सौर ऊर्जा से चलने वाले समुद्री घोंघों की कोशिकाओं में विशेष भंडार गृह होते हैं, जहां वे शैवालों से चुराए गए क्लोरोप्लास्ट जमा करके रखते हैं। इन भंडार गृहों का रासायनिक परिवेश ऐसा होता है कि चोरी के इस माल (क्लोरोप्लास्ट) को जीवित व कामकाजी हालत में रखा जा सकता है ताकि सूर्य का प्रकाश मिलने पर यह पोषण का संश्लेषण कर सके। शोधकर्ताओं ने इस भंडार गृह को क्लोरोप्लास्ट रेफ्रिजरेटर की संज्ञा दी है। मज़ेदार बात यह है कि सामान्य स्थिति में यहां भंडारित क्लोरोप्लास्ट प्रकाश संश्लेषण के ज़रिए स्लग को भोजन उपलब्ध कराता है, वहीं आपात स्थिति में स्लग इसे पचाकर भी आहार प्राप्त कर लेते हैं।
यह बात दशकों से पता रही है कि समुद्री घोंघों की कई प्रजातियां जिस शैवाल का भक्षण करती हैं, उनके क्लोरोप्लास्ट को जमा करके रख लेती हैं। इस चोरी को क्लेप्टोप्लास्टी कहते हैं। लेकिन स्लग कोशिका के अंदर तो मात्र क्लोरोप्लास्ट जमा होता है, शैवाल की पूरी कोशिका नहीं। वैज्ञानिक यह नहीं जानते थे कि पूरी शैवाल कोशिका के सहारे के बगैर क्लोरोप्लास्ट जीवित व कामकाजी कैसे बना रहता है।
हारवर्ड विश्वविद्यालय के निकोलस बेलोनो व साथियों द्वारा सेल में प्रकाशित शोध पत्र में इसी सवाल पर विचार किया गया है। बेलोनो की टीम ने स्वयं घोंघे की कोशिकाओं द्वारा हाल ही में बनाए गए प्रोटीन्स की निशानदेही कर दी। पता चला कि अधिकांश प्रोटीन्स का निर्माण मूल शैवाल द्वारा नहीं बल्कि स्वयं घोंघे द्वारा किया गया था। मतलब हुआ कि घोंघे ने क्लोरोप्लास्ट को सहेजकर रखा था और वह प्रकाश संश्लेषण कर पा रहा था।
क्लोरोप्लास्ट को सूक्ष्मदर्शी से देखने पर पता चला कि उसे घोंघे की आंत में एक खास प्रकोष्ठ में रखा गया था। प्रत्येक प्रकोष्ठ एक ऐसी झिल्ली से घिरा था जो ठीक वैसी ही पाई गई जैसी एक अन्य कोशिकांग फैगोसोम के आसपास पाई जाती है। कोशिका में फैगोसोम का काम यह होता है कि वह लायसोसोम नामक एक अन्य कोशिकांग से जुड़ जाता है और अनावश्यक कोशिकांगों को पचाने का काम करता है। शोधकर्ताओं ने इस संरचना को क्लेप्टोसोम (चोरी रिक्तिका) नाम दिया है। (स्रोत फीचर्स)