वैसे तो कई सारे नर मादा को रिझाने के लिए तरह-तरह के तरीके अपनाते हैं। कई अपने रंग-रूप से लुभाते हैं, कुछ अपनी शक्ति से, कुछ गाकर, तो कुछ नाच कर। लेकिन बॉवरबर्ड कुल (ptilonorhynchidae) के सदस्यों के नर की प्रणयलीला का अंदाज़ निराला है। अपनी मादाओं को नर बॉवरबर्ड रिझाते तो नाच-गाकर ही हैं, लेकिन इसके लिए वे पहले पूरा मंच (स्टेज) बनाते हैं, उसे सजाते हैं। और तो और, हालिया अध्ययन बताता है कि वे अपने मंच में ऐसा इंतज़ाम करते हैं कि उनका गाना मादाओं को मोहित करने के लिए एकदम सही सुरों में सुनाई दे। इतना ही नहीं, वे अपने दर्शकों (मादाओं) के लिए परफॉर्मेंस देखते-देखते खानपान की व्यवस्था भी करते हैं। यानी मूवी के साथ पॉपकॉर्न भी!
वास्तव में, अनूठी प्रणयलीला के चलते बॉवरबर्ड के प्रदर्शन पर काफी अध्ययन हुए हैं। लेकिन ये सभी अध्ययन दृश्य इंतज़ामों और प्रदर्शन तक सीमित थे। पता चला था कि बॉवरबर्ड टहनियां वगैरह इकट्ठी करके मेहराबदार सुंरगनुमा, बॉवर या ऊंची कुटिया बनाते हैं। इसके द्वार से सटे आंगन की सजावट वे कंकड़-पत्थर, शंख, हड्डियों और कांच या प्लास्टिक के रंगीन टुकड़ों से करते हैं। जब यह कुटिया बनकर तैयार हो जाती है तो नर तेज़, कर्कश आवाज़ें निकालकर इसके बारे में मादाओं को सूचना देते हैं। अगर कोई मादा इस पुकार को सुनकर चली आती है, और कुटिया की बनावट और सजावट उसे भा जाती है तो वह अंदर प्रवेश करती है। बस फिर क्या, नर उड़कर (पीछे की ओर बने) आंगन में आ जाता है और अपनी कलाकारी का प्रदर्शन शुरू कर देता है। मादा सुरंगनुमा कुटिया के दरवाज़े से आंगन में खड़े नर बॉवरबर्ड का केवल सिर ही देख पाती है। नर का प्रदर्शन भी उसी के अनुरूप होता है।
नर बॉवरबर्ड तेज़, कर्कश, हिस्स्सकारती हुई आवाज़ में गाना गाता है। गाने के साथ वह मादा को लुभाने के लिए संटियां, फल जैसी विभिन्न वस्तुएं चोंच से उछाल-उछाल कर दिखाता है, और गर्दन घुमाकर अपने सिर के पीछे बने गुलाबी पंखों का मुकुट भी दिखाता है।
लेकिन, जैसा कि ऊपर भी कहा गया है कि ये सारे अवलोकन बॉवरबर्ड की दृश्य गतिविधियों पर केंद्रित थे। डीकिन युनिवर्सिटी के प्रकृति-इतिहासकार जॉन एंडलर जानना चाहते थे कि क्या कुटिया की बनावट और आंगन की सजावट ‘गाने’ को मादा के लिए रुचिकर बनाने कोई भूमिका निभाते हैं?
अपने अध्ययन के लिए उन्होंने उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के निवासी ग्रेट बॉवरबर्ड (Chlamydera nuchalis) को चुना। पहले तो उनकी टीम ने उत्तरी क्वींसलैंड के वनों में नर बॉवरबर्ड्स के ‘प्रेमालाप’ की रिकॉर्डिंग की। इसके बाद, उन्होंने कुटिया के प्रवेश द्वार (जहां नर होता है) पर स्पीकर को रखकर इस रिकॉर्डिंग को चलाया, और जहां आम तौर पर मादा का सिर होता है वहां माइक्रोफोन लगाकर ध्वनियों को रिकॉर्ड किया ताकि यह समझा जा सके कि कुटिया के आकार के कारण नर का प्रेमगीत मादा को कैसा सुनाई देता है। फिर, टीम ने व्यवस्थित रूप से कुटिया के आंगन में सजाई गई विभिन्न सजावटी वस्तुओं को हटाया और पता किया कि प्रत्येक सामग्री से कुटिया के अंदर सुनाई पड़ने वाली ध्वनि पर कैसा प्रभाव पड़ता है।
बिहेवियोरल इकोलॉजी में प्रकाशित नतीजे बताते हैं कि नर ग्रेट बॉवरबर्ड बेहतरीन साउंड इंजीनियर होते हैं। कुटिया का आकार नर के गीत को ऊंचा कर देता है, जिससे अंदर मौजूद मादा को यह ज़्यादा तेज़ सुनाई देता है। आंगन की सजावट भी आवाज़ को प्रभावित करती है; शंख जैसी सख्त सतह भी टकराने वाली आवाज़ को तेज़ कर देती हैं।
नर ग्रेट बॉवरबर्ड मादा के लिए न सिर्फ आकर्षक भवन, गीत और नृत्य प्रदर्शन का इंतज़ाम करते हैं बल्कि वे शो के दौरान खाने की चीज़ों का इंतज़ाम भी करते हैं। वे कुटिया की दीवारों को लार और वनस्पतियों से रंगते हैं, और उनके प्रदर्शन को देखते हुए मादा इसे चबाती हैं। रिझाने के लिए एक और पैंतरा! 
देखा जाए तो यह अध्ययन अपने-आप में काफी दिलचस्प है लेकिन इस संदर्भ में कई और चीज़ें समझना बाकी हैं। जैसे मादा कर्कश या मृदु आवाज़ों या मोटी-पतली आवाज़ों में गाए गए प्रेमगीतों पर कैसी प्रतिक्रिया देती हैं। (स्रोत फीचर्स)