बहुत ही कम उम्र में महात्मा गांधी का मार्ग अपनाकर जीवन जीने वाली विमला बहुगुणा ने 14 फरवरी को देहरादून स्थित अपने घर पर अंतिम सांस ली। वे 92 वर्ष की थीं। अपने पीछे वे बेटी मधु पाठक और बेटे राजीव व प्रदीप को छोड़ गईं। उनके पति सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का 2021 में 94 वर्ष की आयु में निधन हो गया था।
अक्सर लोग विमला बहुगुणा को सुंदरलाल बहुगुणा के साथ मिलकर किए गए कामों के लिए याद करते हैं। लेकिन वे स्वतंत्र रूप में एक महान समाज सुधारक, न्याय की पैरोकार और पर्यावरण कार्यकर्ता थीं। उन्होंने स्वयं दूर-दराज़ के जंगलों में चिपको आंदोलन (पेड़ों को बचाने के लिए उनका आलिंगन करना) के साथ-साथ शराब-विरोधी और अन्य समाज सुधार आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया।
भूमिहीन लोगों के अधिकारों में दृढ़ विश्वास रखने वाली विमला बहुगुणा ने सरला बहन के मार्गदर्शन में ‘भूदान’ कार्यकर्ता के रूप में अपना सामाजिक काम शुरू किया था। वे भूमिहीन लोगों को भूमि दिलाने के लिए दूर-दराज़ के गांवों में जाती थीं।
भूदान आंदोलन के प्रसिद्ध नेता विनोबा भावे ने इन शुरुआती दिनों में विमला बहुगुणा के काम करने के तरीके और दूर-दराज़ के गांवों में उनके प्रभाव को करीब से देखा था: दूर-दराज़ के गावों में, और कई बार तो बहुत ही प्रतिकूल परिस्थितियों में, वे पहली बार भूदान का संकल्प दिलाने के लिए जाती थीं। विनोबा भावे के सचिव ने सरला बहन को (विनोबा भावे की भावनाएं व्यक्त करते हुए) लिखा था, “मैंने उसके जैसी लड़की कार्यकर्ता नहीं देखी। वह सिर्फ पहाड़ों की लड़की नहीं है, वह पहाड़ों की देवी है।”
सरला बहन ने इन गांवों से मिली प्रतिक्रिया के आधार पर बताया है कि एक नए क्षेत्र में काम करने के बावजूद, विमला को अक्सर अपने से अनुभवी स्थानीय पुरुष सदस्यों वाले समूह में नेतृत्व की भूमिका मिलती थी।
विमला बहुगुणा का दृढ़ विचार था कि महिलाओं को समानता का अधिकार मिले। उन्होंने सुंदरलाल बहुगुणा, जो उस समय प्रांतीय राजनीति के उभरते सितारे थे, के विवाह प्रस्ताव के समय यह शर्त रखी थी कि यदि सुंदरलाल राजनीतिक पार्टी की सदस्यता छोड़ने और महात्मा गांधी के मार्ग पर चलकर स्वयं लोगों की सेवा करने का मार्ग अपनाने के लिए सहमत होते हैं तभी वे विवाह के लिए राज़ी होंगी।
उन्होंने अपनी राह चुन ली थी और उसी पर चलीं। सुंदरलाल बहुगुणा ने सभी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को त्याग दिया। शादी के तुरंत बाद युवा जोड़े ने टिहरी गढ़वाल के एक सुदूर गांव सिलयारा में खुद के लिए एक बहुत ही साधारण-सा आश्रम बनाने के लिए कड़ी मेहनत की।
यहां वे सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए एक सहारा और प्रेरणादायक शख्सियत बन गईं, जिन्होंने नदियों और जंगलों की रक्षा के लिए, दलितों के समान अधिकारों के लिए, शराब की बढ़ती समस्याओं के खिलाफ काम किया और कई रचनात्मक गतिविधियों को भी बढ़ावा दिया।
जब भूकंप ने सिलयारा आश्रम के एक बड़े हिस्से को नष्ट कर दिया था, तब विमला बहुगुणा ने आश्रम का पुनर्निर्माण कार्य आरंभ होने तक बड़ी हिम्मत से इस मुश्किल घड़ी का सामना किया।
उनका सबसे कठिन और लंबा संघर्ष टिहरी बांध परियोजना के खिलाफ था। इस संघर्ष में सुंदरलाल ने बांध स्थल के पास नदी के किनारे एक झोंपड़ी में रहने की प्रतिज्ञा ली थी। उनके इस संघर्ष में वे दूर कैसे रह सकती थीं, तो विमला जी भी वहीं उनके साथ रहीं।
मैं 1977 के आसपास विमला जी से पहली बार मिला था। तब मैं 22 वर्षीय पत्रकार के रूप में चिपको आंदोलन और उससे जुड़े मुद्दों पर लिखने के लिए सिलयारा आश्रम गया था। बहुत जल्द ही वे हमारे परिवार के लिए एक प्रेरणास्रोत बन गईं। उनके अंतिम दिनों तक हम फोन पर बात करते रहे और जब मैं उन्हें अपनी नई किताब भेंट करने गया तो वे बहुत खुश हुईं थीं।
मैं जब-जब उनके घर या आश्रम गया, तब-तब मैं न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मामलों में उनकी गहरी रुचि से प्रभावित हुआ। वे हाल के घटनाक्रमों से अवगत होने के साथ-साथ इन मुद्दों पर मेरी राय जानने में बहुत रुचि रखती थीं, और बेशक इन पर वे अपनी टिप्पणियां और नज़रिया भी साझा करती थीं।
वे एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए प्रतिबद्ध थीं। चाहे कितनी भी बड़ी मुश्किलें आईं, वे कभी अपने मार्ग से विचलित नहीं हुईं।
उनके काम को विस्तार से इन दो किताबों - प्लेनेट इन पेरिल (Planet in Peril) और विमला एंड सुंदरलाल – चिपको मूवमेंट एंड स्ट्रगल अगेंस्ट टिहरी डैम प्रोजेक्ट (Vimla and Sunderlal Bahuguna—Chipko Movement and Struggle against Tehri Dam Project in Garhwal Himalaya) - में पढ़ा जा सकता है।
विमला जी सदैव एक प्रेरणा स्रोत रहेंगी। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - May 2025
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