ऑस्ट्रेलिया में किए गए एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि यदि जंक फूड पर टैक्स बढ़ाया जाए और फल-सब्ज़ियों पर रियायत दी जाए तो मोटापे की समस्या से निपटा जा सकता है। अध्ययन का निष्कर्ष यह भी है कि इस तरह से लोगों का स्वास्थ्य सुधरेगा और स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च में 3 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर की बचत होगी।
वैसे तो यह अध्ययन ऑस्ट्रेलिया की आबादी को ध्यान में रखकर किया गया है जहां एक-तिहाई लोग मोटापे से ग्रस्त हैं, मगर इसके निष्कर्ष अन्यत्र भी लागू किए जा सकते हैं। कई अन्य देश भी अस्वस्थ खानपान पर रोक लगाने के उपायों पर काम कर रहे हैं। जैसे फ्रांस, मेक्सिको, नॉर्वे के अलावा यूएस के कुछ शहरों में भी शकर-युक्त पेय पदार्थों पर भारी टैक्स लगाया जा रहा है और यूके जैसे कुछ देश 2018 से इस नीति पर अमल करने जा रहे हैं। हंगरी में ‘चिप्स टैक्स’ के नाम पर अत्यधिक शर्करा या नमक वाले खाद्य पदार्थों पर टैक्स लगाया गया है। अलबत्ता, इन नीतियों के परिणाम आशाजनक नहीं रहे हैं। जैसे, मेक्सिको में इस टैक्स की वजह से प्रति व्यक्ति सॉफ्ट डिं्रक की खपत में मात्र 12 मिलीलीटर की कमी आई है।
ऑस्ट्रेलिया का उपरोक्त अध्ययन मेलबोर्न विश्वविद्यालय की लिंडा कोबिएक और उनके साथियों ने किया है। उन्होंने अपने अध्ययन में पहले तो यह देखा कि अतीत में लोगों की खरीदारी की आदतों पर टैक्स लगाने का असर क्या रहा है। फिर उन्होंने यह देखा कि भोजन और हृदय रोग, मधुमेह, कैंसर का क्या सम्बंध है। उन्होंने यह भी गणना की कि इन बीमारियों की वजह से स्वास्थ्य तंत्र पर कितना बोझ पड़ता है।
अपनी गणनाओं के आधार पर उनका मत है कि शर्करा, नमक और संतृप्त वसा को एक साथ निशाना बनाना बेहतर होगा। इनमें से किसी एक चीज़ पर ध्यान देना पर्याप्त नहीं है। उनका मत है कि लोगों को स्वस्थ भोजन की ओर आकर्षित करने के लिए फलों और सब्ज़ियों पर रियायत देना ठीक होगा।
उनका अनुमान है कि ऐसा करके ऑस्ट्रेलिया की 2.3 करोड़ की आबादी को 5 लाख अतिरिक्त स्वस्थ जीवन वर्ष हासिल होंगे और वह भी कम खर्च करके। वैसे इस संदर्भ में किए गए सर्वेक्षण बताते हैं कि ऑस्ट्रेलिया के लोग टैक्स और रियायत की इस दोहरी नीति के पक्ष में हैं किंतु ऑस्ट्रेलिया सरकार अभी ऐसे किसी टैक्स पर विचार नहीं कर रही है। (स्रोत फीचर्स)