विगत दिनों लास्कर अवार्ड 2024 की घोषणा की गई। इस वर्ष के लोक सेवा (पब्लिक सर्विस) श्रेणी में इस पुरस्कार के लिए कुरैशा अब्दुल करीम और सलीम अब्दुल करीम की जोड़ी को चुना गया है। यह सम्मान उन्हें विषमलैंगिक यौन सम्बंधों में एचआईवी फैलाने वाले प्रमुख वाहकों/कारकों पर प्रकाश डालने, और एचआईवी की रोकथाम एवं उपचार का जीवनदायिनी तरीका देने के लिए मिला है। साथ ही, विश्व स्तर पर बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति में अग्रणी योगदान और उसकी वकालत के लिए भी इस पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया है। कुरैशा और सलीम दोनों ही कोलंबिया युनिवर्सिटी में रोगप्रसार विज्ञान के विशेषज्ञ हैं, साथ ही गैर-मुनाफा संस्थान सेंटर फॉर एड्स प्रोग्राम ऑफ रिसर्च इन साउथ अफ्रीका (CAPRISA) के संस्थापक हैं।

कुरैशा और सलीम ने 1988 में दक्षिण अफ्रीका में एचआईवी पर काम शुरू किया था। इस समय तक दक्षिण अफ्रीका में एचआईवी संक्रमण उजागर नहीं हुआ था। उन्होंने समुदाय-आधारित सर्वेक्षण कर 1992 में यह बताया था कि वहां 1 प्रतिशत से अधिक लोगों में एचआईवी संक्रमण मौजूद है, और पुरुषों की तुलना में तीन गुना अधिक महिलाएं इससे संक्रमित हैं। इसके अलावा, 20 साल से कम उम्र के (किशोर) लड़कों में यह लगभग न के बराबर फैला था जबकि किशोर लड़कियों में इसका प्रसार सर्वाधिक था। निष्कर्ष स्पष्ट था कि किशोर लड़कियों को संक्रमण किशोर लड़कों से नहीं, बल्कि वयस्क पुरुषों से मिल रहा था।

ये नतीजे अविश्वसनीय थे क्योंकि अन्य देशों में एचआईवी मुख्यत: पुरुषों को प्रभावित करता है। लेकिन अब्दुल करीम द्वय ने बताया कि अफ्रीका के संदर्भ में एचआईवी से महिलाएं अधिक असुरक्षित हैं। महिलाओं के एचआईवी से बचाव के लिए उन्होंने (असुरक्षित) यौन सम्बंधों से परहेज़ और कंडोम उपयोग करने की सलाह दी। लेकिन ये उपाय अपर्याप्त लग रहे थे। क्योंकि वयस्क और बुज़ुर्ग पुरुषों के पास सामाजिक ताकत होती है और वे अपनी ताकत का उपयोग कर लड़कियों को यौन सम्बंध बनाने के लिए मजबूर कर सकते हैं, और इसी शक्ति अंसतुलन के कारण लड़कियां कंडोम का उपयोग करने के लिए आग्रह भी नहीं कर पातीं।

इसलिए अब्दुल करीम द्वय ने ऐसे तरीके खोजने शुरू किए जिनके उपयोग से लड़कियों और महिलाओं को सुरक्षित रहने के लिए पुरुषों पर निर्भर न रहना पड़े, वे स्वयं ही एचअईवी से बचाव के तरीके अपना सकें। कई सारी विफलताओं और छोटी-मोटी सफलताओं के बाद, अंतत: 18 साल के सतत प्रयास से उन्हें एचआईवी की रोकथाम का प्रभावी तरीका खोजने में सफलता मिल गई।

दरअसल पूर्व के प्रयासों में वे रोकथाम के लिए ऐसी औषधि तैयार करना चाह रहे थे जो एचआईवी वायरस को कोशिकाओं में प्रवेश ही न करने दे, लेकिन ऐसी औषधियां कारगर नहीं रहीं। इसलिए उन्होंने एक ऐसे रसायन (टेनोफोविर) का मलहम तैयार किया जिसे योनि पर लगाने से एचआईवी वायरस कोशिकाओं में पहुंचता तो है लेकिन उसकी प्रतियां बनाने की क्षमता जाती रहती है। अंतत: यह एंटीरेट्रोवायरल औषधि कारगर रही; इसका इस्तेमाल करने वाली महिलाओं में नए एचआईवी संक्रमण की घटनाएं 39 प्रतिशत तक कम हो गईं। आगे चलकर यह औषधि टेनोफोविर गोली के रूप में आई जो अधिक सस्ती, लेने में आसान और अत्यधिक प्रभावी थी।

अंतत: विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे संपर्क-पूर्व रोकथाम के उपाय (Pre-Exposure Prophylaxis, PrEP) के रूप में मान्यता दे दी।

करीम दंपति ने असुरक्षित यौन सम्बंधों के अलावा ऐसे अन्य कारकों की भी पहचान की जो महिलाओं को एचआईवी संक्रमण के प्रति अधिक असुरक्षित बनाते हैं। उदाहरण के लिए, जननांगों में सूजन एचआईवी संक्रमण को पकड़ने का जोखिम बढ़ाती है, और यह रोगनिरोधक टेनोफोविर की प्रभावशीलता को भी कम करती है। साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि जननांग का सूक्ष्मजीव संसार (माइक्रोबायोम) भी इसमें भूमिका निभाता है। इस काम ने एचआईवी से निपटने के नए रास्ते खोले।

इस बीच, एक अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या जन्मी थी। दक्षिण अफ्रीका में, एड्स से पीड़ित अधिकांश लोगों को टीबी भी था। चिकित्सक एड्स और टीबी की दवाएं साथ लेने के संभावित दुष्प्रभावों से चिंता में थे। करीम दंपती ने अध्ययन कर एड्स और टीबी के सह-संक्रमण वाले लोगों के प्रभावी उपचार और देखभाल का तरीका बताया, जिसे डब्ल्यूएचओ ने अपना लिया।

लास्कर पुरस्कार: एक परिचय

सन 1945 में अल्बर्ट लास्कर और मैरी लास्कर द्वारा लास्कर पुरस्कारों की शुरुआत की गई थी। लास्कर पुरस्कार मानव स्वास्थ्य को बेहतर बनाने वाली मौलिक जीव वैज्ञानिक खोजों और उपचारों के लिए दिया जाता है। इन पुरस्कारों का उद्देश्य विज्ञान के लिए सार्वजनिक समर्थन के महत्व को रेखांकित करना भी है।

लास्कर पुरस्कार चार श्रेणियों के तहत दिए जाते हैं :

अल्बर्ट लास्कर बुनियादी चिकित्सा अनुसंधान पुरस्कार: यह पुरस्कार किसी ऐसे बुनियादी अनुसंधान के लिए दिया जाता है जिसने जैव-चिकित्सा विज्ञान में एक नई ज़मीन तैयार की हो।

लास्कर-डेबेकी नैदानिक चिकित्सा अनुसंधान पुरस्कार: यह पुरस्कार नैदानिक अनुसंधान में किसी ऐसी बड़ी प्रगति को दिया जाता है, जिसने लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाया हो।

लास्कर-कोशलैंड चिकित्सा विज्ञान में विशेष उपलब्धि पुरस्कार: यह पुरस्कार शानदार और सम्मानीय शोध उपलब्धियों और अग्रणी वैज्ञानिक नीति निर्माण प्रयासों के लिए दिया जाता है।

लास्कर-ब्लूमबर्ग लोक सेवा पुरस्कार: यह चिकित्सा अनुसंधान, सार्वजनिक स्वास्थ्य या स्वास्थ्य सेवा के बारे में जनता की समझ को बेहतर करने के लिए; चिकित्सा विज्ञान या स्वास्थ्य में प्रगति को गति देने वाली नीति, नियम-कानूनों या अन्य पहलों के समर्थन में प्रमुख भूमिका निभाने के लिए; चिकित्सा विज्ञान या सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए समर्थन देने या मुहैया कराने में योगदान के लिए; सार्वजनिक स्वास्थ्य पर काम करके कई लोगों के जीवन को लाभान्वित करने के लिए दिया जाता है।

दोनों शोधकर्ताओं ने दशकों तक अध्ययन कर अफ्रीका में एचआईवी संचरण के चक्र को भी समझा। इसके लिए उन्होंने एचआईवी वायरस के हज़ारों संस्करणों का अनुक्रमण किया। फिर उन लोगों के समूह बनाए जो एक जैसे वायरस से या निकट सम्बंधी संस्करणों से संक्रमित थे। इस काम ने यह पुख्ता किया कि किशोर लड़कियों और युवा महिलाओं को एचआईवी संक्रमण उनसे करीब 9 साल बड़े पुरुषों मिलता है। फिर ये संक्रमित महिलाएं जिन पुरुषों के साथ यौन सम्बंध बनाती हैं उनमें से 39 प्रतिशत पुरुष अपने से बहुत छोटी लड़कियों के साथ यौन सम्बंध बनाते हैं और यह चक्र चलता रहता है, संक्रमण फैलता रहता है। उनके इन निष्कर्षों ने एड्स उन्मूलन के लिए नई नीति की बुनियाद रखी।

करीम द्वय ने 2002 में, दक्षिण अफ्रीका में एड्स अनुसंधान कार्यक्रम (CAPRISA) की भी स्थापना की और संक्रामक रोगों पर काम करने के लिए युवा वैज्ञानिकों को तैयार किया हैं। इसी संस्था की अगुवाई में एचआईवी और तपेदिक सह-संक्रमण के अध्ययन हुए। कोविड-19 के दौरान, इस संस्थान के वैज्ञानिकों ने एचआईवी वायरस अनुक्रमण और विश्लेषण के दौरान विकसित अपनी दक्षताओं का उपयोग कर SARS-CoV-2 वायरस के संस्करणों को समझा और उसके प्रसार के तरीकों के बारे में चेताया।

करीम दंपती ने न सिर्फ शोधकार्य किए बल्कि वे बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए अग्रणी नेता के तौर पर उभरे। उन्होंने बेबुनियाद बातों और दावों का जवाब दिया। न सिर्फ जवाब दिया बल्कि व्याप्त मिथकों पर जागरुकता जगाने के लिए सतत सक्रिय रहे। मसलन, 1999 में, दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति ने दावा किया कि एचआईवी दरअसल एड्स का कारण नहीं है। मौतों का कारण तो टीबी और कुपोषण हैं और इस आधार पर उन्होंने उन क्लीनिकों से समर्थन वापस ले लिया जो मां से बच्चे में एचआईवी संक्रमण फैलने से रोकने के लिए एंटीरेट्रोवायरल वितरित कर रहे थे। कुरैशा ने साक्ष्यों के साथ सरकार के इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दी। अदालत ने सरकार के खिलाफ फैसला सुनाया और ज़रूरतमंदों के लिए दवा वितरण के लिए सरकार को बाध्य किया।

करीम दंपती टीवी, रेडियो, प्रिंट हर तरह के मीडिया से लगातार लोगों को जागरूक करते रहे, सवाल उठाते रहे। वे स्वास्थ्य अनुसंधान और स्वास्थ्य नीतियों सम्बंधी विभिन्न फोरम, समितियों, संगठनों के सदस्य हैं।

उनके इन सभी योगदान को मान्यता देने के लिए उन्हें लास्कर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। (स्रोत फीचर्स)