भारत में जंगली (wild) बिल्ली परिवार की 15 प्रजातियां पाई जाती हैं। लेकिन ज़्यादा ध्यान अमूमन बड़ी बिल्ली प्रजातियों जैसे शेर, बाघ पर दिया जाता है। लोगों को छोटी जंगली बिल्लियों, जैसे स्याहगोश (कैरकाल, caracal), रोहित-द्वीपी बिल्ली (rusty spotted cat), मछुआरा बिल्ली आदि के बारे में ज़्यादा मालूमात नहीं है। ये छोटी और गुमनाम बिल्लियां भी उचित पहचान की हकदार हैं, क्योंकि ये अपने से कहीं ज़्यादा बड़े और बढ़ते खतरों से भरी दुनिया में विचरण कर रही हैं।
भारत की आर्द्रभूमियां मछुआरा बिल्लियों (Prionailurus viverrinus) के घर हैं। देश में इनके कई नाम हैं: बनबिरल, खुप्या बाघ, माचा बाघा वगैरह। यह पश्चिम बंगाल की राज्य पशु है और इसे बघरोल या मेचो बिराल कहा जाता है।
ये बिल्लियां आकार में घरेलू बिल्ली से दुगनी होती हैं, वज़न 7 से 12 किलोग्राम होता है, और इनके भूरे-भूरे रंग के बालों पर काले चित्ते होते हैं। अपने अधिकार-क्षेत्र (इलाके) में यह बिल्ली अक्सर शीर्ष शिकारी होती है, यानी कोई अन्य प्राणी इनका शिकार नहीं करता। आर्द्रभूमियां जीवंत पारिस्थितिक तंत्र होती हैं, नदी के बाढ़ क्षेत्र या मैंग्रोव और दलदल जहां ये पाई जाती हैं।
मछुआरा बिल्ली में हुए कुछ असामान्य अनुकूलन उन्हें नम परिवेश में जीवित रहने में सक्षम बनाते हैं। आंशिक रूप से जालीदार पंजे, घना जलरोधी आवरण (फर) और पानी में पूरी तरह डूबे होने पर भी तैरने की क्षमता इसकी जलीय प्रवृत्ति बताती है। उभरे हुए पंजे, जिन्हें पूरी तरह से अंदर नहीं खींचा जा सकता, बिल्ली को फिसलन भरी मिट्टी में पकड़ बनाने और मछलियों को पकड़ने में मदद करते हैं। बिल्लियों का आहार मुख्य रूप से मछली है, हालांकि कृंतक, मुर्गियां और अन्य छोटे जानवर खाने से भी ये परहेज़ नहीं करती हैं।
शिकार की फिराक में मछुआरा बिल्ली का आधा समय जलस्रोत के किनारे खड़े, बैठे या दुबके हुए बीतता है। इसके शिकार करने का बमुश्किल 5 प्रतिशत समय ही पानी के अंदर बीतता है। उथले पानी में बिल्ली धीरे-धीरे चलती रहती है, अपने पंजों से मछली को उचकाती है और फिर उसे मुंह से पकड़ लेती है।
मछुआरा बिल्लियों को फैलाव काफी बिखरा हुआ है: हिमालय का तराई क्षेत्र, पश्चिमी भारत के कुछ दलदली क्षेत्र, सुंदरवन, पूर्वी तट और श्रीलंका।
इन निशाचर, छुपी रुस्तम बिल्ली की बिखरी हुई आबादी पर नज़र रखने के लिए वन्यजीव सर्वेक्षणकर्ता जलस्रोतों के नज़दीक कैमरा ट्रैप लगाते हैं। फिशिंग कैट प्रोजेक्ट की तियासा आद्या और उनके सहयोगियों के एक नेटवर्क (fishingcat.org) द्वारा चिल्का झील में विस्तृत गिनती की गई है, जहां मछलियां बहुतायत में हैं और मनुष्यों के साथ उनका टकराव सीमित है। उनके परिणामों का विस्तार करने पर ऐसा अनुमान है कि मछुआरा बिल्लियों की संख्या झील के 1100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में करीबन 750 है।
यह आशाजनक संख्या सुंदरबन में बिल्लियों की तेज़ी से घटती संख्या के विपरीत है। इस साल की शुरुआत में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (भरतपुर) में मछुआरा बिल्ली देखी गई है, इसके दिखने के पहले तक ऐसा माना जा रहा था कि राजस्थान में मछुआरा बिल्लियां पूरी तरह विलुप्त हो चुकी हैं।
यह गिरावट मुख्यत: उनके प्राकृतवास में कमी के कारण है। ऐसा अनुमान है कि पिछले चार दशकों में भारत की 30-40 प्रतिशत आर्द्रभूमियां खत्म हो गई हैं या बहुत अधिक सिमट गई हैं। इसलिए, आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करना मछुआरा बिल्लियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। मनुष्यों के अतिक्रमण ने भी मछुआरा बिल्लियों और उनके प्राकृतवास को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। कई लोग उन्हें मछलियों और मुर्गियों के शिकारी के रूप में देखते हैं, नतीजतन मनुष्य अपने पालतुओं के शिकार का बदला इन्हें मारकर लेते हैं। मनुष्यों द्वारा बदले की भावना से की गई हत्याओं की एक बड़ी संख्या दर्ज है। समुदाय-आधारित संरक्षण कार्यक्रम इस शत्रुभाव को कम करने में मुख्य भूमिका निभा सकते हैं।
इस वर्ष, देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान ने आंध्र प्रदेश में कोरिंगा वन्यजीव अभयारण्य में गोदावरी नदी के मुहाने पर मछुआरा बिल्लियों की निगरानी के लिए एक परियोजना शुरू की है। बिल्लियों में जीआईएस तकनीक से लैस जीपीएस कॉलर लगाकर उनका स्थान सम्बंधी सटीक डैटा एकत्र किया जाएगा। कॉलर से प्राप्त सतत डैटा उनके पसंदीदा आवासों, उनकी गतिविधियों और मानव बस्तियों के संपर्क में आने के स्थानों के बारे में जानकारी देगा। ये सभी जानकारियां मछुआरा बिल्लियों के संरक्षण व आबादी बढ़ाने की रणनीतियां बनाने में उपयोगी होंगी। (स्रोत फीचर्स)
-
Srote - October 2025
- भरपेट संतुलित भोजन कई बीमारियों के लिए टीके से कम नहीं
- टमाटर - एक सेहतमंद सब्ज़ी
- क्या लीथियम याददाश्त बचाने में मददगार है?
- संक्रमण सुप्त कैंसर कोशिकाओं को जगा सकते हैं
- वायरस बनने की राह पर एक सूक्ष्मजीव
- अनावश्यक गर्भाशय निकालने के विरुद्ध अभियान ज़रूरी
- मलेरिया रोकथाम के दो नए प्रयास
- शार्क हमलों से एक द्वीप बना अनुसंधान केंद्र
- घड़ियाल संरक्षण के पचास साल: क्या हम सफल हुए?
- मछुआरा बिल्ली की खोज में
- पहाड़ी जंतुओं में गंध की संवेदना कम
- क्लोरोप्लास्ट चुराते समुद्री घोंघे
- अमेज़ॉन के जंगलों में बढ़ता पारा प्रदूषण
- मिथेन उत्सर्जन पर नज़र रखने वाला उपग्रह लापता
- निसार सैटेलाइट से धरती की हर हलचल पर नज़र
- होर्मुज़ जलडमरूमध्य का महत्व
- रासायनिक उद्योगों का हरितीकरण
- प्लास्टिक प्रदूषण संधि की चुनौतियां
- ग्लोबल वार्मिंग पर विवादित रिपोर्ट से मचा हंगामा
- खगोल भौतिकी में चहलकदमी
- भारतीय उपमहाद्वीप की आबादी
