दुनिया भर की झीलों-तालाबों-नदियों में से पानी भाप बनकर उड़ता रहता है। इस वाष्पीकरण के लिए ऊर्जा सूर्य से मिलती है। वैज्ञानिकों का विचार है कि यह वाष्पित पानी ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत साबित हो सकता है, बशर्ते कि इसके दोहन के लिए टेक्नॉलॉजी विकसित हो पाए।
कोलंबिया विश्वविद्यालयके ओज़गुर साहिन और उनके साथियों का कहना है कि अकेले यूएस की वर्तमान झीलों और बांधों से जो पानी वाष्पीकृत होता है उससे हर साल तकरीबन 30 लाख मेगावॉट बिजली का उत्पादन किया जा सकता है।
इन जलराशियों से वाष्पित होने वाले पानी का दोहन ऊर्जा उत्पादन हेतु करने के लिए इनकी सतह पर वाष्पन इंजिन लगाने होंगे। इससे एक फायदा तो यह होगा कि भाप बनकर उड़ जाने वाले पानी को बचाया जा सकेगा और बिजली का उत्पादन भी किया जा सकेगा। मगर वाष्पन इंजिन अभी बनाया नहीं गया है हालांकि साहिन की टीम ने इसके कुछ प्रारंभिक मॉडल बनाए हैं।
सारे प्रारंभिक मॉडल ऐसे पदार्थों पर आधारित है जो सूखने पर सिकुड़ते हैं। जैसे एक पट्टी है जिस पर बैक्टीरिया के बीजाणु का लेप चढ़ा है। सूखने पर ये बीजाणु एंठ जाते हैं जिसकी वजह से पट्टी सिकुड़ जाती है। नमी मिलने पर पट्टी फिर से फैलती है। इस तरह फैलती-सिकुड़ती पट्टी किसी ‘मांसपेशी’ की तरह काम करती है। ये काफी ताकत से दबाव डाल सकती हैं और खींच सकती हैं।
इंजिन के एक संस्करण में पट्टियों को पानी की सतह के ठीक ऊपर रखा जाता है। जब उसके ऊपर लगे शटर को बंद कर दिया जाता है तो वहां नमी इकट्ठा होने लगती है और पट्टी फैल जाती है। पट्टी फैलने की वजह से शटर खुल जाता है। इस तरह के फैलने सिकुड़ने का उपयोग बिजली बनाने में किया जा सकता है।
सभी सहमत हैं कि नेचर कम्यूनिकेशन्स में प्रकाशित पर्चे का यह विचार सिद्धांत के स्तर पर तो बहुत उम्दा है मगर देखना यह है कि क्या इसे व्यावहारिक धरातल पर उतारा जा सकेगा। (स्रोत फीचर्स)