बिजली बही, चुम्बकीय क्षेत्र पैदा हुआ और मोटर चली। 
कठिन से सिद्धांत को इस मॉडल ने बनाया आसान।

अपनी स्कूल या कॉलेज की पढ़ाई के दौरान कहीं-न-कहीं तो हम सबने पढ़ा होता है कि विद्युत-परिपथ को लगातार बन्द-चालू, चालू-बन्द करके चुम्बकीय क्षेत्र पैदा किया जा सकता है; और चुम्बकीय क्षेत्र को तेजी से कम-ज्यादा, ज्यादा-कम करके या बदलकर बिजली पैदा की जा सकती है। परन्तु शायद ही कोई स्पष्ट समझ बनती होगी कि यह सब होता कैसे है। मन में एक धारणा-सी बन जाती है कि काफी मुश्किल होता होगा इस तरह से चुम्बकीय क्षेत्र पैदा करना या बिजली बनाना।

जबकि अपने आस-पास ही पंखे में, टेप-रिकार्डर में, घर में बजने वाली घंटी आदि में बदलते हुए विद्युत क्षेत्र से चुम्बकीय क्षेत्र बनाने के कारण ही मोटर चलती है, घंटी बजती है....

सवाल उठता है कि क्या हम खुद कोई ऐसी मोटर बना सकते हैं या क्या कोई इतना आसान तरीका हो सकता है जिससे हम ही नहीं विद्यार्थी भी अपने हाथों से कुछ बना पाएं और इन जटिल लगने वाले सिद्धान्तों को अपने सामने व्यावहारिक उपयोग में आता देख सकें, उन्हें समझने की कोशिश कर सकें। चलिए, कोशिश करते हैं।

मुख्य सवाल है कि हमें कोई ऐसा तरीका सोचना होगा जिसमें विद्युत परिपथ लगातार बनता-टूटता रहे और उसके कारण बन रहे चुम्बकीय क्षेत्र का फायदा उठाकर मोटर चलाने की कोशिश करें। यहां पर ऐसा करने का एक तरीका दिया जा रहा है पर और भी बहुत से तरीके सोचे जा सकते हैं ऐसी व्यवस्था बनाने के।

इसके लिए हमें इन सब चीजों की जरूरत होगी

  1. तकरीबन एक मीटर लम्बा 24 गेज का मोटर रिवांइडिंग में इस्तेमाल होने वाला तांबे का तार। यह आमतौर पर बिजली की दुकान पर मिल जाता है। इस पर प्लास्टिक नहीं चढ़ा होता, सिर्फ कुचालक पेंट (एनेमल) चढ़ाया होता है।
  2. टॉर्च में डलने वाला सेल
  3. चुम्बक - चकती चुम्बक या छड़ चुम्बक
  4. ब्लेड या रेगमाल कागज़
  5. स्टोव-पिन
  6. साइकल ट्यूब के छल्ले
  7. कील
  8. धागा

तरीका

  • सबसे पहले तार को सेल पर 10-15 बार गोल-गोल लपेटकर एक छल्ला-सा बना लो।

  • सेल से उतारने पर छल्ला खुल नहीं जाए इसलिए उसे दो-चार जगह कसकर धागे से बांधना अच्छा रहेगा। तार के दोनों खुले सिरों से लपेटे देकर भी छल्ले को कसा जा सकता है या फिर टेप चिपकाई जा सकती है।
  • इस प्रयोग अर्थात मोटर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा यही छल्ला है। इसलिए इसे बनाने पर सबसे ज्यादा ध्यान देना होगा। छल्ले के दोनों छोर केन्द्र से गुजरने वाली रेखा की बिल्कुल सीध में होने चाहिए।

  • अगर छल्ला इस धुरी पर अच्छी तरह से संतुलित होगा तभी वह ठीक से, स्वतंत्रता से घूम पाएगा। उसका संतुलन परखने के लिए चित्र के मुताबिक छल्ले को दो उंगलियों पर रखकर घुमाकर देख सकते हैं।
    अगर आसानी से घूमने लगे और काफी देर तक घूमता रहे तो एकदम सही छल्ला तैयार हो गया है। अगर किसी एक तरफ वजन ज्यादा हो गया हो तो एकदम समझ में आ जाएगा कि छल्ला ठीक से नहीं घूम रहा है और झटके खा कर तुरन्त रुक जाता है
  • अब इस छल्ले के दोनों सिरों के सिर्फ ऊपरी आधे हिस्से पर चढ़े कुचालक पेंट (एनेमल) को खुरचकर हटाना होगा। यह काम भी ध्यान से करना होगा। पूरा पेंट नहीं उतारना है, चित्र-5 में दिखाए मुताबिक दोनों तारों को सिर्फ एक तरफ से घिसना है। पूरा पेंट उतरने पर मोटर नहीं चलेगी। ऐसा करने से इस छल्ले के दोनों सिरों के आधे हिस्से पर तांबा और आधे हिस्से पर कुचालक पेंट रह जाएगा।
    इस तरह से आधे हिस्से को कुचालक और आधे को सुचालक रखकर विद्युत परिपथ को तोड़ने-बनाने की व्यवस्था की गई है, जिसकी बात शुरुआत में की गई थी।
  • छल्ला तैयार हो जाने के बाद एक स्टोव-पिन को कैंची की मदद से दो बराबर हिस्सों में काट लो।

  • एक छोटी कील से दोनों टुकड़ों के सिरों में एक-एक छेद बनाओ।
  • अगर चकती चुम्बक मिल जाए तो उसे साइकल ट्यूब के छल्लों की मदद से सैल के ऊपर चढ़ा दो। दरअसल, हमें चकती या छड़ चुम्बक से ऐसा इंतजाम करना है जिससे एक ही ध्रुव छल्ले की तरफ रहे।

  • एक और साइकल ट्यूब के छल्ले को सेल पर लम्बाई में चढ़ा दो। इस छल्ले में दोनों तरफ स्टोव-पिन फंसानी होगी जिससे पिनें सेल के धन और ऋण सिरों से सट जाएं, एकदम छू जाएं। स्टोव की इन पिनों के सहारे ही विद्युत-परिपथ पूरा होता है

  • अब दोनों पिनों को थोड़ा-सा फैलाकर, उनके सुराख में तांबे का छल्ला डाल दो
  • इस मोटर के सब हिस्सों, सम्पर्क और संतुलन, जांच-परखने के बाद छल्ले को हल्का-सा धक्का दो। घूमने लगा न?
  • अगर छल्ला थोड़ी देर घूमकर रुक जाए तो उल्टी दिशा में धक्का देकर देखो।

अगर मोटर फिर भी न चले तो आपको यह सब फिर से देखना होगाः

  • छल्ले का संतुलन।
  • छल्ले के दोनों सिरों को एक-एक तरफ से अच्छी तरह से घिसा। न? और कहीं पूरे सिरों को तो सफाचट नहीं कर दिया न?
  • सब विद्युत सम्पर्क कहीं जंग तो नहीं लगा रह गया?
  • छल्ला चुम्बक के सिरे से बहुत दूर तो नहीं है कहीं ?

अगर मोटर ठीक से चलने लगे तो अब उसके साथ बहुत सारे खेल और प्रयोग हो सकते हैं।

  • छल्ले में चित्र फंसाकर persistence of vision समझाने के लिए खिलौना बनाया जा सकता है।
  • छल्ले में चक्करों की संख्या, छल्ले का साईज़, छल्ले का आकार.... इन सबको बदलकर देख सकते हैं कि क्या होता है। मोटर के चलने की रफ्तार, दिशा आदि पर क्या असर पड़ता है।
  • मोटर को उल्टा रखकर, लटकाकर चलाने से एक और मजेदार बात समझ में आएगी।

मोटर बना लेने के बाद अब समझने की कोशिश करते हैं कि यह मोटर चल कैसे रही है, छल्ला घूम कैसे रहा है ?

जब भी किसी कुंडली में से बिजली विद्युत-धारा) गुज़रती है तो उससे एक चुम्बकीय क्षेत्र बनता है। जिसका प्रभाव कुछ ऐसा होता है। मानो कि उसके बीच एक छड़ चुम्बक रखी हो।

इसका अर्थ है कि जब भी स्टोव-पिन में फंसे हुए छल्ले का साफ किया हुआ यानी सुचालक हिस्सा स्टोव-पिन को छूता है तो छल्ले में से विद्युत-धारा गुज़रती है और छल्ला एक चुम्बक की तरह व्यवहार करने लगता है।

अर्थात् हमारे पास कुछ ऐसी स्थिति है जिसमें एक छड़ या चकती चुम्बक नीचे की ओर स्थिर रखा हुआ है और ऊपर की तरफ एक स्वतंत्र रूप से घूमने वाली छड़ (यहां छल्ला) रखी हुई है - जो घूमने पर आधा समय चुम्बक जैसा व्यवहार करेगी और आधा समकेवल छड़ जैसा।

जब तार का साफ किया हुआ हिस्सा स्टोव-पिन को छुए तब विद्युत-धारा बहेगी और छड़, चुम्बक की तरह व्यवहार करेगी। बाकी आधा समय चूंकि एनेमल पेंट वाला हिस्सा स्टोव-पिन के संपर्क में रहेगा इसलिए विद्युत-धारा नहीं बहेगी और छड़, छड़ ही रहेगी।

छल्ले को धक्का देकर घुमाने पर क्या होता है, अब उसे चित्रों द्वारा समझने की कोशिश करते हैं।

  • नीचे का स्थिर चुम्बक और ऊपर की स्वतंत्र छड़ जिसे घुमाया जा सकता है।
  • मान लीजिए इस स्थिति में छल्ला पहुंचने पर उसका सुचालक हिस्सा स्टोव-पिन को छूता है। उसमें से विद्युत-धारा बहने पर वह चुम्बक जैसे बर्ताव करेगा। इससे नीचे वाले स्थिर चुम्बक के पास वाले (N) सिरे को दूर की ओर धक्का लगेगा। और दूर वाला (s) सिरा आकर्षित होगा जिससे छल्ला घूमने लगेगा।

अभी भी वही स्थिति है, N को धक्का लग रहा है। और S आकर्षित हो रहा है।

  • छल्ले का आधा चक्कर पूरा होने पर उसका कुचालक सिरा स्टोव-पिन को छूने लगता है। विद्युत-धारा बन्द हो जाती है। पर पहले के धक्के के कारण छल्ला थोड़ी देर तक घूमता रहेगा।
  • विद्युत-परिपथ अभी भी बन्द है परन्तु शुरुआती धक्के के असर से छल्ले का घूमना अभी भी जारी है।
  • छल्ले का सुचालक हिस्सा फिर से स्टोव-पिन को छूने लगता है और शुरुआत वाली स्थिति फिर से पैदा होती है जिसमें छल्ले को धक्का लगता है।

बस यही क्रिया चलती रहती है और छल्ला घूमने लगता है। यही है हमारी मोटर।

अब जरा सोचकर देखिए कि विद्युत पैदा करने के लिए जो डायनमो होता है वह कैसे काम करता होगा? कभी-कभी साइकल का बल्ब जलाने के लिए भी ऐसा डायनमो लगाया जाता है

अन्त में, वहीं पर आ जाते हैं जहां से शुरुआत की थी - अपने आसपास दिखने वाली बहुत-सी मोटरें। उनमें और जो मोटर हमने बनाई है. इन दोनों में एक महत्वपूर्ण फर्क है जिसके कारण उनकी रचना भी थोड़ी अलग तरह की होती है, चाहे सिद्धान्त यही हो। अपनी मोटर डी.सी. (डायरेक्ट करंट) से चलने वाली मोटर है जबकि अपने आसपास घरों में ए.सी.(ऑल्टरनेट करंट) इस्तेमाल होता है।

राजेश खिंदरी
चित्रः उमेश गौर
(अरविंद गुप्ता द्वारा संकलित पुस्तिका 'खिलौनों का बस्ता' पर आधारित)