हाल ही में विभिन्न देशों में किए गए एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि 10 वर्ष की उम्र आते-आते बच्चों में लड़का-लड़की होने की धारणा बन चुकी होती है। यानी वे जेंडर-आधारित स्थापित छवियों में रमने लगते हैं। जिन 15 देशों में यह अध्ययन किया गया उनमें नाइजीरिया, चीन, यूएस व दक्षिण अफ्रीका सहित उच्च, मध्य व निम्न आमदनी वाले देश शामिल थे।
अध्ययन में 15 देशों के 10-14 वर्ष के 450 बच्चों और प्रत्येक के एक पालक या अभिभावक से बातचीत की गई। जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालयके रॉबर्ट ब्लम के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन का प्रमुख निष्कर्ष है कि तमाम संस्कृतियों में प्रारंभिक किशोरावस्था से ही बच्चों को जेंडर की बेड़ियों में जकड़ दिया जाता है। ब्लम के मुताबिक इसका बच्चों के, खास तौर से लड़कियों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव होता है।
जर्नल ऑफ एडोलेसेंट हेल्थ में प्रकाशित इस अध्ययन का एक निष्कर्ष यह है कि प्रारंभिक किशोरावस्था में ही लड़के-लड़कियों को अलग-अलग रखने की कोशिश की जाती है। यह स्थिति विशेष रूप से निम्न व मध्य आमदनी वाले देशों में देखी गई। कई संस्कृतियों में माता-पिता प्यूबर्टी के समय बच्चों को विपरीत लिंग के बच्चों से दूर रखने की कोशिश करने लगते हैं।
परिणाम यह होता है कि इस उम्र में लड़कियों की दुनिया सिकुड़ने लगती है और घर के इर्द-गिर्द सीमित होने लगती है जबकि लड़कों की दुनिया फैलती है और उन्हें निगरानी से मुक्त होकर दुनिया को जांचने-परखने की छूट मिलती है। और यह बात अत्यंत उदारवादी समाजों में भी देखी गई।
यह सही है कि कुछ देशों में लड़कों को यथास्थिति को चुनौती देने वाली करतूतों की सज़ा मिलती है। जैसे दिल्ली के एक लड़के ने बताया कि यदि वह लड़कियों के मेलजोल रखता है तो माता-पिता पिटाई करते हैं। आम तौर पर लड़कों को सिखाया जाता है कि यदि वे लड़कियों के पास गए तो वे अपनी लैंगिक भावनाओं पर काबू नहीं रख पाएंगे। कुछ लड़कों ने साक्षात्कार के दौरान बताया कि लड़के लड़कियों के साथ दुव्र्यवहार इन्हीं भावनाओं की वजह से करते हैं और मानते हैं कि यह प्राकृतिक है।
वैसे अध्ययन में कुछ सकारात्मक रुझान भी देखे गए। जैसे शंघाई में व अन्यत्र लड़कियों को शिक्षा व कैरियर की दृष्टि से ज़्यादा प्रोत्साहन मिलने लगा है।
इस अध्ययन में सबसे बड़ी बात यह सामने आई है कि इस तरह से जेंडर छवियों में बच्चों को कैद करना लगभग सभी संस्कृतियों में होता है और काफी कम उम्र में शुरु हो जाता है। शोधकर्ताओं का मत है कि इसे देखते हुए जेंडर सम्बंधी हस्तक्षेप भी किशोरावस्था से काफी पहले करने की ज़रूरत है। (स्रोत फीचर्स)