जब आप ऊंची-ऊंची पहाड़ियों पर छुट्टियां मनाने जाते हैं तो आपके शरीर को एक समस्या का सामना करना पड़ता है। जैसे-जैसे समुद्र तल से ऊंचाई पर जाएंगे तो हवा का घनत्व कम होता जाता है। जब हवा कम हो जाती है, तो ज़ाहिर है ऑक्सीजन भी कम हो जाती है। मैदानों में रहने वालों को इतनी कम ऑक्सीजन में सांस लेने की आदत नहीं होती। इसलिए पहाड़ों पर सांस फूलने लगती है। मगर आपका शरीर इससे निपटने का इंतज़ाम कर लेता है।
शरीर की जैव-रासायनिक प्रक्रियाएं आपको अस्थायी रूप से कम ऑक्सीजन के अनुकूल बनाने लगती हैं। ऑरेन सॉन्ग और साथियों ने मनुष्यों और चूहों में इस प्रक्रिया के अध्ययन के निष्कर्ष नेचर कम्यूनिकेशन्स नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित किए हैं।
शोधकर्ताओं ने पाया कि कम ऑक्सीजन की स्थिति में हमारी लाल रक्त कोशिकाओं का एक प्रोटीन ENT1 कम होने लगता है। इस प्रोटीन के कम होने की वजह से कुछ अन्य पदार्थ बनने लगते हैं जो आपके शरीर को कम ऑक्सीजन की स्थिति में सुरक्षा प्रदान करते हैं। इस तरह से आपका शरीर अनुकूलित हो जाता है।
इस प्रक्रिया की एक खासियत यह है कि ड्ढकग़्च्र्1 एक बार कम हो जाए तो वापिस नहीं बनता। यानी आपकी लाल रक्त कोशिकाएं ऊंचाइयों की कम ऑक्सीजन को याद रखती हैं। इसलिए यदि आप जल्दी ही फिर से पहाड़ों पर जाएंगे तो अनुकूलन में उतना वक्त नहीं लगेगा। मगर इसमें एक पेंच है। हमारी लाल रक्त कोशिकाओं का जीवन काल करीब 120 दिन का होता है। अर्थात जो लाल रक्त कोशिकाएं आज आपकी नसों में प्रवाहित हो रही हैं, वे करीब 4 महीने बाद नहीं रहेंगी। यदि इन रक्त कोशिकाओं में ENT1 की क्षति हुई है तो वह इनके साथ ही समाप्त हो जाएगी। 4 माह बाद आपके शरीर में सर्वथा नई लाल रक्त कोशिकाएं होंगी जिन्हें हिल स्टेशन याद नहीं रहेगा। अर्थात 4 महीने बाद फिर से पहाड़ों पर गए, तो अनुकूलन नए सिरे से होगा, जैसे कि पहली बार गए हों। (स्रोत फीचर्स)