मेक्सिको की अंधेरी गुफाओं में कुछ मछलियां रहती हैं। ये इसी प्राकृतवास में लाखों सालों से रहती आई हैं। यहां प्रकाश की अनुपस्थिति में रहते-रहते इनकी आंखें नदारद हो चुकी हैं और त्वचा के रंजक भी गायब हो गए हैं। अब इनका अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं ने पाया है कि इनमें एक और विचित्र गुण पाया जाता है।
अंधेरी गुफाओं का प्राकृतवास कई मायनों में अनूठा है। जहां नदियों में पर्याप्त भोजन उपलब्ध रहता है वहीं इन गुफाओं में भोजन कम मिलता है और वह भी समय-समय पर बाहर के पानी के साथ बहकर यहां पहुंचता है। रोशनी नहीं होने के कारण यहां वनस्पति नहीं होती, और न ही प्रकाश संश्लेषण के द्वारा भोजन निर्माण होता है।
भोजन के अभाव वाले इस परिवेश में ज़िंदा रहने के लिए इन मछलियों में कुछ अजीब गुण पैदा हुए हैं। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के जेनेटिक वैज्ञानिक क्लिफ टेबिन ने इस संदर्भ में एक गुफा मछली एस्टिनेक्स मेक्सिकेनस (Astyanax mexicanus) का अध्ययन किया। यह देखा गया कि इनमें रक्त शर्करा के स्तर में बहुत उतार-चढ़ाव होते हैं। स्थिति ऐसी होती है कि मनुष्यों में हो तो डायबिटीज़ कहलाएगी जहां शरीर के अंग काम करना बंद कर देंगे, तंत्रिकाओं को क्षति पहुंचने लगेगी और स्ट्रोक व ह्मदय रोगों का खतरा बढ़ जाएगा। किंतु इन गुफा मछलियों में डायबिटीज़ के लक्षण प्रकट नहीं होते।
एक अनुमान के मुताबिक एस्टिनेक्स मेक्सिकेनस मछली करीब 10 लाख साल पहले नदियों से गुफाओं में धकेल दी गई थीं। यहां भोजन के अभाव में इन मछलियों की शारीरिक क्रियाओं में ऐसे फेरबदल हुए हैं कि ये भोजन उपलब्ध होने पर उसे वसा के रूप में उसी तरह जमा कर लेती हैं जैसे शीतनिद्रा में जाने से पहले कई जंतु करते हैं। अलबत्ता, ये शीतनिद्रा में जाती नहीं।
टेबिन ने इन मछलियों की तुलना नदियों में पायी जाने वाली मछलियों से की। दोनों को प्रयोगशाला में एक-सी परिस्थितियों में रखा गया। देखा गया कि गुफा मछली के अंगों में नदी मछली की अपेक्षा कहीं ज़्यादा वसा का संग्रह हुआ था। इसके अलावा गुफा मछली के लीवर भी वसा से भरपूर थे। यह स्थिति मनुष्यों में लीवर रोगों जैसी थी। किंतु गुफा मछलियों में इसकी वजह से लीवर का नुकसान नहीं हुआ था।
इसी प्रकार से, जब नदी मछलियों को ग्लूकोस की खुराक दी गई तो उनमें इंसुलिन की मात्रा में वृद्धि हुई और बढ़े हुए इंसुलिन ने उनके खून में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित कर लिया। इसके विपरीत गुफा मछलियों में रक्त शर्करा का स्तर बढ़ता गया। और भुखमरी के दौरान रक्त शर्करा का स्तर काफी नीचे गिर गया। इस सबके बावजूद गुफा मछलियां स्वस्थ बनी रहीं जबकि मनुष्यों में रक्त शर्करा के स्तर में ऐसे उतार-चढ़ाव खतरनाक होते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि गुफा मछलियां इंसुलिन की प्रतिरोधी होती हैं। और टेबिन के दल ने वह जीन भी खोज निकाला जो उन्हें इंसुलिन प्रतिरोधी बनाता है। जब यह जीन नदी में रहने वाली ज़ेब्राा मछली में प्रत्यारोपित किया गया तो उनका वज़न भी खूब बढ़ गया।
शोधकर्ता यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि क्या गुफा मछलियों के इन गुणों का उपयोग डायबिटीज़ के प्रबंधन में हो सकता है। (स्रोत फीचर्स)