अमिताभ मुखर्जी
आजकल हर कहीं कम्प्यूटर के बारे में सुनने को मिलता है। इसमें क्या होता है, कैसे काम करता है, उससे काम लेने के लिए हमें क्या-क्या करना पड़ता है, कुछ प्रारंभिक जानकारी।
प्रायः कहा जाता है कि आज का दौर 'कम्प्यूटर-युग' है। अमरीका आदि विकसित देशों में तो शायद ही आम ज़िन्दगी का कोई ऐसा पहलू हो जो इस से अछूता है। वहां बैंकों में लेन-देन कम्प्यूटर के ज़रिए होता है, दुकानों में हिसाब कम्प्यूटर से किया जाता है, इसके द्वारा बनाए गए चित्र हर जगह देखने को मिलते हैं, यहां तक कि कम्प्यूटर रचित संगीत भी सुनने को मिलता है। अपने देश में कम्प्यूटर का उपयोग अभी इतना नहीं फैला है। फिर भी हम में से कई लोगों ने कम्प्यूटरीकृत रेल आरक्षण का लाभ उठाया होगा। ‘सुरभि' जैसे कार्यक्रमों में कम्प्यूटर द्वारा बनाए गए चित्र देखने को मिलते हैं। ऐसे चित्र कितने जीवन्त होते हैं, यह भी विदेशी फिल्म 'जुरासिक पार्क' में हम में से कुछ लोगों ने देखा होगा। कम्प्यूटर का एक विशेष भारतीय उपयोग - कम्प्यूटर द्वारा निकाली गई जन्मपत्री! समय के साथ-साथ कम्प्यूटरों का उपयोग और भी बढ़ेगा व व्यापक होगा। इसलिए ज़रूरी है कि इनके बारे में कुछ मोटी-मोटी जानकारी हम सब हासिल करें। क्या आपने कभी नज़दीक से कम्प्यूटर देखा है? नहीं! हो सकता है कि अगले कुछ सालों में आप भी इसका इस्तेमाल करने लगे।
आखिर कम्यूटर है क्या ?
मोटे तौर पर देखा जाए तो कम्प्यूटर एक मशीन है, जो बहुत तेजी से जोड़-घटाना, गुणा-भाग कर सकती है। कितना तेज़? यूं समझ लीजिए। कि यह एक सेकंड में एक लाख जोड़ कर लेता है। इससे भी कहीं ज्यादा तेज़ ह सुपर-कम्प्यूटर, लेकिन अपने लिए तो यही काफी है।
कम्प्यूटर है तो बहुत तेज़, लेकिन वह अपनी तरफ से कुछ नहीं कर सकता। ठीक वही करता है। जो हम कहते हैं।यानी हम उसे निर्देश देते हैं और उनके मुताबिक वह काम करता है। अब यहां पर एक समस्या खड़ी हो जाती है।
मान लीजिए घर के खर्चे का हिसाब कम्प्यूटर से करना है। हम एक-एक कर के आटा, दाल, चावल आदि की कीमतों से उनकी खरीदी गई मात्रा को गुणा करते हैं और इन आंकड़ों को जोड़ते जाते हैं। जैसे “30 अखबार, 1.50 रुपए प्रति अखबार” बराबर 45.00 रुपए।अब इस गुणा को करने में कम्प्यूटर को एक सेकंड का हज़ारवां भाग भी नहीं लगेगा। लेकिन हर कदम पर क्या करना है यह तय करके निर्देश देने में हमें कई सेकंड लग जाएंगे। तो ऐसे कम्प्यूटर की तेज़ी का फायदा ही क्या हुआ? (इस तरह काम करने वाली मशीनें उपलब्ध हैं, उन्हें केल्क्युलेटर कहते हैं।)
प्रोग्रामिंग (programming)
कम्प्यूटर और केल्क्युलेटर में मुख्य अन्तर है - प्रोग्रामिंग प्रोग्राम शब्द का अर्थ है कार्यक्रम। कम्प्यूटर प्रोग्राम सही मायने में एक कार्यक्रम है कम्प्यूटर के लिए। यानी यह निर्देशों का एक क्रमबद्ध सिलसिला है, जो शुरू में ही कम्प्यूटर को दे दिया जाता है, जैसेः
- दी गई पहली संख्या लो। (यह अखबारों की संख्या है।)
- क्र.1 की संख्या को 1.50 से गुणा करो। इस जबाव को याद रखो।
- दी गई दूसरी संख्या लो। (यह खरीदी गई शक्कर की मात्रा है।)
- क्र. 3 की संख्या को 16.00 से गुणा करो। जवाब याद रखो।
- क्र.2 और क्र.4 की संख्याओं को जोड़ो और उनका जोड़ याद रखो।
कम्प्यूटर के प्रोग्राम लिखने की प्रक्रिया प्रोग्रामिंग कहलाती है। यह अपने आप में एक कला मानी जाती है - आखिर अच्छा कार्यक्रम बनाना आसान नहीं है।
ऊपर दिए गए उदाहरण में एक और बात गौर करने लायक है। इसमें यह समझा गया है कि दी गई संख्याएं (यानी कि अखबारों की संख्या, शक्कर का वज़न इत्यादि) एक के बाद एक क्रम से कम्प्यूटर को उपलब्ध रहेंगी। 'दी गई संख्याएं इसके लिए अंग्रेजी शब्द है डेटा या डाटा (data)। जाहिर है कि प्रोग्राम और डाटा दोनों ही कम्प्यूटर को शुरू में ही मिल जाने चाहिए।
इस उदाहरण में निर्देशों का सिलसिला प्रोग्राम है और बाज़ार-दरों की सूची डाटा।
कम्प्यूटर के कलपुर्ज़े
एक कम्प्यूटर के डिब्बे के अन्दर क्या-क्या कलपुर्ज़े होते हैं, इसकी विस्तार से चर्चा तो हम यहां पर कर नहीं सकते। पर मोटी-मोटी कुछ बातें हैं, जो ऊपर के उदाहरण से उभरती हैं। हर कम्प्यूटर की बनावट में तीन तरह की चीजें ज़रूर होंगी।
1. वह हिस्सा जहां डाटा पर जोड़-घटाना आदि का काम (अंग्रेज़ी में प्रोसेसिंग) किया जाता है। इस हिस्से को प्रोसेसर (processor) कहते हैं। अक्सर एक कम्प्यूटर में एक से ज्यादा प्रोसेसर होते हैं। पर उनमें एक सबसे महत्वपूर्ण होता है जिसे सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (CPU) कहते हैं। यही है कम्प्यूटर का 'दिमाग'।
2. स्मृति (memory): हमने ऊपर देखा है कि कई बार हमें कम्प्यूटर को कहना पड़ता है ‘याद रखो'। याद रखने का काम जिस हिस्से में होता है, उसे कम्प्यूटर की याद या स्मृति कहते हैं।
कुछ संख्याओं की ज़रूरत सिर्फ गणना की अवधि तक ही होती है, एक कदम आगे बढ़ा लेने के बाद इन्हें याद रखना ज़रूरी नहीं होता। इन के लिए चाहिए छोटी अवधि की स्मृति (short term memory)। कुछ बातें ऐसी हैं। जिनको देर तक याद रखना है - इनके लिए चाहिए लम्बी अवधि की स्मृति (long term memory )।
3. हम यह मान कर चल रहे हैं। कि हम किसी तरह से प्रोग्राम और डाटा कम्प्यूटर के अंदर पहुंचा देंगे। अतः बाहर से अन्दर भेजने का कोई ज़रिया चाहिए। आमतौर पर टाइपराइटर जैसी चाबियां (key board) यह काम करती हैं। साथ ही, कम्प्यूटर ने जो उत्तर निकाला वह भी हम तक पहुंचना चाहिए - यानी अन्दर से बाहर भेजने का भी कोई ज़रिया चाहिए। आमतौर पर यह काम टी.वी. के पर्दे जैसा एक पर्दा करता है। अगर यह जानकारी कागज़ पर चाहिए तो एक छापने वाली मशीन (printer) को इस्तेमाल किया जाता है।
4. भंडारण माध्यम (storage media): उपरोक्त तीन हिस्सों के बिना कोई कम्प्यूटर चल ही नहीं सकता। परन्तु व्यावहारिक कम्प्यूटरों में भंडारण माध्यमों की भी ज़रूरत होती है। एक तरह के गोदाम जिनमें बहुत सारी चीजें भरी जा सकें और अगर ज़रूरत हो तो लम्बे समय तक रखी जा सकें। किसी एक प्रोग्राम को अगर हर बार चाबियों के जरिए इनपुट (input) करना पड़े तो बहुत समय नष्ट होगा। जैसे घर के खर्चे का हिसाब तो हर महीने एक ही तरह से किया जाता है। सिर्फ बाज़ार दरों और चीज़ों की मात्रा में बदलाव आ सकता है। यानी हर महीने डाटा अलग होता है, पर प्रोग्राम वही। ज़ाहिर है कि इस प्रोग्राम को किसी पक्की कॉपी में लिखना चाहिए - ऐसी कॉपी जिसे कम्प्यूटर खुद !' सके। यहीं काम है भंडारण माध्यमों ना भंडारण के लिए बहुत से माध्यम उपलब्ध हैं जिनमें सबसे लोकप्रिय है। फ्लॉपी डिस्क (floppy)।
एक तो ऐसे भंडारण माध्यम लम्बी अवधि की स्मृति का काम करते हैं। डाटा, प्रोग्राम,... आदि को इनमें काफी लम्बे समय के लिए स्टोर किया जा सकता है। इनमें बहुत थोड़ी-सी जगह में बहुत सारी सामग्री भरी जा सकती है। 250-300 पन्नों की एक अच्छी-खासी किताब एक फ्लॉपी पर आ जाएगी और फिर भी उसमें जगह बचेगी।
और दूसरा, इनपुट-आउटपुट के काम भी आते हैं ये भंडारण माध्यम। यानी कि टाईप करने के बजाय । कम्प्यूटर इनमें भरा हुआ डाटा, प्रोग्राम आदि पढ़ लेता है और वह भी बहुत ही तेज़ी से। साधारण इनपुट-आउटपुट की प्रक्रिया से यह हजारों गुना तेज़ होता है। कम्प्यूटर के विभिन्न अंगों का आपसी सम्बन्ध नीचे के चित्र में दर्शाया गया है। संख्याओं और निर्देशों के आने-जाने के रास्ते तीर से दिखाए गए हैं। आधुनिक छोटे कम्प्यूटरों में CPU और स्मृति एक ही डिब्बे में होते हैं। यही है कम्यूटर का शरीर।
अपना दिमाग - कम्प्यूटर?
कम्प्यूटरों के आने से और कम्प्यूटर-विज्ञान के विकास से हमें अपने दिमाग और उसके अन्दर होने वाली प्रक्रियाओं को देखने का एक नया नज़रिया मिला है। इस दृष्टि से देखें तो मानव-मस्तिष्क एक चमत्कारी कम्प्यूटर है, जिसके मुकाबले का यांत्रिक कम्प्यूटर आज तक नहीं बना है। ठीक है, तेज़ जोड़-घटाने में हम मशीन से मात खा जाते हैं। परन्तु आकृतियों की पहचान, दृश्यों के विश्लेषण आदि में अपना दिमाग कहीं आगे है। हमारे इस अपने कम्प्यूटर के कलपुर्ज़े क्या हैं?
सी.पी.यू. : मस्तिष्क के अन्दर
स्मृति : मस्तिष्क के अन्दर
इनपुट : आंखें, कान, नाक, जीभ, चमड़ी
आउटपुट : मुंह, हाथ, पैर, मांसपेशियां
भंडारण माध्यम : कुछ हद तक तो यह काम दिमाग के अंदर ही हो जाता है। उसके बाद हम बाहर के माध्यम इस्तेमाल करते हैं: बही-खाता, कॉपी....
कम्प्यूटर के विविध उपयोग
कम्प्यूटर किन-किन विविध कामों में इस्तेमाल होते हैं, इसकी बात हमने शुरू में की थी। पर आप कहेंगे यदि कम्प्यूटर केवल जोड़-घटाना, गुणा-भाग करने वाली मशीन है, तो यह चित्र कैसे बनाता है? किताबें छापने में इसका उपयोग कैसे होता है? यह संगीत की रचना कैसे कर सकता है? वास्तव में कम्प्यूटर द्वारा चित्र बनाने के लिए इस पूरे काम को संख्याओं में ढालना होगा। इसी तरह हम टाइपिंग में कम्प्यूटर की मदद ले सकते हैं क्योंकि इस काम को संख्याओं के रूप में समझा जा सकता है। कम्प्यूटर अपने स्तर पर केवल संख्याओं पर ही काम करता है। इतना ही नहीं वो भी सिर्फ दो संख्याओं (शून्य और एक) में ही सब कुछ ढालकर काम कर सकता है कम्प्यूटर यह तो प्रोग्रामिंग का कमाल है कि चित्र बनाना या टाइपिंग जैसे काम को हज़ारों या लाखों जोड़-घटाना के सवालों में रूपान्तरित किया गया है। इसमें बहुत से लोगों की कड़ी मेहनत छिपी हुई है।
आजकल तरह-तरह के उपयोगों के लिए पैकेज मिलते हैं। ये वास्तव में प्रोग्राम हैं। इनका फायदा यह है कि प्रोग्रामिंग के कठिन पहलुओं से उपयोगकर्ता का कोई वास्ता नहीं रहता। बल्कि कई तरह के उपयोगों में तो उपयोगकर्ता को प्रोग्रामिंग आने की बिल्कुल भी ज़रूरत नहीं। इनमें प्रमुख है वर्ड-प्रोसेसिंग, जो शायद भारत में कम्प्यूटरों का सबसे बड़ा उपयोग है। भले ही टाइपराइटर पर आप की उंगलियां न चलती हों, पर वई-प्रोसेसिंग आप भी कर सकते हैं। गलती हुई है? सुधार लीजिए। जब कुछ ठीक लगे तब उसे छापिए। साधारण टाइपराइटर से ज्यादा सजी हुई छपाई मिलेगी। पहले यह सुविधा सिर्फ अंग्रेजी में उपलब्ध थीं, अब हिन्दी के भी कई पैकेज आए हैं।
सिर्फ टाइपिंग नहीं, उससे एक कदम आगे बढ़कर हैं वे पैकेज जो किताबें छापने में काम आते हैं। ये आम तौर पर पेशेवर प्रकाशक इस्तेमाल करते हैं। इनकी छपाई कैसी होती है? भई, आपके सामने है। जी हां, यह पत्रिका भी कम्प्यूटर पर ही बनी है।
(अमिताभ मुखर्जी दिल्ली विश्वविद्यालय में भौतिक-शास्त्र पढ़ाते हैं।)