कभी सर्फिंग और पर्यटन के लिए मशहूर हिंद महासागर का फ्रांसीसी रीयूनियन द्वीप आज एक अलग ही वजह से वैज्ञानिकों का ध्यान खींच रहा है - शार्क हमलों का खतरा।
हमलों का सिलसिला फरवरी 2011 में शुरू हुआ था; अगले आठ सालों में इस द्वीप के आसपास शार्क ने 30 लोगों पर हमला किया, जिनमें से 11 की मौत हो गई। इन हमलों के चलते इस द्वीप को ‘शार्क द्वीप’ या ‘शार्क संकट’ कहा जाने लगा।
हमलों के चलते समुद्र तट बंद कर दिए गए, सर्फिंग और तैराकी पर रोक लगा दी गई। पर्यटन बुरी तरह प्रभावित हुआ। लेकिन इसी संकट ने वैज्ञानिक शोध का एक मौका भी दिया। फ्रांस सरकार ने शार्क के व्यवहार को समझने, तटों की सुरक्षा बढ़ाने और नई तकनीकें विकसित करने के लिए करोड़ों यूरो का निवेश किया। रीयूनियन द्वीप शार्क अनुसंधान का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया।
शार्क हमलों को समझना
शार्क की संख्या और उनकी गतिविधियों को लेकर ज़्यादा जानकारी नहीं थी, इसलिए इन हमलों का कोई कारण समझ नहीं आ रहा था। तब फ्रांस सरकार ने CHARC नामक एक रिसर्च प्रोग्राम शुरू किया। यह कार्यक्रम दो प्रमुख शार्क प्रजातियों - बुल शार्क (Carcharhinus leucas) एवं टाइगर शार्क (Galeocerdo cuvier) - पर केंद्रित था, जो ज़्यादातर हमलों के लिए ज़िम्मेदार मानी गई थीं। मकसद था इनके व्यवहार, प्राकृतवास और आवाजाही को समझना, ताकि भविष्य में ऐसे टकरावों को रोका जा सके।
CHARC प्रोजेक्ट से कई अहम जानकारियां मिलीं। वैज्ञानिकों ने पाया कि टाइगर शार्क एक तय मौसम में ही आती थीं और उन्हें गहरा पानी पसंद है। दूसरी ओर, बुल शार्क साल भर मौजूद रहती थीं और अक्सर तट के बेहद करीब तक आ जाती थीं। 
हमलों का कारण
इन हमलों में बढ़ोतरी के पीछे कई कारण थे। सबसे बड़ा कारण इंसानों की बढ़ती गतिविधियां थीं। 1980 से 2016 के बीच रीयूनियन द्वीप की आबादी 67 प्रतिशत बढ़ गई थी और साथ ही तैराकी और सर्फिंग भी, जिससे शार्क से सामना होने की संभावना भी बढ़ी। 
इसके अलावा, ज़मीन के इस्तेमाल और नई निर्माण परियोजनाओं का भी प्रभाव पड़ा। 2000 के दशक में एक बड़ा सिंचाई प्रोजेक्ट शुरू हुआ, जिससे द्वीप के पूर्वी हिस्से का पानी पश्चिमी हिस्से की ओर मोड़ा गया। इससे खेतों से निकला पानी समुद्र में बहने लगा और तटीय पानी की लवणीयता घट गई। बुल शार्क को कम लवण वाला पानी पसंद है। नतीजतन, वे पश्चिमी तटों पर ज़्यादा आने लगीं। यही तट सर्फरों के बीच भी सबसे लोकप्रिय थे।
शार्क हमलों में बढ़ोतरी के पीछे कुछ अन्य कारण भी हैं। जैसे, 2007 में समुद्री जीवन की रक्षा के लिए एक समुद्री संरक्षण क्षेत्र बनाया गया था। इससे मछलियों की संख्या बढ़ी जो शार्क का भोजन हैं। साथ ही, 1990 के दशक के मध्य में मेडागास्कर द्वीप में विषैला संक्रमण फैलने से शार्क का मांस बेचना बंद कर दिया गया। इससे शार्क पकड़ने में कमी आई, और उनकी संख्या बढ़ने लगी।
यानी शार्क संकट पर्यावरणीय बदलाव, इंसानी गतिविधियों, और शार्क की स्थानीय स्थिति को ठीक से न समझने का मिला-जुला परिणाम था।
बचाव के नए प्रयास
जनता के बढ़ते दबाव को देखते हुए सरकार ने 2016 में शार्क सुरक्षा केंद्र की स्थापना की थी। इसका उद्देश्य एक ऐसा रास्ता निकालना था जिससे शार्क हमले कम हों, लेकिन समुद्री पर्यावरण भी सुरक्षित रहे।
इस दिशा में एक बड़ा कदम इलेक्ट्रिक डेटरेंट्स था। ये पहनने योग्य उपकरण होते हैं जो बिजली के हल्के झटके छोड़ते हैं जिससे शार्क दूर रहती है।
उपकरणों की जांच में नतीजे मिले-जुले रहे - एक उपकरण 43 प्रतिशत मामलों में कारगर रहा, बाकी उससे भी कम मामलों में। फिर आशंका इस बात की भी थी कि समय के साथ शार्क इन झटकों की आदी हो गईं तो? फिर भी इन निष्कर्षों के आधार पर नियम सख्त कर दिए गए हैं। अब रीयूनियन में कुछ क्षेत्रों में सर्फिंग करने वालों को इलेक्ट्रिक डेटरेंट पहनना अनिवार्य है।
इसके अलावा, ड्रोन का उपयोग भी शार्क की निगरानी के लिए किया गया, लेकिन यहां की गंदी और गहरे रंग की रेत के चलते ड्रोन से शार्क को पहचानना मुश्किल था। विकल्प के रूप में पानी के अंदर एआई तकनीक से लैस कैमरे, गोताखोर और समुद्री जाल जैसी रक्षात्मक व्यवस्थाएं भी आज़माई गईं।
दुनिया भर में जो एक तकनीक सबसे खास रही, वह थी SMART ड्रमलाइन (Shark Management Alert in Real Time)। इसमें चारा लगे हुक होते हैं जो शार्क को पकड़ते हैं, लेकिन जैसे ही कोई जीव फंसता है, यह उपकरण सैटेलाइट से तुरंत अलर्ट भेज देता है। फिर अधिकारी तुरंत मौके पर पहुंचकर देखते हैं, यदि कोई अन्य जीव फंसा हो तो उसे छोड़ दिया जाता है, और अगर शार्क खतरनाक हो तो स्थिति अनुसार उसे मार भी देते हैं।
शार्क सिक्यूरिटी सेंटर के निदेशक माइकल होरॉ मानते हैं कि सुरक्षा और समुद्री जीवन संरक्षण के बीच संतुलन बनाना आसान नहीं है। अब रीयूनियन प्रशासन का रुख थोड़ा नरम हुआ है। अब वे छोटी टाइगर शार्क को छोड़ देते हैं, और उन्हें टैग कर ट्रैक करने की योजना बना रहे हैं।
बहरहाल, 2019 के हमले के बाद से अब तक रीयूनियन द्वीप पर कोई जानलेवा शार्क हमला नहीं हुआ है। द्वीप का समुद्री पर्यटन धीरे-धीरे बहाल हो रहा है। तैराकी पर लगे प्रतिबंधों में भी ढील दी गई है। और दुनिया भर से वैज्ञानिक रीयूनियन आ रहे हैं ताकि इस द्वीप से पूरी दुनिया के लिए कुछ सबक ले सकें। 
एक सबक
समुद्र जीवविज्ञानी अर्नो गॉथियर कहते हैं कि लोग शार्क को अक्सर दो नज़रियों देखते हैं - या तो बेचारी के रूप में, या फिर हमलावर के रूप में। लेकिन सच्चाई इन दोनों के बीच कहीं है। वे समुद्र में स्वतंत्र रूप से विचरने वाले जीव हैं, शायद खतरनाक भी हो सकते हैं, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वे हर इंसान को मारने की फिराक में रहते हैं।
ज़रूरत तो इस बात की है कि हम न सिर्फ शार्क के व्यवहार को समझें बल्कि प्रकृति के कामकाज में टांग अड़ाने के अपने व्यवहार पर भी थोड़ा नियंत्रण करें। (स्रोत फीचर्स)