने कबीर गायन की लोक परम्परा में विस्तार और नवाचार की कोशिशें लगातार की हैं। इसके बाद सृष्टि स्कूल ऑफ डिज़ाइन की कबीर परियोजना से जुड़कर एकलव्य ने कबीर गायन में महिला कलाकारों की भागीदारी को बढ़ाने के प्रयास किए। इसमें स्कूलों में कबीर के साहित्य के माध्यम से जाति व जेंडर पर आलोचनात्मक नज़रिए की बुनियाद रखने की कोशिशें भी शामिल रहीं।
इसी क्रम में एक ज़रूरी नवाचार करते हुए पहली बार महिला कबीर गायकों की यात्रा का आयोजन किया गया था। चार दिन की यह यात्रा 2 मार्च को लुनियाखेड़ी से शुरू होकर टोंक खुर्द और देवास होते हुए 5 मार्च को इंदौर में समाप्त हुई। इस यात्रा में कबीर बानी के विविध स्वरों और रूपों से मुख़ातिब होने का मौक़ा मिला। ग़ौरतलब तो यह था कि यह यात्रा ज़्यादातर ग्रामीण इलाक़ों से होकर गुज़री। रहने और खाने की व्यवस्थाएँ भी वैसी ही थीं जैसी साधारण ग्रामीण समाज में उपलब्ध होती हैं।
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