कई दशकों से वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों की चेतावनी देते आए हैं। ये प्रभाव अब हर जगह दिखने लगे हैं। पिछले कुछ वर्षों में समुद्र स्तर में हो रही वृद्धि और भीषण गर्मी ने मानव जीवन और पर्यावरण को बुरी तरह प्रभावित किया है। पृथ्वी का तापमान बढ़ने के साथ समुद्र तल में वृद्धि हो रही है और तटीय क्षेत्रों में बाढ़ और कटाव का खतरा बढ़ता जा रहा है। दूसरी ओर शहरों में अत्यधिक गर्मी जानलेवा साबित हो रही है। इससे निपटने का सबसे उचित तरीका तो कार्बन उत्सर्जन को सीमित करना और अपनी खपत को कम करना है लेकिन इसके साथ ही बदलती जलवायु के प्रति अनुकूलन भी महत्वपूर्ण है।
इसके लिए, नए-नए तरीकों और नवाचारों पर काम किया जा रहा है। बढ़ते समुद्र स्तर से निपटने के लिए तैरते शहरों और उभयचर घरों जैसी अवधारणाएं प्रस्तुत की गई हैं, वहीं भीषण गर्मी से राहत के लिए सुपरकूल सामग्री और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए नई एयर कंडीशनिंग तकनीकें विकसित की जा रही हैं। इन उपायों का उद्देश्य उन्नत तकनीकों की मदद से आबादी को बाढ़ और अत्यधिक गर्मी जैसे खतरों से सुरक्षित करना है। आइए ऐसे कुछ नवाचारों और समाधानों पर चर्चा करें।
तटों की सुरक्षा और जलवायु अनुकूलन
वैज्ञानिक गणनाओं के अनुसार वर्तमान उत्सर्जन की स्थिति में वर्ष 2100 तक समुद्र स्तर में एक मीटर से भी अधिक की वृद्धि हो सकती है, जिससे निचले तटीय क्षेत्रों की आबादी प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होगी। इस समस्या से निपटने के लिए ‘क्लायमेटोपिया’ का विचार काफी प्रासंगिक हो गया है। क्लायमेटोपिया शब्द दरअसल युटोपिया का रूपांतरण है जिसका मतलब होता है सबके लिए आदर्श कल्पनालोक। इन बस्तियों की कल्पना विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए की जा रही है, जो कुछ वर्षों में जलमग्न हो सकते हैं। उच्च तकनीकी परियोजनाओं के जरिए इन बस्तियों में बाढ़ के प्रभावों को कम करने और ऊर्जा दक्षता बढ़ाने के उपाय के रूप में देखा जा रहा है।
ऐसे विचारों में पानी पर आवास या तैरते घर, गेड़ियों (स्टिल्ट्स) पर बने घर और उभयचर आवास शामिल हैं। देखा जाए तो इनमें से कोई भी विचार नया नहीं है। जैसे पूर्व में पेरू की टिटिकाका झील में कृत्रिम द्वीप और वियतनाम तथा नाइजीरिया में स्टिल्ट हाउस बनाए गए हैं। उत्तर-पूर्वी भारत में ऐसे घर बहुतायत में बनते हैं। तैरते घरों के रूप में डल झील के शिकारे तो मशहूर हैं ही। एम्स्टर्डम के आइबर्ग क्षेत्र में उभयचर घरों की परियोजना काफी सफल रही है। फर्क इतना है कि आधुनिक क्लायमेटोपिया उच्च तकनीक वाले शहरों के रूप में उभर रहे हैं, जिनमें सौर पैनल, स्वास्थ्य सेवाएं, स्कूल और अन्य सुविधाएं शामिल हैं हालांकि, इन डिज़ाइनों में भी चुनौतियां मौजूद हैं, और इन्हें लागू करते समय स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखना होगा।
क्लायमेटोपिया को तीन मुख्य श्रेणियों में बांटा गया है:
1. पुनर्निर्मित भूमि: तटीय क्षेत्रों में रेत और मिट्टी जमा करके नई भूमि बनाई जाती है। चीन में ओशियन फ्लावर आइलैंड इसका एक उदाहरण है, लेकिन आवश्यक निवेश आकर्षित करने के बावजूद इस प्रकार की परियोजनाएं पर्यावरणीय प्रभाव और स्थानीय समुदायों पर संभावित व्यवधान के कारण विवादास्पद हो सकती हैं।
2. उभयचर घर: ये घर ज़मीन पर टिके होते हैं, लेकिन जल स्तर बढ़ने पर तैर सकते हैं। हालांकि, इसका एक नकारात्मक पहलू यह है कि ऐसी परियोजनाएं लोगों को उच्च जोखिम वाले बाढ़ क्षेत्रों में रहने के लिए प्रोत्साहित करेंगी।
3. तैरते शहर: ये शहर पूरी तरह से समुद्र या लैगून पर स्थित होते हैं और इन्हें इंटरलॉकिंग मॉड्यूलर प्रणाली के साथ डिज़ाइन किया जाता है। मालदीव में 20,000 लोगों के निवास के लिए डिज़ाइन की गई फ्लोटिंग सिटी इसका एक उदाहरण है, लेकिन बड़े तूफानों की स्थिति में इन शहरों की दीर्घकालिक स्थिरता पर सवाल उठते हैं।
चुनौतियां
क्लायमेटोपिया परियोजनाओं की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वे कितनी प्रभावी और सुरक्षित हैं। पुनर्निर्मित द्वीप सबसे महंगे होते हैं और इनके निर्माण में समय भी अधिक लगता है। वहीं, उभयचर घरों की लागत अपेक्षाकृत कम होती है और वे आवश्यक सेवाओं तक आसान पहुंच प्रदान करते हैं। लेकिन समुद्री तूफानों और सुनामी जैसी आपदाओं के दौरान इन डिज़ाइनों की स्थिरता पर संदेह बना रहता है। इसलिए सरकारों और योजनाकारों को इन परियोजनाओं की दीर्घकालिक व्यवहार्यता का मूल्यांकन करना होगा।
इसके अलावा, इनके निर्माण से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा असर पड़ सकता है तथा भारी मात्रा में सामग्रियों के निष्कर्षण और परिवहन से कार्बन उत्सर्जन होता है। पुनर्निर्मित द्वीप जैव विविधता को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जबकि तैरते शहर मौसम के पैटर्न को बदल सकते हैं और समुद्री जीवों को प्रभावित कर सकते हैं। इन प्रभावों को कम करने के लिए सरकारों और शोधकर्ताओं को सतत विकास प्रक्रियाओं का पालन करना और पारिस्थितिकीय आकलन को प्राथमिकता देनी होगी।
इन परियोजनाओं के सामाजिक और आर्थिक प्रभावों पर भी ध्यान देना आवश्यक है। उदाहरण के लिए, क्लायमेटोपिया जैसी परियोजनाएं मुख्यतः अमीर लोगों को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं, जिससे गरीब समुदायों के लिए इनका लाभ सीमित हो जाता है। इसके अतिरिक्त, इन परियोजनाओं के चलते पारंपरिक मछली पकड़ने और अन्य स्थानीय गतिविधियों पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है। इसलिए, इन नवाचारों को सफल और न्यायसंगत बनाने के लिए सरकारों को सामाजिक न्याय को प्राथमिकता देते हुए किफायती आवास और जीवन-यापन के साधनों को भी इन परियोजनाओं का हिस्सा बनाना चाहिए।
गर्मी से निपटना
वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण शहरों में अत्यधिक गर्मी महसूस की जा रही है, जिससे पानी की कमी, फसलों को नुकसान, और स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इस समस्या का समाधान करने के लिए, वैज्ञानिक नए-नए तरीकों पर काम कर रहे हैं जो बिजली की कम से कम खपत के साथ ठंडक प्रदान कर सकते हैं। इसमें अधिक कुशल एयर कंडीशनर और विशेष सामग्री शामिल हैं जो बिना बिजली का उपयोग किए सतहों को ठंडा रख सकती हैं।
शीतलकों में परिवर्तन
पारंपरिक एयर कंडीशनर इमारत के अंदर से गर्मी को बाहर की ओर ले जाने के लिए एक गैसीय पदार्थ को संपीड़ित करते हैं। इस प्रक्रिया में बहुत अधिक ऊर्जा का उपयोग तो होता ही है, ग्रीनहाउस गैसों का भी उत्सर्जन होता है। इन्हें ऊर्जा-कुशल बनाने के लिए, शोधकर्ता एक नई तकनीक ‘इलेक्ट्रोकैलोरिक' कूलिंग पर काम कर रहे हैं।
इस प्रक्रिया में, कुछ विशेष सिरेमिक सामग्री का उपयोग किया जाता है। इन सामग्रियों में विद्युत क्षेत्र आरोपित करने पर पदार्थ का तापमान बढ़ जाता है। इसके बाद एक द्रव की मदद से उस गर्मी को बाहर ले जाया जाता है ताकि सिरेमिक पदार्थ का तापमान कम हो जाए यह एक ऐसा परिवर्तन है जिसका उपयोग शीतलन उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।
सुपरकूल सामग्री
सुपरकूल सामग्री दरअसल बिजली का उपयोग किए बिना सतहों को ठंडा रखती है। वैसे तो अधिकांश सामग्री सूर्य की रोशनी को परावर्तित करती हैं और इंफ्रारेड विकिरण का उत्सर्जन करती हैं। लेकिन सूपरकूल सामग्री ये दोनों ही कार्य अत्यंत कुशलता से करती हैं।
आम तौर पर हर सतह इंफ्रारेड तरंगें उत्सर्जित करती है जिन्हें वातावरण में मौजूद कार्बन डाईऑक्साइड और जलवाष्प वगैरह सोख लेते हैं और वातावरण गर्म हो जाता है। सुपरकूल पदार्थ भी ऐसा ही करते हैं लेकिन वे जो इंफ्रारेड तरंगें छोड़ते हैं उनकी तरंग लंबाई उस परास में होती है जिन्हें वायुमंडल में सोखा नहीं जाता और वे अंतरिक्ष में चली जाती हैं। लिहाज़ा वातावरण ठंडा रहता है। यह तकनीक शहरों में हवा के तापमान को कम करने में भी मदद कर सकती है, जिससे शहरी क्षेत्र अधिक आरामदायक और एयर कंडीशनिंग पर कम निर्भर हो सकते हैं।
गौरतलब है कि पिछले कई वर्षों से वैज्ञानिक प्लास्टिक, धातुओं से लेकर पेंट और यहां तक कि लकड़ी को सुपरकूल सामग्री के रूप में विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन हाल ही में सैल्मन मछली के शुक्राणुओं के डीएनए और जिलेटिन से बना एक सुपरकूल एरोजेल तैयार किया गया है जो हवा के तापमान की तुलना में सतहों को 16 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा रख सकता है। इस सामग्री को तैयार करने में बायोडिग्रेडेबल सामग्री का उपयोग किया गया है इसलिए यह पर्यावरण के अनुकूल भी है।
इमारतों की ठंडी सतह
सतहों को ठंडा रखने के लिए वैज्ञानिक सूपरकूल सामग्री से आगे बढ़कर कूल सामग्री पर प्रयोग कर रहे हैं। ‘कूल सामग्री' का उत्पादन आसान है और ये प्रभावी भी हैं। इन्हें भारी मात्रा में सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। सुपरकूल सामग्रियों के विपरीत, कूल सामग्री को अत्यधिक परावर्तक होना चाहिए, किसी विशिष्ट तरंग लंबाई का उत्सर्जन करने की चिंता नहीं की जाती है।
शोधकर्ता इमारतों की खड़ी सतहों (भवनों के अग्रभाग) के लिए ऐसी सामग्री विकसित कर रहे हैं। यह एक मुश्किल काम है क्योंकि खड़ी सतहें आकाश और ज़मीन दोनों की ओर उन्मुख होती हैं। इस वजह से ये गर्मियों में धरती से निकलने वाली गर्मी को सोख लेती हैं और ठंड में गर्मी को आकाश में बिखेर देती हैं। इसका समाधान भौतिक संरचना में मिला है। एक विशेष कोटिंग गर्मियों में आकाश की ओर गर्मी को बिखेरकर दीवारों को ठंडा कर सकती है, जबकि सर्दियों में यह धरती की ओर कम गर्मी बिखेरती है।
एक अन्य तरीका है इमारत की दीवारों के विशिष्ट हिस्सों पर सुपरकूल पेंट का उपयोग करना है। इसमें खड़ी सतह को लहरदार बनाया जाता है। इस लहरदार (यानी कोरुगेटेड) सतह के आकाश की ओर उन्मुख हिस्सों पर परावर्तक पेंट लगाया जाता है। जमीन की ओर उन्मुख सतहों पर ऐसी धातु का लेप किया जाता है जो गर्मी को कम सोखे। इस संयोजन से दीवार आसपास की हवा की तुलना में 2-3 डिग्री सेल्सियस ठंडी रही।
इसके अलावा, धरती को ठंडा रखने के तरीकों पर भी विचार किया गया है एक प्रयोग में, शोधकर्ताओं ने एरिज़ोना में शॉपिंग सेंटर की पार्किंग में एक परावर्तक ‘ठंडा फुटपाथ’ बनाया। यह हल्के रंग का फुटपाथ आसपास के गहरे रंग के फुटपाथ से 8 डिग्री सेल्सियस ठंडा था, और इसके ऊपर की हवा लगभग 1 डिग्री सेल्सियस ठंडी थी।
आकार बदलने वाली सामग्री
ऑस्ट्रेलिया में, इंजीनियर प्रावस्था-बदल स्याही (‘फेज़-चेंजिंग इंक’) विकसित कर रहे हैं, जिसे तापमान के आधार पर इमारतों को ठंडा या गर्म रखने के लिए उपयोग किया जा सकता है। इस स्याही में नैनोकण होते हैं जो तापमान के साथ प्रावस्था बदलते हैं। ऊंचे तापमान पर इन कणों का संयोजन धातु की तरह व्यवहार करता है और गर्मी को परावर्तित करता है। कम तापमान पर इनका संयोजन एक सुपरकंडक्टर की तरह व्यवहार करता है और गर्मी अपने अंदर आने देता है।
प्रयोगशाला से बाज़ार तक
हालांकि ये प्रौद्योगिकियां काफी आशाजनक हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश विकास के शुरुआती चरणों में हैं। कुछ का परीक्षण केवल प्रयोगशालाओं या छोटे पैमाने पर किया गया है, इसलिए उनकी उपयोगिता को समझने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है।
यह भी सवाल है कि ये प्रौद्योगिकियां अलग-अलग जलवायु में कितनी अच्छी तरह काम करेंगी। उदाहरण के लिए, सुपरकूल सामग्री आर्द्र या बादल वाले वातावरण में कम प्रभावी हो सकती है, जहां वातावरण अधिक गर्मी को कैद करता है। इन चुनौतियों के बावजूद, शोधकर्ता आशावादी हैं। भले ही ये सामग्री हवा को अपेक्षा के अनुसार ठंडा न कर सकें, लेकिन वे इसे गर्म करने में भी योगदान नहीं देंगी।
इसमें एक बड़ी चुनौती लोगों को इन नई तकनीकों को अपनाने के लिए प्रेरित करना है। हल्की, अधिक परावर्तक छतों का उपयोग करने जैसे सरल परिवर्तन स्पष्ट लाभ प्रदान करने के बावजूद अभी तक व्यापक नहीं हुए हैं। फिर भी लॉस एंजेल्स सहित कई शहरों ने ठंडे फुटपाथ और अन्य शीतलन रणनीतियों को लागू करना शुरू कर दिया है।
ऑस्ट्रेलिया में सिडनी की एक टीम ने दुनिया भर में 300 से अधिक परियोजनाओं में शीतलन सामग्री का उपयोग किया है, जिसमें सऊदी अरब के रियाद में एक प्रमुख पहल भी शामिल है। इसका उद्देश्य शहर के तापमान को 4.5 डिग्री सेल्सियस तक कम करना है। यह परियोजना अधिक आरामदायक शहरी वातावरण बनाने के लिए ठंडी और सुपरकूल सामग्रियों के संयोजन के साथ-साथ अधिक हरियाली का उपयोग करती है। ज़्यादा से ज़्यादा शहरों में इन नवाचारों के प्रयोग से हम यह समझ पाएंगे कि भीषण गर्मी से खुद को बचाने का सबसे बेहतर तरीका कौन-सा है।
जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बढ़ रहा है, चुनौतियों का सामना करने के लिए नवाचारों की आवश्यकता है। तैरते शहर, उभयचर घर और सुपरकूल सामग्री जैसे समाधान हमें जलवायु परिवर्तन के खतरों से सुरक्षित रख सकते हैं, लेकिन इन्हें सावधानीपूर्वक और टिकाऊ विकास के सिद्धांतों के तहत लागू करना आवश्यक है। इन तकनीकों को लागू करने में सामाजिक न्याय और समानता पर भी ध्यान देना होगा, ताकि समाज के सभी वर्गों को इनका लाभ मिल सके। (स्रोत फीचर्स)