हाल में किए गए एक अध्ययन से उजागर हुआ है कि कुछ कैंसर कोशिकाएं अपनी पड़ोसी स्वस्थ कोशिकाओं की मदद से अधिक विनाशकारी शक्ति हासिल कर लेती हैं। एक अनुसंधान दल ने पाया हेै कि तंत्रिकाएं अपनी पड़ोस की मैलिग्नेंट (दुर्दम) कोशिकाओं को अपना माइटोकॉण्ड्रिया दान दे देती हैं। गौरतलब है कि माइटोकॉण्ड्रिया कोशिकाओं का एक उपांग होता है जो कोशिकाओं के कामकाज के लिए ज़रूरी ऊर्जा उपलब्ध कराता है। यह अवलोकन इस बात की व्याख्या कर देता है कि क्यों तंत्रिकाओं की उपस्थिति में ट्यूमर ज़्यादा तेज़ी से बढ़ते हैं। और तो और, कैंसर कोशिकाओं को अतिरिक्त माइटोकॉण्ड्रिया मिल जाने पर उनकी शरीर के अन्य हिस्सों में फैलने (मेटास्टेसिस) की क्षमता भी बढ़ जाती है।
पहले माना जाता था कि कोशिकाएं अपने माइटोकॉण्ड्रिया सहेजकर रखती हैं। लेकिन पिछले 20 वर्षों में हुए अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि कोशिकाएं इन उपांगों का खूब लेन-देन करती हैं। कैंसर कोशिकाएं दाता भी हो सकती हैं और प्राप्तकर्ता भी।
जैसे, हाल ही में जापान के शोधकर्ताओं ने बताया था कि कैंसर कोशिकाएं और प्रतिरक्षा टी-कोशिकाएं कभी-कभी माइटोकॉण्ड्रिया का विनिमय करती हैं। इस दौरान, कैंसर कोशिकाएं अपने दोषपूर्ण उपांग टी-कोशिकाओं को देकर उन्हें कमज़ोर भी कर सकती हैं।
कुछ सर्वथा अलग तरह के अध्ययनों में पता चला है कि तंत्रिकाएं अपने आसपास के ट्यूमर्स की वृद्धि को बढ़ावा देती हैं। उदाहरण के लिए टेक्सास हेल्थ साइन्स सेंटर के गुस्तावो आयला की टीम ने देखा था कि जब प्रयोगशाला के जंतुओं की प्रोस्टेट ग्रंथि को पहुंचने वाली तंत्रिकाओं को काट दिया गया या बोटॉक्स इंजेक्शन देकर खामोश कर दिया गया, तो प्रोस्टेट कैंसर सिकुड़ गया। ट्यूमर-ग्रस्त मनुष्यों में भी बोटॉक्स इंजेक्शन देने पर कैंसर कोशिकाओं की मृत्यु दर बढ़ गई थी।
यह भी पता चला है कि जिन कैंसर कोशिकाओं से तंत्रिकाएं नदारद होती हैं, उनकी सामान्य प्रक्रियाएं गड़बड़ हो जाती हैं। साउथ अलाबामा विश्वविद्यालय के साइमन ग्रेलेट ने सोचा कि कहीं उधार के माइटोकॉण्ड्रिया का स्रोत कट जाने का तो यह परिणाम नहीं है। ग्रेलेट, आयला और उनके दल ने देखा कि तश्तरियों में रखने पर स्तन कैंसर की कोशिकाओं और तंत्रिका कोशिकाओं के बीच सेतु बनने लगते हैं। जब उन्होंने तंत्रिकाओं के माइटोकॉण्ड्रिया को एक हरे प्रोटीन की मदद से शिनाख्त योग्य बना दिया तो देखा गया कि ये उपांग सेतुओं के ज़रिए कैंसर कोशिकाओं में जा रहे हैं।
शोधकर्ताओं ने यह भी दर्शाया कि यदि माइटोकॉण्ड्रिया रहित कैंसर कोशिकाएं तैयार करके उन्हें यह उपांग बाहर से दिया जाए तो कैंसर कोशिकाओं को बढ़ावा मिलता है। ऐसी माइटोकॉण्ड्रिया रहित कोशिकाएं विभाजित नहीं होतीं और उनकी ऑक्सीजन खपत भी कम रहती है। लेकिन जब इन्हें तंत्रिका कोशिकाओं के साथ रखा गया, तो 5 दिन में इनकी चयापचय क्रियाएं बहाल हो गईं और इनमें विभाजन भी होने लगा। शायद पड़ोसियों से मिले माइटोकॉण्ड्रिया के दम पर। इसी प्रयोग को आगे करने पर पता चला कि यह असर लंबे समय के लिए होता है।
शोधकर्ताओं ने यह जांच भी की कि क्या ऐसी पुन: सक्रिय हुई कैंसर कोशिकाओं के अन्य स्थानों/अंगों में फैलने (मेटास्टेसिस) की संभावना भी ज़्यादा होती है। इसकी जांच करने के लिए उन्होंने चूहों की तंत्रिका व कैंसर कोशिकाओं को साथ-साथ रखकर विकसित किया और फिर उन्हें मादा चूहे के उदर की वसा में डाल दिया। देखा गया पेट में ट्यूमर बना और जल्दी ही वह फेफड़ों तथा मस्तिष्क में फैल गया। यह भी देखा गया कि मूल ट्यूमर में तो मात्र 5 प्रतिशत कोशिकाओं ने तंत्रिकाओं से माइटोकॉण्ड्रिया हासिल किए थे लेकिन फेफड़े में पहुंची 27 प्रतिशत तथा मस्तिष्क में पहुंची 46 प्रतिशत कैंसर कोशिकाओं में आयातित माइटोकॉण्ड्रिया थे। अर्थात आयातित माइटोकॉण्ड्रिया मेटास्टेसिस को बढ़ावा देते हैं। जब प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित व्यक्तियों के ट्यूमर की कोशिकाओं का विश्लेषण किया गया तो पता चला कि तंत्रिकाओं के नज़दीक की कोशिकाओं में ज़्यादा माइटोकॉण्ड्रिया थे।
यह अनुसंधान कैंसर से निपटने का एक सर्वथा नया रास्ता सुझाता है। शोधकर्ता कहते हैं कि कैंसर से निपटने के लिए उसके आसपास की तंत्रिकाओं पर ध्यान देना उपयोगी होगा। आगे अनुसंधान का एक विषय यह भी होना चाहिए कि माइटोकॉण्ड्रिया के घातक लेन-देन को कैसे रोका जाए। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - September 2025
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