किसी भी किसान को खुशी होगी यदि उसकी पथरीली और बंजर पड़ी भूमि पर हरी-भरी फसलें लहलहाने लगें। यही खुशी आज राजस्थान के करौली ज़िले के अनेक किसानों में दिख रही है।
मकनपुरस्वामी गांव (मंडरयाल ब्लॉक) के कृषक बल्लभ और विमला ने बताया कि उनके गांव में पत्थर का खनन होता रहा है तथा बहुत सारी ज़मीन पथरीली होने के साथ-साथ खनन के पत्थर भी इधर-उधर बिखरे रहते हैं। गांव में पानी की बहुत कमी थी। अत: उनकी ज़मीन का एक बड़ा हिस्सा बंजर पड़ा था। इस स्थिति में आसपास के अनेक गांवों ने चंदा एकत्र किया और श्रमदान करके वर्षा के बहते पानी को एक स्थान पर रोक कर जलसंकट को कुछ हद तक कम किया।
वे आगे बताते हैं कि इससे भी बड़ा बदलाव तब आया जब ‘सृजन’ नामक संस्था ने जल स्रोतों से मिट्टी हटवाकर खेतों में डलवाई। इससे जल स्रोत में गहराई आई, अधिक जल एकत्र होने लगा व खेतों का उपजाऊपन बढ़ा। खेतों की मेड़बंदी की तो उनमें भी पानी रुकने लगा। कृषि भूमि का समतलीकरण किया गया। इस सबका मिला-जुला असर यह हुआ कि बहुत सी पथरीली बंजर भूमि पर अब खेती होने लगी।
बल्लभ व विमला अपने हरे-भरे सब्ज़ी के खेत दिखाते हुए बताते हैं कि बीज, पौधों व प्राकृतिक खेती के प्रशिक्षण का यह असर है। आरंभ में प्राकृतिक खेती में कुछ कठिनाई आई पर अब प्राकृतिक खेती से उत्पादित गेहूं की कीमत डेढ़ गुना मिल रही है। विविध सब्ज़ियों का फसल-चक्र वर्ष भर चलता रहता है जिससे आय भी होती है व पोषण भी सुधरता है। पशुओं के गोबर व मूत्र की खाद बनाने के लिए बायो-रिसोर्स सेंटर भी उन्होंने स्थापित किया है।
इसी गांव के किसान मानसिंह बताते हैं कि संस्था की मदद से व सरकारी विभागों से प्राप्त सब्सिडी से उन्हें सोलर पंप सेट लगाने में सहायता मिली है। सोलर पंप बहुत कामयाब हैं व डीज़ल के खर्च में बहुत कमी आई है, जबकि प्राकृतिक खेती के प्रसार से अन्य खर्चों में भी बहुत कमी आई है।
इसी ब्लॉक में जगदड़पुरा की महिला किसान संगठित हुई हैं और वे नियमित मीटिंग कर विकास कार्य को आगे बढ़ाती हैं। यह गांव राजस्थान की सीमा पर है व थोड़ा-सा आगे जाकर मध्य प्रदेश का मुरैना ज़िला या चंबल के बीहड़ आरंभ हो जाते हैं। अत: यहां भूमि बंजर होने का खतरा बीहड़ों के प्रसार से भी है, और मिट्टी के अधिक कटाव से बीहड़ फैलते व बढ़ते हैं। गांव के किसान अपनी मेहनत से ज़मीन को समतल कर इस कठिन परिस्थिति को संभालते हैं।
जल संरक्षण से लेकर प्राकृतिक खेती जैसे विभिन्न प्रयासों से इस गांव में लगभग 25 हैक्टर बंजर भूमि पर खेती होने लगी है व इससे लगभग दो गुनी भूमि पर फसल की सघनता व उत्पादकता बढ़ी है। जिस भूमि पर पहले केवल बाजरा होता था, उस पर अब गेहूं, चना, सरसों व सब्ज़ियां सब हो रहे हैं। सृजन संस्था के माध्यम से सरकारी कृषि विज्ञान केंद्र से भी किसानों का मज़बूत का सम्बंध बना है व सिलाई मशीन, सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर आदि का लाभ मिला है।
खारा पानी गांव की बड़ी समस्या है। जब जल जीवन मिशन में लगे नल से बेहतर गुणवत्ता का पानी आने लगा तो लोग बहुत प्रसन्न हुए पर किसी अन्य गांव में फसल के लिए पानी लेने हेतु पाइपलाइन तोड़ दी गई तो यहां नल में पानी आना रुक गया और लोग फिर खारा पानी पीने को मजबूर हो गए।
ऐसे अनेक गांवों में संस्था, सरकार और समुदाय की भागीदारी से बहुत कम बजट में जल स्रोतों के निर्माण, पुराने जल स्रोतों के सुधार, मेड़बंदी, भूमि समतलीकरण आदि कार्यों से बंजर भूमि को हरा-भरा करने की संभावनाएं बनाई गई हैं। पांच वर्षों के इस प्रयास में 1250 एकड़ बंजर भूमि पर खेती संभव हुई व 286 पोखरों का सुधार हुआ जबकि 96 नए पोखर बनाए गए। इस प्रयास से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। (स्रोत फीचर्स)