संध्या रायचौधरी
कुछ महीने पहले अचानक ही पूरा विश्व सहम गया जब लाखों कंप्यूटर्स को वायरस रैंसमवेयर ने हैक कर लिया। खासकर बैंकों और ऑनलाइन खरीद-फरोख्त करने वाली साइट्स पर। जब कंपनियों ने इस वायरस को हटाना चाहा तो उनसे भारी कीमत देने को कहा गया और कीमत सामान्य मुद्रा में नहीं बल्कि बिटकॉइन के रूप में मांगी गई थी। इस मुद्रा का पता लगाने की भरसक कोशिशें चल रही हैं किंतु अभी तक सफलता नहीं मिली है।
एक मुद्रा कैसे पूरी दुनिया में हंगामा मचा सकती है, इसके कुछ उदाहरण इस साल मई-जून में देखने को मिले। पहली घटना 12 मई 2017 को हुई, जब दुनिया भर के कंप्यूटरों पर फिरौती वसूलने वाले वायरस वानाक्राई का हमला हुआ। कुछ ही दिनों में इस वायरस ने 150 देशों के तीन लाख से ज़्यादा कंप्यूटरों पर कब्ज़ा कर लिया और हैकरों ने कंप्यूटर सही-सलामत लौटाने के एवज में प्रति कंप्यूटर 300 बिटकॉइन की मांग की। यही नहीं, जब सरकार ने तीन लाख संदिग्ध मुखौटा कंपनियों के बैंक खातों पर रोक लगाई, तो कहा गया कि इनमें से कई कंपनियां बिटकॉइन के ज़रिए कारोबार कर रही हैं। बिटकॉइन इस समय कई तरह के अवैध धंधों में लगे लोगों की सबसे प्रिय मुद्रा बनी हुई है। हालांकि अब तो सामान्य व्यापारियों को भी बिटकॉइन में लेनदेन करना आसान लग रहा है क्योंकि इस पर किसी सरकार या बैंक का नियंत्रण नहीं है। इसमें नोटबंदी का डर भी नहीं है। जून 2017 में जापान में एक मामले में बिटकॉइन को कानूनी रूप से मान्यता दी गई है। जापान में पीच एविएशन एयरलाइंस के विमानों की टिकटों की खरीद-बिक्री बिटकॉइन मुद्रा के ज़रिए करने की छूट दी गई है। ऐसा करने वाला जापान दुनिया का पहला देश है।
बिटकॉइन की चर्चा का दूसरा बड़ा कारण रहा इसकी तेज़ी से बढ़ती कीमत। दो साल पहले जून 2015 में एक बिटकॉइन की कीमत करीब 20 हज़ार रुपए थी, जो इस साल मई के अंत में 2 लाख 25 हज़ार तक पहुंच गई थी। थोड़ा और पीछे जाने पर पता चलता है कि एक आभासी मुद्रा के रूप में प्रचलित बिटकॉइन की कीमतें तो असल में हज़ारों गुना बढ़ी हैं। जैसे, जुलाई 2010 में एक बिटकॉइन का मूल्य 0.05 अमेरिकी डॉलर था, जो इस साल 24 मई 2017 को 2420 अमेरिकी डॉलर हो गया। इधर जिस तरह से जापान में इसे एक कानूनी मुद्रा के रूप में मान्यता दी गई, उसके आधार पर अर्थशास्त्री अनुमान लगा रहे हैं कि अगले साल के अंत तक एक बिटकॉइन की कीमत 6 लाख रुपए तक पहुंच जाएगी। तेज़ी से बढ़ती कीमतों के चलते लोग इसे निवेश का भी एक माध्यम बना रहे हैं।
क्या है बिटकॉइन
कहने को तो यह भी एक मुद्रा है। ठीक उसी तरह जैसे रुपया, डॉलर या पाउंड है। पर दो फर्क हैं। एक तो यह कि ज़्यादातर मुद्राओं पर सरकार और उनके बैंकों का नियंत्रण होता है। बिटकॉइन के रूप में एक ऐसी मुद्रा के बारे में सोचा गया जो किसी भी सरकार या बैंक के नियंत्रण से बाहर हो और उस पर सरकारी नियम-कानूनों की बंदिश न हो। वर्ष 2009 में डिजिटल यानी वर्चुअल मुद्रा के रूप में बिटकॉइन अस्तित्व में आए। बताते हैं कि इसे सातोशी नाकामोतो नामक व्यक्ति ने बनाया है। सातोशी एक छद्म नाम था क्योंकि वर्ष 2015 में एक ऑस्ट्रेलियाई व्यवसायी क्रेग राइट ने दावा किया कि वे ही असल में बिटकॉइन के आविष्कारक हैं।
दूसरी मुद्राओं की तुलना में बिटकॉइन इस मामले में अलग है कि यह नोट या सिक्कों में न होकर एक प्रकार के कंप्यूटर कोड के रूप में है। इन्हीं कोड्स को कंप्यूटर-इंटरनेट की सहायता से खरीदा-बेचा जाता है। इनकी खरीद करने के बाद इन्हें ऑनलाइन वॉलेट में रखा जाता है। चूंकि यह कंप्यूटर पर बनाई जाने आभासी मुद्रा है, इसलिए इसे क्रिप्टो-करंंसी भी कहा जाता है।
बिटकॉइन की कुल संख्या तय है। इसके आविष्कर्ता ने जो मॉडल बनाया है, उसमें पूरी दुनिया में सिर्फ 2.1 करोड़ बिटकॉइन बनाने की व्यवस्था है। इनमें से 1.5 करोड़ बिटकॉइन फिलहाल प्रचलन में हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि मौजूदा व्यवस्था में हर 10 मिनट पर नए बिटकॉइन बनाने की छूट है, पर संख्या हर हाल में 2.1 करोड़ से ज़्यादा नहीं होगी, जब तक कि इसकी माइनिंग का मॉडल बदल नहीं दिया जाता।
हासिल करने की होड़
इसकी कीमत को देखकर आज दुनिया में हर व्यक्ति बिटकॉइन हासिल करना चाहता है। यह काम तीन तरीकों से हो सकता है।
- इंटरनेट पर मौजूद एक्सचेंज वेबसाइट्स प्रमुख मुद्राओं के बदले में बिटकॉइन उपलब्ध कराती हैं। इसी तरह कुछ ऐप्स भी फीस लेकर बिटकॉइन बेचते हैं। स्मार्टफोन के ज़रिए ऐप डाउनलोड करके भी बिटकॉइन हासिल किए जा सकते हैं, यूट्यूब पर इसे खरीदने के रास्ते बताए गए हैं। भारत में जेबपे ऐप से इसकी खरीद बिक्री हो रही है।
- एक अन्य तरीका है कि वस्तुओं या सेवाओं को बेचने के बदले उनका भुगतान बिटकॉइन में मांगा जाए। हैकर तो फिरौती की रकम ही बिटकॉइन में मांग रहे हैं।
- तीसरा तरीका है बिटकॉइन की माइनिंग। इसके लिए सबसे पहले कंप्यूटर सिस्टम पर बिटकॉइन से जुड़ा कम्यूनिटी सॉफ्टवेयर इंस्टाल करना पड़ता है। कम्यूनिटी सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने पर शुरुआत में कुछ बिटकॉइन मुफ्त मिलते हैं। बिटकॉइन हासिल करने की पूरी प्रक्रिया माइनिंग कहलाती है। बिटकॉइन की माइनिंग का काम शुरू होता है बिटकॉइन से जुड़े कम्यूनिटी सॉफ्टवेयर को कंप्यूटर सिस्टम पर इंस्टॉल करने से। सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने पर एक विशेष कोड जनरेट होता है। यह खास कोड बिटकॉइन एड्रेस कहा जाता है। रकम की लेनदेन में यह कोड बैंक अकाउंट की तरह काम करता है। माइनिंग करने वाले लोग माइनर कहलाते हैं। इसके एवज में उन्हें फीस व नए बिटकॉइन भी मिलते हैं। फिलहाल एक नए माइनर को रिवॉर्ड के रूप में 25 बिटकॉइन मिलते हैं।
रूस में आम इस्तेमाल
एक दौर था जब बिटकॉइन की माइनिंग में चीन के माइनर आगे माने जाते थे, लेकिन अब हवा बदल गई है। अब रूसी माइनर कंपनियां इस काम में काफी दिलचस्पी ले रही हैं। बल्कि रूस में बिटकॉइन का आम इस्तेमाल भी बढ़ा है। राजधानी मॉस्को में कई कैफे और रेस्तरां इस आभासी मुद्रा में भुगतान स्वीकार करने लगे हैं। हालांकि बिटकॉइन को अभी रूसी सरकार और वहां के सेंट्रल बैंक का खुला समर्थन नहीं मिला है, लेकिन सेंट्रल बैंक विचार कर रहा है कि क्या देश में एक राष्ट्रीय आभासी मुद्रा बन सकती है। आभासी मुद्रा के इस मामले में वहां एक नए कानून के प्रस्ताव पर बहस होनी है जिसका मकसद रूस में आभासी मुद्रा का उत्पादन और उसे संरक्षण प्रदान करना है।
सुरक्षा के मुद्दे
बिटकॉइन को ज़्यादातर देश इसलिए मान्यता नहीं दे रहे हैं क्योंकि इसके ज़रिए होने वाली खरीद-फरोख्त और इसके धारकों का पता लगाना मुश्किल है। असल में, मनीलांड्रिंग यानी काले धन को सफेद में बदलने की प्रक्रिया में बिटकॉइन काफी मददगार साबित हो रहे हैं। भारत में अपने खाते में रुपए बिटकॉइन में बदलवाकर डाल दिए जाएं और उन्हें दुनिया में कहीं भी जाकर डॉलर में भुना लिया जाए, तो उसकी धरपकड़ नहीं हो सकती। हवाला, टैक्स चोरी, मादक पदार्थों की खरीद-फरोख्त, हैकिंग और आतंकी गतिविधियों में बिटकॉइन के बढ़ते इस्तेमाल ने अर्थशास्त्रियों, सुरक्षा एजेंसियों और सरकारों तक की नींद उड़ा दी है। जुलाई 2016 में देश में ड्रग्स की अवैध तस्करी पर नज़र रखने वाले नॉरकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने दो तरह के आपराधिक सिस्टम को प्रतिबंधित किया था, जिनमें से एक बिटकॉइन से जुड़ा था। ब्यूरो ने बताया था कि ड्रग्स का कारोबार ‘डार्कनेट’ और अवैध मुद्रा बिटकॉइन के ज़रिए चलाया जा रहा है। जानकारी यह है कि मई 2017 में देश में करीब 2500 लोगों ने बिटकॉइन में पैसा लगाया। एक अन्य आकलन के मुताबिक, भारत में करीब 30 हज़ार लोगों के पास बिटकॉइन हैं, और दुनिया भर में प्रचलित बिटकॉइन्स का एक फीसदी हिस्सा है।
फायदे और नुकसान
इस आभासी मुद्रा के बेशुमार फायदे हैं। जैसे, इसे ईमेल की तरह दुनिया में कभी भी, कहीं भी, किसी को भी ट्रांसफर किया जा सकता है। कोई सरकार या बैंक इस मुद्रा पर सेंसरशिप नहीं लगा सकता। इसके सिस्टम को हैकिंग-प्रूफ माना जाता है। बिटकॉइन की नकली मुद्रा बनाना भी नामुमिकन है क्योंकि मैथेमेटिकल कोड पर आधारित सिस्टम में फर्जी कोड जनरेट नहीं हो सकता। यह पहले से तय है कि सिर्फ 2.1 करोड़ बिटकॉइन बनेंगे, इसलिए अलग से एक भी बिटकॉइन बनाना नामुमकिन है। अगर कोई चाहता है कि पैसे ट्रांसफर करने, आर्थिक लेनदेन करने में न तो बीच में कोई बैंक या व्यक्ति आए और न ही ट्रांज़ेक्शन फीस ले तो यह सिर्फ बिटकॉइन में मुमकिन है। बिटकॉइन में दशमलव के आठवें अंक तक छोटी रकम भेजी जा सकती है। मसलन 0.00000001 बिटकॉइन भी किसी को ट्रांसफर किए जा सकते हैं। इसी तरह से बिटकॉइन की जालसाजी भी संभव नहीं है क्योंकि जिस नेटवर्क से यह मुद्रा जुड़ी है, उसमें कोई फर्जी कोड जोड़ा नहीं जा सकता। इसीलिए बाहर से नया बिटकॉइन जोड़ना कदापि संभव नहीं है।
पर इसके कुछ नुकसान भी हैं। सरकारें इस पर टैक्स नहीं ले सकतीं, इस वजह से बैंक और सरकारें इसे मान्यता नहीं देते हैं। चूंकि इसके ज़रिए होने वाली खरीदारी पूरी तरह गोपनीय होती है, सरकारी एजेंसियां इसके लेनदेन का पता नहीं लगा सकतीं, इसलिए इसका फायदा अपराधी तत्व उठाते हैं। (स्रोत फीचर्स)
अन्य आभासी मुद्राएं वैसे तो दुनिया भर में पहले से ही 70 से ज़्यादा आभासी मुद्राएं चलन में हैं, जिनका कुल बाज़ार मूल्य करीब 15 अरब डॉलर (90,000 करोड़ रुपए) है। इसमें सिर्फ बिटकॉइन करीब 10 अरब डॉलर की है। पर आजकल ईथर नामक एक अन्य आभासी मुद्रा तेज़ी से चलन में आ रही है। कुछ अन्य आभासी मुद्राएं इस प्रकार हैं - - लाइटकॉइन : मैसाचुसेट्स इंस्टीट्युट ऑफ टेक्नॉलॉजी के ग्रैजुएट और गूगल के एक पूर्व इंजीनियर चार्ली ली ने इसे वर्ष 2011 में बनाया था। - ईथरम : बिटकॉइन के बाद सबसे ज़्यादा लोकप्रिय मुद्रा के रूप में ईथरम या ईथर का नाम लिया जाता है। हाल में ईथर की चर्चा इसलिए तेज़ थी क्योंकि दावा किया गया कि एक गुमनाम ट्रेडर ने 5.5 करोड़ डॉलर लगाकर एक ही महीने में 28.3 करोड़ डॉलर बना लिए। - ज़ेडकैश : वर्ष 2016 में बनाई गई इस मुद्रा के बारे में दावा किया गया कि सुरक्षा और प्राइवेसी के मामले में यह बिटकॉइन से काफी आगे है। - डैश : यह असल में बिटकॉइन का ही एक अन्य खुफिया संस्करण है और इसे डार्ककॉइन कहा जाता है। इवान डफ्फील्ड ने इसे वर्ष 2014 में इस दावे के साथ ईजाद किया था कि इसके ज़रिए किए जाने वाले लेनदेन का पता लगाना तकरीबन असंभव है। - रिप्पल : सरहदों के आरपार बैंकिंग लेनदेन को अविलंब संभव बनाने और बेहद कम कीमत पर दोनों पक्षों की गोपनीयता को सुरक्षित रखने के दावे के साथ रिप्पल को वर्ष 2012 में ईजाद किया गया था। - मोनेरो : यह भी सुरक्षित, निजी और खुफिया आभासी मुद्रा है। अप्रैल 2014 में लॉन्च की गई इस आभासी मुद्रा को भी लोगों ने हाथों हाथ लिया था। रिंग सिग्नेचर नामक एक खास तकनीक के ज़रिए इसके लेनदेन को सुरक्षित और खुफिया बनाने का दावा किया जाता है। |