एकलव्य द्वारा चलाए जा रहे होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम में दूर-दराज़ फैले हुए बच्चों-विद्यार्थियों से संपर्क बनाने का एक पुराना परन्तु फिर भी अनोखा तरीका अपनाया गया है। जैसे और जगह भी होता है -- यहां भी एक काल्पनिक चरित्र बच्चों को सवाल पूछने के लिए उकसाता है, नाम है उसका सवालीराम। अनोखा इस मायने में कि बच्चों के ढेर सारे पत्रों में से सिर्फ एक-दो के बजाए, हर बच्चे को उस के ख़त का जवाब दिया जाता है। आप ही सोचिए कि कहीं एक छोटे-से गांव में रह रहे बच्चे को अपने खत का जवाब पाकर कैसा लगता होगा।
हर महीने ढेर सारे खत आते हैं बच्चों के किसी में सिर्फ एक-दो सवाल तो कुछ ऐसे जिन पर तिल धरने की भी जगह नहीं! और प्रश्नों की विविधता का भी क्या कहना। इस स्तंभ में हम आपके सामने हर बार उनके कुछ सवाल और उन्हें दिए गए जवाब प्रस्तुत करेंगे।
सवालीराम
हवाई जहाज़ कैसे उड़ता है?
दूर, ऊंचे नीले आसमान में उड़ता हवाई जहाज़ देखना सभी को अच्छा लगता है। बहुत बार हवाई जहाज़ को देखकर तुम्हारे मन में प्रश्न उठता होगा कि इतना बड़ा और भारी हवाई जहाज़ हवा में कैसे उड़ लेता है?
इस बात को समझने के लिए तुम एक आसान-सा प्रयोग करके देखो। कागज़ की एक पतली-सी पट्टी काटकर उसे एक सिरे से पकड़ो। जो सिरा हाथ में है उसे अपने मुंह के पास लाकर पट्टी की ऊपरी सतह पर जोर-से फूंक मारो।
तुम्हें यह देखकर हैरानी होगी कि पट्टी नीचे दबने की बजाए ऊपर की तरफ उठ रही है। और उसे ऊपर बनाए रखने के लिए तुम्हें लगातार फूंक मारते रहना पड़ रहा है। तुम जैसे ही फेंकना बंद कर दोगे, पट्टी वापस नीचे लटक जाएगी।
हवाई-जहाज़ को भी तो उड़ने के लिए पहले हवा में ऊपर उठना पड़ता है और फिर आगे बढ़ना पड़ता है। ऊपर उठने वाला काम उसी सिद्धांत से होता है जिससे इस प्रयोग में कागज़ ऊपर उठा था।
पर फर्क इतना ही है कि उसके ऊपर फूंक मारने के बजाए हवाई जहाज़ को ही तेज़ रफ्तार से दौड़ा दिया जाता है। उड़ान भरने से पहले जहाज़ उड़ान पट्टी पर बहुत तेजी से दौड़ता है। इससे हवाई जहाज़ के पंखों के ऊपर और नीचे की हवा बहती हुई सी ही लगती है।
पर कागज़ की पट्टी के ऊपर फेंक मारने वाले प्रयोग से बात यहीं फर्क हो जाती है। कागज़ की पट्टी के सिर्फ ऊपर की ओर फूंक मारी थी पर यहां तो हवा जहाज़ के ऊपर और नीचे, दोनों तरफ बहती प्रतीत होती है। फिर भी हवाई जहाज़ ऊपर की ओर उठता है। इसके लिए कभी ध्यान से हवाई जहाज़ के पंखों का आकार देखें तो बात कुछ समझ आएगी। या फिर हवाई जहाज़ के पंखो के आकारनुमा कागज़ की आकृतियां बनाकर एक प्रयोग की मदद से भी हम इसे समझ सकते हैं।
कागज़ की दो पट्टियां लो। एक 8 से.मी. x 4 से.मी. की और दूसरी 10 से.मी. x 4 से.मी. की। चित्र में जैसा दिखाया है वैसे बड़ी पट्टी को छोटी पट्टी पर चिपकाओ। एक तरफ ऊपर से और दूसरी तरफ घुमाकर नीचे से। अब इसके बीच से एक साफ सूजा (या लम्बी सुई) घुसा दो और उसे 5-6 बार सूजे पर ऊपर-नीचे खिसका लो ताकि वह आसानी से उस पर ऊपर-नीचे हो सके।
अब सूजे को चित्रानुसार पकड़कर चौड़ी ओर से मुंह से फूंको। आकृति को गोल-गोल घूमने से रोकने के लिए शायद तुम्हें दूसरे हाथ से उसे दोनों ओर से सहारा देना पड़े। और फेंकते समय ध्यान रखना कि हवा आकृति के ऊपर-नीचे, दोनों ओर से बहे। क्या हुआ फूंकने पर?
ऐसा ही कुछ हवाई जहाज़ के साथ भी होता है। उसमें पंखों का आकार कुछ ऐसा बनाया जाता है कि जहाज़ के दौड़ने पर हवा को पंखों के ऊपर से गुजरने के लिए, नीचे की बनिस्बत ज्यादा दूरी तय करनी पड़ती है। पर दोनों ओर की हवा को समय तो बराबर ही मिलता है इसलिए ऊपर की हवा की रफ़्तार नीचे की हवा से ज्यादा होती है।
इसलिए ऊपर की ओर दबाव कम हो जाता है। और नीचे की हवा ऊपर की ओर उठने की कोशिश में पंखों को धकेलती हुई हवाई जहाज़ को ऊपर उठा लेती है। और जहाज़ फुर्र !
इतने भारी-भरकम जहाज़ को हवा में उड़ाने के लिए उसके ऊपर और नीचे के दबाव में काफी अंतर की ज़रूरत पड़ती है। इसीलिए जहाज़ उड़ान पट्टी पर लगभग 200 कि.मी. प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ते हैं।
अब देखते हैं कि हवाई जहाज़ को ज़मीन पर या हवा में दौड़ाने का यह काम किया कैसे जाता है? कुछ विमानों के अगले भाग में घूमने वाले बड़े-बड़े पंखे लगे होते हैं। जब ये पंखे इंजन द्वारा बहुत तेजी से घुमाए जाते हैं, तो हवा को ज़ोर-से पीछे की तरफ धकेलते हैं। और जहाज़ आगे बढ़ने लगता है।
जेट विमान भी इसी सिद्धांत पर चलते हैं पर उनमें इंतज़ाम थोड़ा अलग होता है। इनके इंजनों में ईंधन और हवा के मिश्रणों को जलाया जाता है। जलने से पैदा हुई गैसें बहुत तेजी से विमान के पिछले हिस्से से निकलती हैं। उसके कारण गुब्बारे में से हवा निकलने पर जैसे वह उल्टी दिशा में भागता है, उसी तरह ये विमान आगे को दौड़ने लगते हैं।
इस तरह जब विमान आवश्यक रफ्तार पकड़ ले तो पंखों के ऊपर की ओर हवा का दबाव कम होने के कारण ऊपर उठने लगता है।
यह तो थी हवाई जहाज़ की हवा में ऊपर उठने और आगे बढ़ने की बात पर तुमने कभी सोचा है कि वह एक बार उड़ने लगे तो फिर उसके बाद नीचे-ऊपर कैसे जाता होगा? दाएं-बाएं अपनी दिशा कैसे बदलता होगा? नीचे उतारने के लिए जहाज़ को धीमा करके उसके नीचे और ऊपर की हवा के दबाव के बीच जो अंतर होता है उसे कम किया जा सकता है। और अंतत: पंख के ऊपर और नीचे के दबाव में फर्क को खत्म करने पर जहाज़ ज़मीन पर उतर आएगा। पर ऐसे तो जहाज़ धड़ाम-से नीचे गिरेगा। यानी ऊपर-नीचे जाने के लिए यह व्यवस्था तो नहीं चलेगी।
इसके लिए जहाज़ की पूंछ के पास वाले छोटे-छोटे पंखों में पीछे की ओर एक खास तरह की पट्टीनुमा बनावट होती है। यह पट्टियां जहाज़ के पंखों से कब्जे से लगी होती हैं। इन्हें ऊपर या नीचे की ओर मोड़ा जा सकता है। जब जहाज़ को ऊपर उठना होता है, तो इन पट्टियों को जिन्हें एलीवेटर (उत्थापक) कहा जाता है, थोड़ा-सा ऊपर की ओर उठाया जाता है। इससे जहाज़ की पूंछ नीचे की ओर होने लगती तुलना में आगे का हिस्सा ऊपर की
बच्चों द्वारा सवालीराम से पूछे गए कुछ सवाल हम आपके सामने भी रख रहे हैं। आप भी इनके बारे में सोचिए, इनके जवाब ढूंढिए और हमें लिखिए। उनमें से कुछ सटीक जवाब चुनकर हम अगले अंक मे छापना चाहेंगे।
- मूंगफली के फूल तो पौधे पर लगते हैं - तो फिर मूंगफली ज़मीन में से कैसे निकलती है?
- मनुष्य जब ग्रहों पर जाते हैं तो वज़न घटता-बढ़ता है। मनुष्य का वास्तव में वज़न कितना होता है और वह किस ग्रह पर जाने से होता है?
- साबूदाना कैसे बनता है? क्या होता है उसमें?
ओर उठा होता है इसलिए जहाज़ ऊपर की तरफ जाने लगता है। और जब जहाज़ को नीचे उतरना होता है। तो एलीवेटर को नीचे की ओर झुका देते हैं।
इसी तरह जहाज़ को दाएं-बाएं मोड़ने के लिए बड़े वाले पंखों के पीछे की तरफ लम्बी-पतली पट्टियां लगी होती हैं जिन्हें पतवार (एलरॉन) कहते हैं। ये भी पंखों के साथ कब्जों से जुड़ी होती हैं। इनकी बनावट ऐसी होती है। कि एक पंख की पट्टी को ऊपर की तरफ करो तो दूसरे पंख की पट्टी नीचे की तरफ ही मुड़ती है, और अगर उसे नीचे की तरफ झुकाओ तो दूसरी ऊपर की ओर उठती है - जिससे जहाज़ बाईं-दाईं तरफ मुड़ता है।
पूंछ के ऊपर उठे हुए हिस्से में खड़ी-लगी हुई पट्टी (रडर) भी यही काम कर सकती है परन्तु उसे कम ही इस्तेमाल किया जाता है। आमतौर पर रडर जहाज़ को अचानक मुड़ जाने से रोकने और संतुलन बनाए रखने के काम आता है।
हवाई जहाज़ की तरह चिड़िया भी हवा से भारी होती है, फिर भी मज़े-से उड़ती है। चूंकि वह अपने पंख फड़फड़ाकर अपने शरीर के ऊपर हवा के दबाव को कम कर लेती हैं, इसलिए उन्हें उड़ान-पट्टी जैसी किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं पड़ती। हेलिकाप्टर के पंख ऊपर होते हैं। इसलिए वह भी अपनी जगह से ही सीधे हवा में उड़ सकता है, चिड़ियों की तरह।
हां, कुछ पक्षी जैसे चील, गिद्ध आदि बहुत भारी होते हैं। इसलिए उन्हें हवा में उड़ने से पहले कुछ दूर तक ज़मीन पर दौड़ना पड़ता है।