चमगादड़ देखने के लिए प्रकाश का कम, आवाज़ों का ज़्यादा उपयोग करते हैं। उनमें एक यंत्र होता है जो तीखी आवाज़ पैदा करता है। जब यह आवाज़ किसी चीज़ से टकराकर लौटती है तो चमगादड़ को पता चल जाता है कि रास्ते में कोई वस्तु है। वापिस लौटने वाली आवाज़ (प्रतिध्वनि) का विश्लेषण करके वे यह समझ पाते हैं कि वस्तु कितनी दूरी पर है और उसका डील-डौल कैसा, वह कठोर है या मुलायम है। इसी प्रतिध्वनि-दृष्टि के चलते वे रात में भी हलचल कर सकते हैं। किंतु कभी-कभी यह प्रतिध्वनि दृष्टि धोखा भी दे देती है और चमगादड़ किसी दीवार-खिड़की वगैरह से जा टकराता है।
ध्वनि पर भी परावर्तन के नियम लागू होते हैं। इसका मतलब है कि आवाज़ जिस कोण पर किसी सतह से टकराएगी, उतने ही कोण से वह वापिस लौटेगी किंतु दूसरी दिशा में। अर्थात यदि हम उस सतह पर एक लंबवत रेखा खींचे तो प्रतिध्वनि इस लंब के दूसरी ओर उतना ही कोण बनाएगी जितना आने वाली ध्वनि ने बनाया था। इसका मतलब तो यह हुआ कि यदि चमगादड़ की आवाज़ किसी सतह से तिरछी टकराएगी तो वापिस उस तक नहीं पहुंचेगी। किंतु अधिकांश सतहें एकदम चिकनी नहीं होतीं। इसलिए परावर्तन के बाद ध्वनि एक ही दिशा में नहीं लौटती बल्कि फैल जाती है। इसमें से कुछ ध्वनि तो वापिस चमगादड़ तक पहुंच ही जाती है।
दिक्कत तब होती है जब सतह एकदम चिकनी हो। ऐसी चिकनी सतह से टकराने के बाद ध्वनि फैलती नहीं बल्कि एक ही दिशा में जाती है। परावर्तन के नियम के अनुसार यह प्रतिध्वनि चमगादड़ की ओर नहीं बल्कि उससे दूर जाएगी। इसलिए, जब ध्वनि सामने एकदम चिकनी सतह (जैसे कांच) से टकराती है तो उसकी प्रतिध्वनि लौटकर चमगादड़ तक नहीं पहुंचती। उसे लगता है कि सामने मैदान साफ है और वह उड़ता चला जाता है, चिकनी सतह से टकराने के लिए। उसे तो सतह के बहुत पास पहुंचने के बाद ही पता चलता है कि सामने रुकावट है।
इस समस्या को समझने के लिए स्टीफन ग्रीफ ने कई वर्षों पहले चिकनी आड़ी सतहों पर चमगादड़ों के साथ कुछ प्रयोग किए थे। प्रयोग के दौरान ज़मीन पर चिकनी तश्तरियां रखी गई थीं। देखा गया कि चमगादड़ इनमें से कुछ पीने की कोशिश कर रहे थे। आम तौर पर प्रकृति में ऐसी चिकनी आड़ी सतहें झीलों और तालाबों की होती हैं, इसलिए चमगादड़ ऐसी सतहों को पानी की उपस्थिति का सुराग मानते हैं। अब ग्रीफ और उनके साथियों ने इसी प्रकार के प्रयोग खड़ी चिकनी सतहों पर किए तो पाया कि चमगादड़ उड़ते-उड़ते उनसे टकरा जाते हैं। ग्रीफ का ख्याल है कि प्रकृति में चमगादड़ों को ऐसी सतहों का अनुभव नहीं है। साइन्स में प्रकाशित शोध पत्र में ग्रीफ ने कहा है कि ऐसी खड़ी चिकनी सतहें उनके परिवेश में मानव निर्मित पर्यावरण के कारण ही आई हैं। उन्हें इनके खतरे से बचाने के लिए कुछ उपाय करना ज़रूरी है। (स्रोत फीचर्स)