पहले किए गए कई अध्ययनों से पता चला है कि यदि जंतुओं का कैलोरी उपभोग अत्यंत कम कर दिया जाए तो वे देर से बूढ़े होते हैं। यह बात कृमियों से लेकर चूहों तक में देखी गई है। इन निष्कर्षों के आधार पर विचार बना कि शायद मनुष्यों में भी ऐसा ही होगा। वैसे, कई लोगों का विचार था कि मनुष्य का कैलोरी उपभोग 25-50 प्रतिशत तक घटाकर यदि उम्र बढ़ भी जाए तो वह बढ़ी हुई उम्र किस काम की।
अब एक अध्ययन से बीच का रास्ता निकला है जो व्रत-उपवास करने जैसा आसान है। विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय और नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एजिंग के शोधकर्ताओं ने नेचर कम्यूनिकेशन्स में बताया है कि लगातार कैलोरी उपभोग में कमी रीसस बंदरों में काफी स्वास्थ्य सम्बंधी लाभ प्रदान करती है। रीसस बंदरों का बुढ़ाने का पैटर्न लगभग इंसानों जैसा ही है।
शोधकर्ताओं ने एक बंदर का विवरण दिया है जिसे 16 वर्ष की उम्र में 30 प्रतिशत कम कैलोरी पर रखने की शुरुआत की गई थी। 16 साल बंदरों के लिए अधेड़ावस्था होती है। आज वह 43 साल का है जो मनुष्य की उम्र के लिहाज़ से 130 वर्ष है और उसकी प्रजाति के लिए उम्र का रिकॉर्ड है।
इसके बाद किए गए एक अन्य अध्ययन में सदर्न कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के जरा-वैज्ञानिक वाल्टर लोंगो ने रिपोर्ट किया है कि बुढ़ापे को टालने के लिए आजीवन भूखा मरने की ज़रूरत नहीं है। तीन महीनों तक महीने में मात्र पांच दिन के लिए उपवास करना पर्याप्त है। इसे कुछ माह बाद फिर से दोहराना लाभदायक रहेगा। गौरतलब है कि ऐसे उपवास तो भारतीय लोग करते ही रहते हैं अंतर सिर्फ इतना है कि आजकल के उपवास में सामान्य से ज़्यादा ही खाया जाता है।
वैसे कई शोधकर्ताओं का मत है कि मात्र कैलोरी से परहेज़ करने पर इतना ध्यान देने से कुछ हासिल नहीं होगा। हमारे जीवन में इतने अन्य कारण हैं कि भूखा रहकर कुछ खास फायदा नहीं होगा। (स्रोत फीचर्स)