नवनीत कुमार गुप्ता
आंखों के माध्यम से ही हम इस मनमोहक दुनिया को देख पाते हैं। लेकिन कई लोग प्रकृति के इस वरदान से वंचित हैं। कई लोगों की आंखों की रोशनी दुर्घटना के कारण चली गई है। दुनिया भर में ऐसे नेत्रहीनों की संख्या करीब 18 करोड़ है। अधिकतर मामलों में आंखों का कॉर्निया क्षतिग्रस्त होता है। कॉर्निया आंख का सबसे सामने वाला पारदर्शी भाग होता है। कॉर्निया की पारदर्शिता एवं उसकी गोलाई पर हमारी नज़र का पैनापन निर्भर होता है।
प्रकाश की किरणें कार्निया से होते हुए आंख में प्रवेश करती है और लेंस से होते हुए अंत में रेटिना (पर्दे) पर फोकस होती है। कॉर्निया के ठीक नहीं होने की स्थिति में एकमात्र उपाय यह बचता है कि स्वच्छ कॉर्निया का प्रत्यारोपण किया जाए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अंधेपन के कारणों में कॉर्निया के कारण होना वाला अंधत्व चौथा सबसे बड़ा कारण है। इस प्रकार के अंधत्व का इलाज कॉर्निया प्रत्यारोपण ही है। आम बोलचाल की भाषा में इसे नेत्र प्रत्यारोपण कहते हैं। आंकड़ों के अनुसार भारत में लाखों लोग कॉर्निया की खराबी की वजह से अंधेपन का शिकार हैं। हर साल तकरीबन दो लाख लोगों को कॉर्निया प्रत्यारोपण का इंतज़ार रहता है। इनमें से अधिकतर मामले युवाओं के होते हैं। नेत्रदान की ज़रूरत को देखते हुए देश में हर साल 25 अगस्त से 8 सितम्बर तक जागरूकता पैदा करने के लिए नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जाता है। उस्ताद जाकिर हुसैन, अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या रॉय बच्चन जैसी प्रख्यात हस्तियां नेत्रदान का संकल्प ले चुकी हैं।
नेत्रदान के लिए पूरी आंख की ज़रूरत नहीं होती। नेत्र दाता की आंखों से सिर्फ कॉर्निया का इस्तेमाल कर किसी की आंखों की रोशनी लौटाई जा सकती है। नेत्रदान उन बच्चों के लिए वरदान की तरह है, जिनके कॉर्निया में जन्म से खराबी होती है।
पहले नेत्रदान की प्रक्रिया में शरीर से पूरी आंख निकाल ली जाती थी। लेकिन अब प्रणाली बदल चुकी है। किसी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात जब उसका परिवार नेत्रदान के लिए नेत्र अस्पताल को सूचना देता है, तो एक तकनीशियन मौके पर पहुंचता है और रोगणुरहित उपकरणों की मदद से सिर्फ कॉर्निया वाला हिस्सा निकालता है। इससे मृत व्यक्ति के देह को किसी प्रकार की क्षति नहीं होती। पिछले साल देश में नेत्रदान करने वालों की संख्या करीब 65 हज़ार थी, जो उत्तरी अमेरिका के बाद दुनिया में सबसे ज़्यादा है।
75 साल की उम्र तक का कोई भी व्यक्ति नेत्रदान कर सकता है। मृत्यु के पश्चात एक प्रशिक्षित तकनीशियन कॉर्निया को महज़ 10 मिनट में निकाल सकता है। लेकिन कॉर्निया निकालने का कार्य मृत्यु होने के 6 से 8 घंटे के भीतर करना होता है। कॉर्निया को 4 से 8 डिग्री सेल्सियस तापमान में बर्फ में रखकर अस्पताल ले जाया जाता है, जहां इसे प्रयोगशाला के रेफ्रिजरेटर में 7 दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
इसके अलावा अब कॉर्निया प्रत्यारोपण आसानी से हो जाता है। हालांकि कॉर्निया प्रत्यारोपण के समय कुछ बातों का ध्यान भी रखना ज़रूरी होता है। कुछ खास किस्म के संक्रमण, कैंसर और कुछ खास बीमारियों से ग्रसित व्यक्ति चाहकर भी नेत्रदान नहीं कर सकते। एचआईवी, सिफलिस, हैपेटाइटिस बी तथा हैपेटाइटिस सी और सेप्टिसेमिया जैसी कुछ बीमारियों वाले व्यक्तियों का कॉर्निया प्रत्यारोपण करना जोखिम भरा हो सकता है। तपेदिक के कुछ मामलों सहित ल्यूकेमिया और लिम्फोमा जैसे कैंसर, आंखों के कुछ कैंसर व अल्सर या बुरी तरह संक्रमित आंखों से भी कॉर्निया नहीं निकाले जा सकते हैं।
हालांकि अभी तक हमारे देश का नेत्रदान सम्बंधी पिछला रिकार्ड अच्छा रहा है जिसके अनुसार लगभग 65000 लोगों ने नेत्रदान किया है। विश्व में नेत्रदान करने वाले देशों में भारत दूसरे नंबर पर रहा है। हालांकि ज़रूरी नहीं कि दान किया गया कॉर्निया प्रत्यारोपित हो जाए। प्रत्यारोपण से पहले अनेक प्रकार के परीक्षणों के बाद ही ज़रूरतमंद की आंख में कॉर्निया का प्रत्यारोपण किया जाता है। इस प्रकार नेत्रदान से प्राप्त लगभग आधे कॉर्निया ही मानकों पर खरे उतरने के कारण प्रत्यारोपित हो पाते हैं। इसलिए कॉर्निया प्रत्यारोपण चाहने वालों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है।
वैसे नेत्रदान करने से लोग इसलिए डरते थे क्योंकि उनके मन में भय होता था कि कॉर्निया निकालने से मृतक का शरीर विकृत हो जाता है। अब डॉक्टरों ने इसका भी इलाज खोज निकाला है। कॉर्निया निकालकर उसकी जगह कॉन्टेक्ट लैंस जैसी फिल्म लगा दी जाती है, जिससे आंखें प्राकृतिक दिखती हैं। लिहाज़ा जो भी नेत्रदान करना चाहें, वे नेत्रदान केन्द्र से जुड़े पास के नेत्र अस्पताल में पंजीकरण करा सकते हैं। हमारे देश में 600 से अधिक पंजीकृत नेत्रदान केन्द्र हैं। (स्रोत फीचर्स)