कई अध्ययनों से यह बात सामने आ रही है कि सीज़ेरियन ऑपरेशन से पैदा हुए बच्चों और सामान्य प्रसव से पैदा हुए बच्चों के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर उनके शरीर में और शरीर पर पलने वाले सूक्ष्मजीव जगत का होता है और यह अंतर स्वास्थ्य पर उल्लेखनीय असर डाल सकता है। ऐसा ही अंतर स्तनपान पर पले बच्चों और ‘ऊपर’ के दूध पर पले बच्चों के बीच भी देखा गया है।
आम तौर यह माना जाता है कि गर्भ की थैली शिशु को सूक्ष्मजीवों के संपर्क में आने से बचाती है। मगर ताज़ा अध्ययनों से पता चला है कि यहां भी शिशु अल्प संख्या में सूक्ष्मजीवों के संपर्क में आते रहते हैं। और जैसे ही प्रसव के समय यह थैली फटती है, शिशु का संपर्क बड़ी संख्या में सूक्ष्मजीवों से होता है। ये सूक्ष्मजीव मां की योनि से आते हैं और शिशु के शरीर पर फैल जाते हैं और उसकी आंखों, नाक, कान वगैरह में प्रवेश कर जाते हैं। कुछ सूक्ष्मजीवों को शिशु निगल भी लेते हैं और ये उनकी आंतों में पहुंच जाते हैं। इसके अलावा, मां की आंतों में उपस्थित सूक्ष्मजीव भी शिशु के शरीर में प्रवेश करते हैं। जन्म के बाद स्तनपान के साथ कई अन्य सूक्ष्मजीव शिशु के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।
मां के दूध में कुछ शर्कराएं होती हैं, जिन्हें शिशु नहीं पचा सकते। ये दरअसल सूक्ष्मजीवों का भोजन हैं ताकि वे आराम से पनप सकें और संख्यावृद्धि कर सकें। इस प्रक्रिया में अच्छे सूक्ष्मजीव तेज़ी से संख्यावृद्धि करते हैं और शरीर में घर बना लेते हैं।
इस प्रकार से शिशु के शरीर में सूक्ष्मजीवों का एक पूरा संसार बन जाता है। यह संसार उनके प्रतिरक्षा तंत्र को प्रशिक्षित करता है, उन्हें सिखाता है कि किससे दोस्ती रखनी है और किसे निकाल बाहर करना है। कुल मिलाकर यह सूक्ष्मजीव संसार सीज़ेरियन ऑपरेशन से पैदा हुए बच्चों को नहीं मिल पाता और यदि स्तनपान न कराया जाए तो क्षति और भी ज़्यादा होती है।
वैसे अभी इस तरह के अध्ययनों के परिणामों को लेकर कोई आम सहमति नहीं है मगर इस बात के छिटपुट प्रमाण तो मिल ही रहे हैं कि सीज़ेरियन ऑपरेशन से पैदा हुए तथा स्तनपान से वंचित बच्चों को दमा, प्रथम किस्म के मधुमेह तथा मोटापे का जोखिम ज़्यादा होता है। इस मामले में कई समूह शोधरत हैं। (स्रोत फीचर्स)