एक ताज़ा अध्ययन कहता है कि प्रजातियों के संरक्षण के मामले में छोटे किंतु विषय विशेषज्ञ जर्नल में प्रकाशन नेचर या साइंस जैसे प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशन से ज़्यादा असरदार होता है। यूएस में जोखिमग्रस्त प्रजाति अधिनियम (ESA) सम्बंधी निर्णय प्रक्रिया में उद्धरणों के अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष दिया गया है।
गौरतलब है कि वनों की कटाई, निर्माण कार्य, या ऐसी ही अन्य मानवीय गतिविधियों के चलते यदि जोखिमग्रस्त वन्यजीव पर खतरा मंडराता है तो ESA के तहत इन गतिविधियों पर लगाम कसी जा सकती है। 
वास्तव में होता यह है कि लोग प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशन करते हैं क्योंकि इससे संरक्षण शोधकर्ता के करियर में मदद मिलती है - नौकरी, पदोन्नति या फंडिंग के निर्णय इस आधार पर होते हैं कि शोधकर्ता के प्रकाशनों को कितनी बार उद्धरित किया गया और जिन जर्नल में वे प्रकाशित हुए उनका इम्पैक्ट फैक्टर क्या है। इम्पैक्ट फैक्टर यह बताता है कि किसी जर्नल में छेपे लेखों का हवाला कितने लेखों में दिया जाता हैष
शोधार्थियों को आम तौर पर शोध पत्र प्रजाति-विशिष्ट जर्नल में प्रकाशन न करने की सलाह दी जाती, क्योंकि उनका इम्पैक्ट फैक्टर कम होता है। शोध कितना भी बढ़िया और उपयोगी हो, विशिष्ट जर्नल में प्रकाशन से पाठक बहुत सीमित हो जाते हैं और आगे के अवसर भी।
ड्यूक विश्वविद्यालय के समुद्री संरक्षण जीवविज्ञानी ब्रायन सिलिमन और उनके साथियों को यह जानने का ख्याल आया कि कौन से जर्नल में प्रकाशित अध्ययनों का उल्लेख ESA में नई प्रजाति शामिल करते समय किया गया है। शोधकर्ताओं ने 2012 से 2016 के बीच ESA में जोड़ी गईं 260 प्रजातियों के 785 जर्नल में प्रकाशित शोध पत्रों के 4836 उल्लेखों का विश्लेषण किया। 
जर्नल के इम्पैक्ट फैक्टर के अनुसार उन्होंने पाया कि ESA के सिर्फ 7 प्रतिशत उल्लेख 9 से अधिक इम्पैक्ट फैक्टर वाले जर्नल से थे जबकि 87 प्रतिशत उल्लेख 4 से कम इम्पैक्ट फैक्टर (तथाकथित अप्रभावी) जर्नल से थे। मध्यम इम्पैक्ट फैक्टर वाले जर्नल के महज 6 प्रतिशत उल्लेख थे जबकि इम्पैक्ट फैक्टर की गणना से सर्वथा बाहर के जर्नलों का उल्लेख 13 प्रतिशत था।
इतना ही नहीं शोधकर्ताओं ने यह भी देखा कि ESA में शामिल होने के लिए किस जर्नल में प्रकाशन असरदार होगा। इसमें सर्वोच्च रैंक वाली पत्रिका थी पैसिफिक साइंस, जो एक क्षेत्रीय पत्रिका है और जिसका इम्पैक्ट फैक्टर महज 0.74 था।
कुल मिलाकर ESA उल्लेखों के सबसे महत्वपूर्ण स्रोत थे क्षेत्रीय पत्रिकाएं, टैक्सा-विशिष्ट पत्रिकाएं और साथ ही हैबिटैट विशिष्ट जर्नल। 
कंज़र्वेशन बायोलॉजी में प्रकाशित यह अध्ययन दर्शाता है कि संरक्षण कानून ठोस व्यावहारिक कार्य के आधार पर चलता है जो आम तौर पर विषय विशिष्ट पत्रिकाओं में प्रकाशित होता है, लेकिन यह काम अकादमिक प्रोत्साहन और वित्त पोषण प्रणालियों द्वारा पुरस्कृत नहीं किया जाता। लिहाज़ा, ज़रूरत इस बात की है कि विषय विशिष्ट पत्रिकाओं में प्रकाशन को भी समर्थन मिले। (स्रोत फीचर्स)