ऑस्ट्रेलिया वह पहला देश था जिसने दिसंबर 2012 में एक कानून बनाया था कि सिगरेटें सिर्फ सादे पैकेट में बिकेंगी। उन पैकेट पर ब्रांड का नाम लिखा तो जाएगा मगर निर्धारित फॉन्ट में और निर्धारित साइज़ के अक्षरों में। पैकेट पर स्वास्थ्य सम्बंधी चेतावनी होगी और सारे ब्रांड के पैकेट एक ही रंग के होंगे। अब इस नियम के सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं।
इस नीति का प्रमुख लक्ष्य यह था कि सिगरेटों को लोगों के लिए कम आकर्षक बनाया जाए ताकि वे धूम्रपान शुरु ही ना करें। अलबत्ता, अध्ययनों से पता चला है कि इसके कई अन्य लाभ भी मिले हैं। जैसे एक अध्ययन के मुताबिक 2010 से 2013 के बीच ऑस्ट्रेलिया में नियमित रूप से सिगरेट पीने वालों की संख्या 15.1 प्रतिशत से घटकर 12.8 प्रतिशत रह गई है। धूम्रपान में इतनी गिरावट एक रिकॉर्ड है।
इसके अलावा सिगरेट छोड़ने के इच्छुक लोगों द्वारा इससे सम्बंधित हेल्पलाइन पर संपर्क करने की तादाद भी बढ़ी है। नियम प्रभावी होने के बाद से हेल्पलाइन पर ऐसे कॉल्स में 78 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। कैनबरा राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के हग वेब के मुताबिक धूम्रपान में आई कमी का एक प्रमुख कारण यह है कि लोगों में ब्रांड के प्रति जो एक आकर्षण होता है, वह कम हुआ है क्योंकि ब्रांड की विशिष्ट पहचान तो पैकेट से बनती थी।
चूंकि ऑस्ट्रेलिया में सिगरेट के विज्ञापनों पर 1992 में ही प्रतिबंध लागू हो गया था, इसलिए ब्रांड की पहचान बनाने का काम पूरी तरह पैकेट की साज-सज्जा के ज़रिए ही हो सकता था। वेब के अनुसंधान से पता चलता है कि सादे पैकेट का नियम लागू होने के बाद ब्रांड के साथ पहचान स्थापित होने और ब्रांड से जुड़े दावों में काफी कमी आई है।
वेब और उनके साथियों ने नियम लागू होने के तत्काल पहले और उसके सात माह बाद 178 धूम्रपानियों का एक सर्वेक्षण किया था। एडिक्टिव बिहेवियर रिपोर्ट्स में प्रकाशित उनके अध्ययन से पता चलता है कि सादे पैकेट लागू होने के बाद इन लोगों में किसी एक ब्रांड के प्रति वफादारी में कमी आई है।
दरअसल कंपनियां लोगों को बताती हैं कि अमुक ब्रांड की सिगरेट पीने वालों की बात ही कुछ और है। धीरे-धीरे इस ब्रांड के साथ व्यक्ति अपनी छवि जोड़कर देखने लगते हैं और एक ही ब्रांड का उपयोग करने वालों के अनकहे-से समूह बन जाते हैं। नए नियम ने कंपनियों के लिए इस तरह के दावे करना असंभव बना दिया है। तो सिगरेट के साथ चिपके रहने का एक कारण तो जाता रहा। इसी का परिणाम है कि अब लोग सिगरेट पीने को उस ब्रांड के दावों से जोड़कर नहीं देखते और इसका असर उनकी सिगरेट छोड़ने की इच्छा पर पड़ रहा है। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - April 2017
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