हाल में किए गए एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि सामाजिक समूहों में रहने वाले कठफोड़वों के दिमाग अकेले या जोड़ी में रहने वाले कठफोड़वों से छोटे होते हैं। रोचक बात यह है कि स्तनधारियों में बिलकुल विपरीत परिस्थिति देखी गई है - स्तनधारियों में सामाजिक समूह का आकार बड़ा होने के साथ दिमाग का आकार भी बढ़ता है।
सेंट एण्ड्र्यूज़ विश्वविद्यालय (यूके) के रिचर्ड बायर्न ने कठफोड़वों की 61 प्रजातियों के अध्ययन के आधार पर उक्त निष्कर्ष निकाले हैं। समूह में रहने वाली 8 प्रजातियों के दिमाग तनहा रहने वाले कठफोड़वों की तुलना में आम तौर पर 30 प्रतिशत छोटे पाए गए। यह कोई छोटा-मोटा अंतर नहीं है।
स्तनधारियों और पक्षियों में सामूहिक-सामाजिक जीवन और दिमाग की साइज़ के बीच सम्बंध में यह अंतर उनके सामाजिक-समूहों की प्रकृति में अंतर को दर्शाता है। इसका मतलब यह है कि सामूहिक जीवन उनके लिए अलग-अलग अर्थ रखता है।
बायोलॉजी लेटर्स में प्रकाशित इस अध्ययन में बायर्न ने मत व्यक्त किया है कि पक्षी के लिए तनहा जीवन दिमाग पर ज़्यादा दबाव डालता है बनिस्बत सामूहिक जीवन के। उनके मुताबिक पक्षी समूहों में परस्पर सहयोग का परिणाम यह होता है कि एक-एक सदस्य को अपने दिमाग का कम इस्तेमाल करना पड़ता है और कई कार्य एक ‘सामाजिक दिमाग’ करने लगता है।
उदाहरण के लिए, उत्तरी अमेरिका में पाए जाने वाले एकॉर्न-भक्षी कठफोड़वों में सामूहिक ‘एकॉर्न भंडार’ बनाए जाते हैं। आड़े वक्त में ये भंडार समूह के सारे पक्षियों के लिए उपलब्ध होते हैं। इसी प्रकार से लाल कलगी वाले कठफोड़वों में समूह के पक्षी मिलकर सांपों से अपने पेड़ की रक्षा करते हैं। इसके लिए वे पेड़ का रस तने पर बहाते रहते हैं। एक अन्य प्रजाति में किसी शिकारी के आने पर सारे पक्षी चेतावनी स्वरूप चीखने लगते हैं और संयुक्त रूप से अपनी रक्षा करते हैं।
ऐसे व्यवहार का परिणाम यह होता है कि एक-एक पक्षी को अपना दिमाग नहीं खपाना पड़ता। बायर्न का कहना है कि दिमाग के विकास में बहुत संसाधन खर्च होते हैं। इसलिए जब उसकी ज़रूरत नहीं है तो संसाधनों को बेकार खर्च करने की बजाय उन्हें कहीं और लगाया जा सकता है।
स्तनधारियों में समूह का आकार बढ़ने का मतलब सामूहिक सुरक्षा तो होता है मगर इसका मतलब यह भी होता है कि हरेक सदस्य को शेष समूह के साथ नेटवर्किंग तथा अपनी हैसियत की रक्षा करने में ज़्यादा अकल लगानी पड़ती है। परिणामस्वरूप उनमें बड़ा दिमाग फायदेमंद हो सकता है।
इससे पहले ततैयों पर किए गए एक अध्ययन में भी ड्रेक्सेल विश्वविद्यालय के सीन ओडोनेल ने पाया था कि उनमें भी सामाजिक आकार बढ़ने के साथ प्राणि का वह हिस्सा छोटा होता जाता है जिसे मशरूम निकाय कहते हैं और जो वही काम करता है जो उच्चतर प्राणियों में दिमाग करता है।
इसका स्पष्ट मतलब है कि अलग-अलग प्राणियों में सामूहिक जीवन के मायने काफी अलग-अलग हो सकते हैं। (स्रोत फीचर्स)