चूहों पर किए गए प्रयोगों में ल्यूकेमिया (रक्त कैंसर) की प्रगति को रोकने में विटामिन सी कारगर पाया गया है। अब वैज्ञानिक इसका परीक्षण इंसानों पर करने की योजना बना रहे हैं।
सेल नामक शोध पत्रिका में न्यूयॉर्क विश्वविद्यालयकी लुइसा सिमिनो ने बताया है कि एक प्रोटीन के अभाव के चलते रक्त की स्टेम कोशिकाओं में ल्यूकेमिया-पूर्व की स्थिति बन जाती है। यह प्रोटीन दरअसल एक एंज़ाइम (TET2) है जिसकी कमी होने से ल्यूकेमिया की स्थिति निर्मित होने लगती है। ऐसे मरीज़ों में या तो इस एंज़ाइम को बनाने वाला जीन उपस्थित नहीं होता, या फिर इसकी सक्रियता बहुत कम होती है।
TET2 नामक यह एंज़ाइम कोशिकाओं में डीमेथिलेशन का काम करता है। आम तौर पर कोशिका में मौजूद आनुवंशिक पदार्थ डीएनए पर मेथिल समूह जुड़ते रहते हैं। इस प्रक्रिया को मेथिलेशन कहते हैं। यदि इन मेथिल समूहों की लगातार सफाई न की जाए तो कई गड़बड़ियां पैदा हो सकती हैं। TET2 एंज़ाइम इन्हीं मेथिल समूहों की सफाई का काम करता है। ल्यूकेमिया के मरीज़ों में अति-मेथिलीकृत डीएनए की उपस्थिति देखी गई है। इसी के फलस्वरूप अस्थि मज्जा में मौजूद स्टेम कोशिकाएं विकास नहीं कर पातीं।
शोधकर्ताओं ने यह समझने की कोशिश की कि मेथिलीकरण की इस प्रक्रिया को कैसे आगे बढ़ने से रोका जाए और डीमेथिलीकरण को कैसे बढ़ावा दिया जाए। इसके लिए शोधकर्ताओं ने कुछ चूहों की स्टेम कोशिकाओं में TET2 जीन को ठप कर दिया और फिर इन चूहों की कोशिकाओं को रोगरहित चूहों में आरोपित किया। इन सामान्य चूहों में भी ल्यूकेमिया के लक्षण उभरने लगे। मगर जब इन चूहों में TET2 जीन की अभिव्यक्ति को बहाल कर दिया गया तो ल्यूकेमिया की प्रगति रुक गई।
यह भी देखा गया कि यदि TET2 जीन की गतिविधि को पूरी तरह समाप्त न किया जाए तो उनमें सम्बंधित एंज़ाइम पूरी तरह खत्म नहीं होता और ल्यूकेमिया उतनी तेज़ी से आगे नहीं बढ़ता। इस जीन की गतिविधि के नियंत्रण के लिए शोधकर्ताओं ने एक और प्रयोग किया। सामान्य चूहों को TET2 रहित कोशिकाएं देने के बाद उन्हें विटामिन सी का इंजेक्शन दिया गया। विटामिन सी के इस इंजेक्शन ने भी TET2 की सक्रियता को बहाल करने में मदद की।
शोधकर्ताओं का कहना है कि अभी वे पक्की तौर पर तो नहीं कह सकते कि विटामिन सी की क्या भूमिका है मगर इसके आधार पर आगे जांच तो की ही जा सकती है। (स्रोत फीचर्स)