खुशबूएं हमारे चारों ओर बिखरी हुई हैं। रसोई के मसालों से लेकर डीज़ल-पेट्रोल में, फूलों की बगिया से लेकर पूजा की अगरबत्ती में, डिटर्जेंट से लेकर नहाने के साबुन-शैम्पू में और डियो-परफ्यूम से लेकर बॉडी लोशन तक में... और अब, इन खुशबुओं, खासकर लोशन-परफ्यूम की खुशबुओं, के बारे में एक ताज़ा अध्ययन बताता है कि खुशबुएं हमें ताज़गी देने के अलावा हमारे आसपास की हवा को भी बदल सकती हैं, और हमारे चारों ओर बने वायु कवच को कमज़ोर कर सकती हैं। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इस कवच के कमज़ोर होने के फायदे हैं या नुकसान।
दरअसल हमारी त्वचा के तेल के अणु जब हमारे निकट वायु में मौजूद ओज़ोन के संपर्क में आते हैं तो वे अत्यधिक क्रियाशील हाइड्रॉक्सिल रेडिकल्स बनाते हैं। ये क्रियाशील अणु हवा में मौजूद अन्य गैसों से क्रिया करते हैं, जिससे हमारे चारों ओर रेडिकल्स की एक धुंध (कवच) सी बन जाती है। इस धुंध को मानव ऑक्सीकरण क्षेत्र कहते हैं।
लेकिन, यह सवाल था कि क्या क्रीम-पावडर हमारे आसपास की हवा को बदल सकते हैं? कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के रसायनज्ञ मनाबू शिराइवा और उनके सहयोगियों ने इसी बात का अध्ययन किया।
उन्होंने प्रतिभागियों के दो समूह बनाए। एक समूह के प्रतिभागियों के हाथ पर व्यावसायिक खुशबूदार क्रीम लगाया और दूसरे समूह के लोगों के शरीर के किसी भी खुले हिस्से पर बगैर खुशबू वाला लोशन लगा दिया। यह करने के बाद उन्हें एक ऐसे कमरे में 2-4 घंटे के लिए बैठाया जहां ओज़ोन का स्तर 40 पार्ट्स प्रति बिलियन था। यह यूएस में प्रदूषण के मानक स्तर से कम ही था। 
इसके बाद शोधकर्ताओं ने कक्ष की हवा में मौजूद अणुओं की पहचान की, अनुमान लगाया कि पदार्थों का यह मिश्रण उत्पन्न करने के लिए कैसी रेडिकल अभिक्रियाएं हुई होंगी। देखा गया कि जब प्रतिभागियों ने शरीर पर लोशन या परफ्यूम लगाया था तो उनके शरीर ने कम हाइड्रॉक्सिल रेडिकल बनाए थे। खासकर परफ्यूम लगाने पर शरीर के आसपास हाइड्रॉक्सिल रेडिकल्स की सांद्रता 86 प्रतिशत तक घट गई थी। 
लेकिन अभी यह देखना बाकी है कि कम हाइड्रॉक्सिल रेडिकल्स हमारे ऊपर क्या और कैसा (अच्छा या बुरा) प्रभाव डालते हैं। यदि हाइड्रॉक्सिल रेडिकल्स अन्य अणुओं के साथ अभिक्रिया करके विषाक्त पदार्थ बनाते हैं तो इनका कम होना हमारे लिए फायदेमंद होगा। लेकिन यदि ये अभिक्रिया करके हमारे आसपास की खतरनाक गैसों को कम करते हैं तो इनकी कमी हमारे लिए जोखिमपूर्ण हो सकती है।
लेकिन समस्या तो यह है कि खुशबुएं सिर्फ साबुन, फिनाइल, रूम फ्रेशनर जैसी कृत्रिम चीज़ों से ही नहीं बल्कि रसोई के मसालों, फूलों वगैरह से भी फैलती हैं। ऐसे में फिलहाल कोई स्पष्ट सलाह देना मुनासिब नहीं है। 
बहरहाल, भविष्य के अध्ययनों में साबुन-शैम्पू जैसे उत्पाद शामिल किए जा सकते हैं। साथ ही यह भी देखा जा सकता है कि इन उत्पादों का यह असर कितने समय तक बना रहता है। (स्रोत फीचर्स)