मलेरिया रोकथाम के दो नए उपाय सामने आए हैं। एक उपाय में इंसानी खून को मच्छरों के लिए ज़हरीला बनाने का प्रयास किया गया है ताकि काटते ही मच्छर मर जाएं। दूसरे उपाय में कोशिश यह है कि मच्छरों को मलेरिया परजीवी के लिए अनुपयुक्त बना दिया जाए।
पहले उपाय में आइवरमेक्टिन नामक एक दवा का उपयोग शामिल है। यह दवा न केवल कृमियों को मारती है बल्कि जूं जैसे कीटों का भी खात्मा करती है। इसके अलावा जब कोई व्यक्ति इसे गोली के रूप में लेता है, तो उसका खून पीने वाले कीट भी मर जाते हैं।
विचार यह आया कि यदि मच्छर ऐसे व्यक्ति को काटें जिसने हाल ही में आइवरमेक्टिन ली हो, तो क्या वे भी मर जाएंगे? और अगर एक साथ पूरा समुदाय यह दवा ले ले, तो क्या मच्छरों की संख्या घट सकती है? 
प्रयोगशाला परीक्षण के नतीजे काफी उत्साहजनक रहे। एक दिन पहले आइवरमेक्टिन लेने वाले लोगों के खून पर पले 73 प्रतिशत मच्छर दो दिन में मर गए, जबकि नियंत्रण समूह में केवल 31 प्रतिशत। लेकिन असली चुनौती वास्तविक दुनिया में इसके असर को साबित करना था।
अक्टूबर 2023 में दक्षिण केन्या के क्वाले काउंटी में एक बड़ा परीक्षण बरसात के मौसम की शुरुआत में हुआ, जब मच्छरों की संख्या तेज़ी से बढ़ती है। अध्ययन में 84 बस्तियों को शामिल किया गया था। आधी बस्तियों के लोगों को तीन महीने तक, हर महीने आइवरमेक्टिन दी गई। और बाकी आधों को परजीवी नाशी दवा अल्बेंडेज़ोल दी गई, जो मच्छरों पर कोई असर नहीं करती। अगले छह महीनों में आइवरमेक्टिन समूह में बच्चों में मलेरिया के नए मामलों में 26 प्रतिशत की कमी आई।
हालांकि कई वैज्ञानिक इस नतीजे से सहमत नहीं हैं। एक तो, 26 प्रतिशत की कमी व्यापक इस्तेमाल के लिए पर्याप्त नहीं है। दूसरा, यह दवा गर्भवती महिलाओं और शिशुओं को नहीं दी जा सकती। इसके अलावा बुर्किना फासो के दो परीक्षणों और गिनी-बिसाऊ (2024) के एक परीक्षण में कोई खास फायदा नहीं दिखा था।
हालांकि, केन्या परीक्षण थोड़ा अलग था - दवा बरसात की शुरुआत में ही दे दी गई थी, जब मच्छर तेज़ी से बढ़ते हैं, और कई बार दी गई। एक अतिरिक्त फायदा यह हुआ कि खुजली और जुओं का भी सफाया हो गया।
फिर भी इसकी कई चुनौतियां हैं। गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों के लिए यह दवा सुरक्षित नहीं है। हर खुराक के बाद दवा खून में कुछ ही दिनों तक प्रभावी रहती है। लंबे समय तक असर करने वाले संस्करणों पर फिलहाल शोध चल रहा है। मलेरिया के मामलों में महज़ 26 प्रतिशत कमी लागत और मेहनत के हिसाब से पर्याप्त नहीं है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का नियम है कि जब तक कम से कम दो बड़े और उच्च-गुणवत्ता वाले परीक्षणों में मज़बूत सुरक्षा न दिखे, किसी तरीके को बड़े पैमाने पर अपनाने की सिफारिश नहीं की जा सकती। शोधकर्ता भी उपरोक्त शंकाओं को दूर करने की दिशा में और शोध कार्य करने की योजना बना रहे हैं।
दूसरा तरीका मच्छरों को ही मलेरिया के खिलाफ हथियार बनाने का है। नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक नए अध्ययन में मच्छरों के जीन में बदलाव करके उन्हें मलेरिया परजीवी (प्लाज़्मोडियम) का वाहक बनने से रोकने का प्रयास किया गया है। आगे, जीन ड्राइव नामक तकनीक से इस गुण को तेज़ी से मच्छरों की आबादी में फैलाया जा सकता है।
आम तौर पर मच्छर अपने जीन का आधा हिस्सा ही अगली पीढ़ी को देते हैं। लेकिन जीन ड्राइव एक खास आनुवंशिक तकनीक है, जो इस नियम को बदल देती है। यह चुने हुए जीन को लगभग सभी संतानों में पहुंचाती है, जिससे वह तेज़ी से पूरी आबादी में फैल जाता है।
यह तरीका कारगर तो है, लेकिन विवादास्पद भी है, क्योंकि इससे किसी प्रजाति में स्थायी और बड़े पैमाने पर बदलाव हो सकते हैं, जिनके पर्यावरण पर अनजाने असर पड़ सकते हैं।
इसलिए नए शोध में वैज्ञानिकों ने कृत्रिम जीन बनाने की बजाय, मच्छरों में पहले से प्राकृतिक रूप से मौजूद एक उत्परिवर्तन का सहारा लिया। इस उत्परिवर्तन के चलते कुछ एनॉफिलीज़ गैंबिया मच्छरों में एक प्रोटीन का थोड़ा बदला हुआ रूप पाया जाता है। यह बदला हुआ प्रोटीन मलेरिया परजीवी को मच्छर के शरीर में अपना जीवन-चक्र पूरा करने में मुश्किल पैदा करता है।
पहले, FREP1 नामक परजीवी-रोधी जीन को एनॉफिलीज़ स्टीफेन्सी मच्छरों में डाला गया।
परिवर्तित मच्छरों ने सामान्य मच्छरों के साथ भोजन और संभोग-साथी पाने के लिए बराबरी से प्रतिस्पर्धा की। यानी यह बदलाव मच्छरों को कमज़ोर तो नहीं बनाता।
जब इन मच्छरों ने सबसे घातक मलेरिया परजीवी प्लाज़्मोडियम फाल्सीपेरम युक्त वाला मानव रक्त पीया, तो उनके शरीर और लार ग्रंथियों में सामान्य मच्छरों की तुलना में बहुत कम परजीवी पाए गए।
दूसरे चरण में, परिवर्तित जीन तेज़ी से फैलाने के लिए वैज्ञानिकों ने मच्छरों में सामान्य जीन को काटकर उसकी जगह प्रतिरोधी संस्करण डाल दिया। नियंत्रित माहौल में, केवल 10 पीढ़ियों में यह जीन 94 प्रतिशत से अधिक मच्छरों में फैल गया।
वैज्ञानिक उक्त तकनीकों को लेकर उत्साहित हैं, लेकिन सतर्क भी हैं। ये सफल रहे तो भी इनका उपयोग मच्छरदानी, दवाइयों और कीटनाशकों जैसी अन्य रोकथाम विधियों के साथ मिलाकर ही करना होगा।
और, कुछ सवाल अभी अनुत्तरित हैं। जैसे, क्या मच्छर या मलेरिया परजीवी इस तरह की सुरक्षा के प्रतिरोधी हो जाएंगे? ऐसे मच्छर प्रकृति में छोड़े गए, तो पर्यावरण व पारिस्थितिकी पर दीर्घकालिक असर क्या होंगे? अनचाहे परिणामों से बचाव कैसे किया जाएगा? (स्रोत फीचर्स)
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Srote - October 2025
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