हम अक्सर सुनते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण लू, बाढ़, जंगलों में आग और समुद्र स्तर बढ़ रहे हैं। लेकिन अब इसका एक और चौंकाने वाला असर पता चला है - आल्प्स पर्वतों में ग्लेशियरों के पिघलने से भूकंप का खतरा बढ़ सकता है।
ऐसी घटना फ्रांस के मॉन्ट ब्लांक इलाके के एक ऊंचे बर्फ से ढंके पर्वत ग्रांड जोरासेस में घटी है। 2015 में जब इस क्षेत्र में भीषण गर्मी पड़ी तो भारी मात्रा में बर्फ पिघली। इसके तुरंत बाद पहाड़ के नीचे छोटे-छोटे भूकंप महसूस किए गए। कोई नुकसान तो नहीं हुआ, लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसे छोटे-छोटे भूकंप कभी-कभी बड़े भूकंप की चेतावनी भी होते हैं।
लेकिन बर्फ के पिघलने से भूकंप कैसे आ सकते हैं? जब ग्लेशियर पिघलते हैं तो पानी चट्टानों की दरारों से गहराई तक चला जाता है। वहां यह पानी चट्टानों पर दबाव बनाता है और ज़मीन के अंदर जो फॉल्ट लाइनें होती हैं, उनकी पकड़ कमज़ोर कर देता है। इन फॉल्ट लाइनों के फिसलने से ऊर्जा निकलती है जो भूकंप का कारण बनती है।
ऐसा नहीं है कि यह प्रक्रिया सिर्फ आल्प्स में होती है। वैज्ञानिकों ने ताइवान जैसे इलाकों में भी देखा है कि बारिश के हिसाब से भूकंप की संख्या बदलती है। इसी तरह, जहां फ्रैकिंग (तेल और गैस निकालने की प्रक्रिया) या जियोथर्मल ऊर्जा के लिए ज़मीन के भीतर दबाव के साथ पानी डाला जाता है, वहां भी छोटे भूकंप आ सकते हैं।
ETH ज्यूरिख के वैज्ञानिकों द्वारा मॉन्ट ब्लांक इलाके में छोटे भूकंप को मापने वाले यंत्रों की मदद से 2006 से अब तक दर्ज 12,000 से ज़्यादा छोटे-छोटे भूकंपों के विश्लेषण से पता चला है कि 2015 की गर्मी के बाद इन भूकंपों की संख्या बढ़ी थी। यही पैटर्न अगले साल की ग्रीष्म लहरों के बाद भी दिखे।
दिलचस्प बात यह है कि सतह के पास वाले छोटे भूकंप गर्मी के लगभग एक साल बाद बढ़े, जबकि गहराई (लगभग 7 कि.मी.) में आने वाले भूकंप दो साल बाद बढ़े। इसका कारण यह हो सकता है कि पानी को गहराई तक पहुंचने में समय लगता है।
भूकंप सम्बंधी ऐसे अनुभव पहले भी हुए हैं। 1960 के दशक में जब मॉन्ट ब्लांक टनल बनाई जा रही थी तो पहाड़ों के भीतर से अचानक तेज़ी से बहता हुआ बिलकुल ताज़ा पानी मिला। यह पानी इतना ताज़ा था कि उसमें अभी तक चट्टानों के खनिज भी नहीं घुल पाए थे।
हालांकि, कुछ वैज्ञानिकों ने इन निष्कर्षों पर थोड़ी सावधानी बरतने की बात कही है। वैज्ञानिक फिलिप वर्नांट का कहना है कि वैसे तो आंकड़े काफी मज़बूत हैं लेकिन यह भी मुमकिन है कि मॉन्ट ब्लांक सुरंग बनाने के प्रभाव देर से सामने आ रहे हों। इसलिए ज़रूरी है कि इस तरह की घटनाओं पर लंबे समय तक अध्ययन किए जाएं ताकि पता चल सके कि ऐसा पैटर्न केवल आल्प्स में है या दुनिया के अन्य पहाड़ी इलाकों में भी है।
अभी तक तो आल्प्स में आए इन भूकंपों से मॉन्ट ब्लांक सुरंग या आस-पास के शहरों को कोई खतरा नहीं है। इस क्षेत्र की इमारतें रिक्टर पैमाने पर 6 स्तर के भूकंप झेलने लायक बनाई गई हैं। लेकिन स्थिति हिमालय जैसे इलाकों में ज़्यादा गंभीर हो सकती है, जहां ग्लेशियर बहुत तेज़ी से पिघल रहे हैं और जहां बड़े और खतरनाक भूकंप आने की आशंका भी ज़्यादा है।
जलवायु परिवर्तन बढ़ता जा रहा है और यह अध्ययन हमें याद दिलाता है कि हमारी धरती पहले से ही एक नाज़ुक हालत में है; ग्लेशियर पिघलने जैसे छोटे बदलाव भी इसे और अस्थिर कर सकते हैं। (स्रोत फीचर्स)
-
Srote - September 2025
- प्रेरणा देती हैं विज्ञान कथाएं - डॉ. जयंत नार्लीकर
- हिंदी में विज्ञान की पहली थीसिस के 50 साल
- ई-डीएनए की मदद से हवा में बिखरे जीवन की पहचान
- एक नया रक्त समूह खोजा गया
- खुशबुएं ऑक्सीकरण कवच कमज़ोर कर सकती हैं
- Y क्रोमोसोम रहित ट्यूमर अधिक घातक होते हैं
- कैंसर ट्यूमर की मदद करती तंत्रिकाएं
- ऑनलाइन आलोचना से स्वास्थ्य एजेंसियों पर घटता विश्वास
- निजी अस्पतालों में आकस्मिक चिकित्सा पर पुनर्विचार ज़रूरी
- बंद आंखों से देख सकेंगे
- लीलावती की बेटियां: आज की कहानी
- पैंगोलिन पर प्रमुख खतरा
- व्हेल की हड्डियों से बने 20,000 साल पुराने हथियार
- शार्क की प्रतिरक्षा प्रणाली का चौंकाने वाला आयाम
- खटमल शायद पहला शहरी परजीवी कीट था
- यह जीव यूवी प्रकाश से भी बच निकलता है
- नौ भुजा वाला ऑक्टोपस
- पक्षी खट्टे फल शौक से खा सकते हैं
- ‘ड्रैगन मैन' का राज़ खुला
- खाद्य तेल की मदद से ई-कचरे से चांदी निकालें
- जलवायु परिवर्तन से आल्प्स क्षेत्र में भूकंप का खतरा
- मानव शरीर में कोशिकाएं: साइज़ और संख्या
