अरविन्द गुप्ते                                                                                                                                                                                        [Hindi PDF, 208 kB]

जीव विज्ञान     

हाल के वर्षों में बैक्टीरिया के बारे में कई नई जानकारियाँ मालूम हुई हैं। इनसे हमारे दिलो-दिमाग में बैठी बैक्टीरिया की चिर-परिचित छवि कुछ बदल रही है।

बैक्टीरिया यानी जीवाणु बहुत सूक्ष्म एक-कोशिकीय जीव होते हैं। बैक्टीरिया का नाम आते ही हमारे दिमाग में टीबी, टायफॉइड और हैजा जैसी खतरनाक बीमारियाँ कौंध जाती हैं। किन्तु जिस प्रकार सभी साँप विषैले नहीं होते, उसी प्रकार सभी बैक्टीरिया हानिकारक नहीं होते। बैक्टीरिया का जीवनकाल छोटा होता है, किन्तुु इनका प्रजनन तेज़ी से होने के कारण हर पल हज़ारों की संख्या में मरने वाले बैक्टीरिया का स्थान लेने के लिए हज़ारों नए बैक्टीरिया बनते रहते हैं।

बैक्टीरिया न होते तो संसार में जीवन सम्भव न हो पाता। इसका कारण यह है कि पूरे संसार में प्रतिदिन मरने वाले लाखों जीवधारियों (पौधों और जन्तुओं) के शरीर का विघटन बैक्टीरिया ही करते हैं और इन शरीरों को सरल पदार्थों में बदल देते हैं। इस तरह से बनी गैसें तो वातावरण में चली जाती हैं और ठोस व तरल पदार्थ मिट्टी में मिल कर उसकी उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं। यह सोचा जा सकता है कि ये विघटनकारी बैक्टीरिया न होते तो मृत जीवधारियों के शरीरों से पृथ्वी कभी की पट गई होती और इस पर और अधिक जीवन सम्भव नहीं हो पाता।
इसके अलावा भी बैक्टीरिया ‘परोपकार’ के बहुत सारे अन्य काम करते हैं। फलीदार पौधों की जड़ों पर गठानों में रहने वाले बैक्टीरिया हवा से नाइट्रोजन लेकर उसे पौधों में पहुँचाते हैं।
पौधों की कोशिकाओं में पाए जाने वाले सेल्युलोज़ नामक पदार्थ का पाचन जन्तु अपने बूते पर नहीं कर पाते हैं। फिर शाकाहारी जन्तु पौधों को खाकर ज़िन्दा कैसे रह पाते हैं? इसके लिए अलग-अलग जन्तुु अलग-अलग प्रकार के बैक्टीरिया की मदद लेेते हैं। दीमकों की आँत में पाए जाने वाले बैक्टीरिया सेल्युलोज़ का पाचन करते हैं। यदि इन बैक्टीरिया को मार दिया जाए तो दीमक भूखों मर जाएँगे क्योंकि उनका तो भोजन ही सेल्युलोज़ होता है। इसी प्रकार, जुगाली करने वाले जन्तुओं के आमाशय में पाए जाने वाले भिन्न प्रकार के बैक्टीरिया भी सेल्युलोज़ का पाचन करते हैं। दूध को दही में बदलने वाले बैक्टीरिया ही होते हैं। बैक्टीरिया से विभिन्न प्रकार की प्रतिजैविक (एंटीबायोटिक) दवाइयाँ बनाई जाती हैं जिनकी बदौलत प्रतिदिन लाखों मरीज़ों का इलाज हो पाता है।

मनुष्य का शरीर अरबों बैक्टीरिया का घर होता है। आम तौर पर इनसे कोई रोग पैदा नहीं होता, बशर्ते कि हानिकारक बैक्टीरिया बड़ी संख्या में शरीर में न आ जाएँ। मनुष्य के शरीर के भीतर और त्वचा पर कुल मिला कर लगभग दस खरब ‘अच्छे’ बैक्टीरिया रहते हैं। इनमें से कुछ आँत में पाए जाते हैं और शरीर के लिए आवश्यक विटामिनों का निर्माण करते हैं। कुछ बैक्टीरिया भोजन के पाचन में मदद करते हैं तो कुछ अन्य, हानिकारक बैक्टीरिया से शरीर का बचाव करते हैं।

पिछले दिनों 80 संस्थानों से जुड़े वैज्ञानिकों ने पाँच साल तक मनुष्य के शरीर पर पाए जाने वाले बैक्टीरिया का अध्ययन किया। लगभग 250 स्वस्थ व्यक्तियों के शरीरों से प्राप्त बैक्टीरिया के डीएनए का अध्ययन किया गया। वैज्ञानिकों को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि हर व्यक्ति के शरीर पर लगभग एक हज़ार विभिन्न किस्म के बैक्टीरिया मौजूद थे। मज़ेदार बात यह थी कि हर व्यक्ति के बैक्टीरिया का समूह अन्य किसी भी व्यक्ति से भिन्न था। हर व्यक्ति के बैक्टीरिया समूह में रोगजनक बैक्टीरिया भी थे, किन्तु ये उस व्यक्ति को बीमार किए बिना अन्य बैक्टीरिया के साथ आराम से रह रहे थे।
बैक्टीरिया इतने सूक्ष्म होते हैं कि इन्हें सूक्ष्मदर्शी के बिना देखना सम्भव नहीं होता। हॉलैण्ड निवासी ल्यूवेनहूक ने सबसे पहले सत्रहवीं शताब्दी में सूक्ष्मदर्शी बना कर बैक्टीरिया तथा अन्य सूक्ष्म जीवों का अध्ययन किया था। बैक्टीरिया की शरीर रचना की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनमें कोई सुस्पष्ट केन्द्रक नहीं होता। इसलिए इन्हें प्रोकेरियोट (प्रारम्भिक अवस्था के केन्द्रक वाले) समूह में रखा गया है। अन्य जीवधारियों का डीएनए गुणसूत्रों के रूप में एक सुगठित केन्द्रक में पाया जाता है। इन्हें यूकेरियोट कहते हैं। बैक्टीरिया में सुस्पष्ट केन्द्रक न होने के कारण इनका डीएनए कोशिका द्रव्य में बिखरा रहता है। इनके शरीर एक झिल्ली से ढँके होते हैं और ये अपने पर्यावरण से पोषक पदार्थ इस झिल्ली से अवशोषण के द्वारा ग्रहण करते हैं।

प्रचलित मान्यता के अनुसार पृथ्वी पर जीवन के विकास के समय बने जीवधारी बहुत सरल शरीर रचना वाले, केवल जीवद्रव्य की बूँदों के समान थे। इनसे बैक्टीरिया और यूकेरियोट जीवधारियों का विकास हुआ। किन्तुु पिछले दिनों बैक्टीरिया पर हुए शोध कार्यों के फलस्वरूप ऐसे तथ्य सामने आए हैं जिनके कारण वैज्ञानिकों को जीवन के प्रारम्भिक स्वरूप के बारे में दोबारा सोचने को मजबूर होना पड़ा है।

कोशिका कंकाल
बहुकोशिकीय जीवधारियों की कोशिकाओं में कड़े तत्त्वों से बना एक ढाँचा या कंकाल होता है जो न केवल कोशिका की आकृति बनाए रखने में सहायक होता है, अपितु कोशिका के भीतर पदार्थों के परिवहन में भी सहायक होता है। प्रचलित मान्यता यह थी कि बैक्टीरिया जैसे सरल जीवों को कोशिका कंकाल जैसी किसी परिष्कृत संरचना की आवश्यकता नहीं होती। किन्तु अब पता चला है कि कई बैक्टीरिया में वे प्रोटीन पाए जाते हैं जो बहुकोशिकीय जीवधारियों की कोशिकाओं में कंकाल का निर्माण करते हैं। कम-से-कम कुछ बैक्टीरिया में ये प्रोटीन कोशिका की आकृति बनाए रखने में सहायक होते हैं। उदाहरण के लिए, ई. कोलाई नामक बैक्टीरिया की छड़नुमा आकृति इन प्रोटीन्स के कारण ही होती है। कुछ बैक्टीरिया में तैरने के लिए लम्बा तन्तु होता है। इस तन्तु का आधार कोशिका कंकाल में होता है। कुछ बैक्टीरिया में चुम्बकत्व होता है। कोशिका कंकाल के प्रोटीन कोशिका द्रव्य के भीतर स्थित चुम्बकीय कणों को इस प्रकार व्यवस्थित करके रखते हैं कि पूरी कोशिका एक चुम्बकीय सुई के समान काम करती है।

आन्तरिक कक्ष
परम्परागत समझ के अनुसार केवल बहुकोशिकीय और एककोशिकीय जीवधारियों की जटिल कोशिकाएँ ही आन्तरिक कक्षों में बँटी होती हैं। किन्तुु जिन बैक्टीरिया के जीनोम का अध्ययन किया गया है उनमें ऐसे जीन पाए गए हैं जो सूक्ष्म कक्षों का निर्माण कर सकते हैं। ये सूक्ष्म कक्ष कारखाने के समान वे स्थान होते हैं जहाँ कोशिका के लिए आवश्यक अभिकारकों को सान्द्रित किया जाता है और इस प्रकार कोशिका के भीतर होने वाली अभिक्रियाओं को अधिक गतिमान बनाया जाता है। अन्य बैक्टीरिया में कारखाने के स्थान पर पोषक पदार्थों के भण्डार होते हैं। प्रकाश संश्लेषण करने वाले बैक्टीरिया में गैस के बुलबुले पाए जाते हैं जिनके सहारे वे पानी की सतह पर आसानी से तैर सकते हैं। गन्धक को पोषक पदार्थ के रूप में लेने वाले कई बैक्टीरिया में रिक्तिकाएँ पाई जाती हैं जिनमें नाइटे्रट्स का भण्डारण होता है।

विशाल आकार
बैक्टीरिया इतने सूक्ष्म कैसे - इसे इस तरह भी समझ सकते हैं। बहुकोशिकीय जीवधारियों की जटिल कोशिकाओं में अणुओं के परिवहन के लिए एक परिष्कृत तंत्र बना होता है। दूसरी ओर, बैक्टीरिया अपना पोषण सतह की झिल्ली से अवशोषण के माध्यम से ही लेते हैं। यह अवशोषण परासरण (osmosis) के ज़रिए होता है और परासरण से चीज़ों को एक सीमित दूरी तक ही पहुँचाया जा सकता है। इसलिए बैक्टीरिया के शरीर का आकार बड़ा होना सम्भव ही नहीं होता। फिर भी, पिछले वर्षों में कुछ ऐसे बैक्टीरिया पाए गए हैं जिन्हें अन्य बैक्टीरिया की तुलना में दैत्याकार ही कहा जा सकता है। 1985 में एक समुद्री मछली की आँत में एपुलोपिसियम फिशेलसोनी नामक बैक्टीरियम पाया गया जिसकी लम्बाई 0.7 मि.मी. है। इसके इस विशाल आकार के कारण बैक्टीरियम के रूप में इसकी पहचान करने में सात वर्ष लग गए। इस विशाल बैक्टीरियम ने अपने शरीर के भीतर पदार्थों के परिवहन की समस्या का अनोखा हल निकाला है। इसका डीएनए एक स्थान पर न हो कर डीएनए की सैकड़ों प्रतियाँ कोशिका में बिखरी रहती हैं। इसके फलस्वरूप प्रोटीन्स का निर्माण शरीर में कई स्थानों पर होता है और उनके एक स्थान से दूसरे स्थान तक परिवहन की आवश्यकता नहीं पड़ती। 1997 में इस बैक्टीरिया का विशालतम बैक्टीरियम होने का ताज़ छिन गया। अफ्रीका के समुद्री तट पर समुद्र की तलहटी में एक ऐसा बैक्टीरियम पाया गया जिसका व्यास 0.75 मि.मी. होता है। थायोमार्गेरिटा नेम्बिएन्सिस नामक इस बैक्टीरियम का भोजन हाइड्रोजन सल्फाइड गैस है जिसका ऑक्सीकरण यह नाइट्रेट्स की सहायता से करता है। चूँकि समुद्र के तल में नाइट्रेट्स की आपूर्ति सुनिश्चित नहीं होती, यह बैक्टीरियम एक बड़ी रिक्तिका में तीन माह तक के नाइट्रेट्स का भण्डारण करके रख लेता है।

पिछले पच्चीस-तीस साल में कुछ बड़े आकार के बैक्टीरिया की खोज हुई है। थायोमार्गेरिटा नेम्बिएन्सिस ऐसा ही एक बैक्टीरिया है, जिसका व्यास लगभग पौना मिलीमीटर है। यानी इसे बिना सूक्ष्मदर्शी के भी देखा जा सकता है। ऊपर दिए फोटोग्राफ में आकार की तुलना के लिहाज़ से नेम्बिएन्सिस बैक्टीरिया और मक्खी को दिखाया गया है।

सन् 2002 में मेक्सिको में एक लगभग ऐसा ही बैक्टीरियम पाया गया जिसका व्यास 0.5 मि.मी. होता है और जिसका भोजन भी हाइड्रोजन सल्फाइड से प्राप्त गन्धक होता है। इन तीनों बैक्टीरिया को सूक्ष्मदर्शी के बिना भी देखा जा सकता है।

शिकारियों के झुण्ड
समूहों में रहने वाले बैक्टीरिया सामूहिक क्रिया के माध्यम से प्रकाश पैदा कर सकते हैं, झुण्ड में शिकार कर सकते हैं या संकट के समय अपने बचाव के लिए विद्युत ग्रिड का निर्माण कर सकते हैं। बैक्टीरिया रसायनों के माध्यम से एक-दूसरे से सम्पर्क कर सकते हैं। इससे उन्हें पता चल जाता है कि किसी सामूहिक क्रिया के लिए उनकी संख्या पर्याप्त है या नहीं। प्रकाश पैदा करने वाले समुद्री बैक्टीरिया गहरे पानी में रहने वाली मछलियों के शरीर पर रहते हैं। अँधेरे में राह ढूँढ़ने के लिए मछली को प्रकाश की आवश्यकता होती है। किन्तु उसके शरीर पर रहने वाले बैक्टीरिया पर्याप्त संख्या होने पर ही प्रकाश पैदा करते हैं। कुछ बैक्टीरिया, जो अन्य बैक्टीरिया को अपना शिकार बनाते हैं, बड़े झुण्डों में रहते हैं। वे सामूहिक रूप से शिकार के ऊपर तैरते हुए उस पर ऐसे एन्ज़ाइम छोड़ते हैं जिससे शिकार गल जाता है।

एककोशिकीय
हम यह मान कर चलते हैं कि बैक्टीरिया के समान सरल शरीर रचना वाले और सूक्ष्म जीवों को एककोशिकीय होना ही चाहिए। किन्तु यहाँ भी कुछ चौंकाने वाली जानकारियाँ सामने आई हैं। पोषक पदार्थों की कमी हो जाने पर कुछ बैक्टीरिया एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं और ऐसी रचनाएँ बनाते हैं जिनमें बीजाणुओं का निर्माण होता है। झुण्ड का रूप धारण कर लेने के कारण यह सम्भावना बढ़ जाती है कि ये बीजाणु मूल स्थान से अधिक दूरी पर जा गिरेंगे और इस प्रकार उनसे बनने वाली नई पीढ़ी के जीवित रहने की सम्भावना बढ़ जाएगी। कुछ अन्य बैक्टीरिया में बीजाणु बनाने का अधिक परिष्कृत रूप दिखाई पड़ता है। इनमें बीजाणु बनाने वाली रचनाओं में कुछ कोशिकाएँ आधार का निर्माण करती हैं तो अन्य वास्तव में बीजाणु बनाती हैं। कुछ वैज्ञानिक इसे वास्तविक बहुकोशिकीयता की बजाय केवल बहुकोशिका-नुमा व्यवहार मानते हैं क्योंकि वास्तविक वृद्धि तभी होती है जब कोशिकाएँ अलग-अलग होती हैं। इसके विपरीत, पर्यावरण में नाइट्रोजन की कमी हो जाने पर कुछ बैक्टीरिया की आबादी में से लगभग दस फीसदी बैक्टीरिया हवा से नाइट्रोजन लेकर उसे नाइट्रेट्स में बदलने का काम करने लगते हैं और पोषण के लिए आबादी के अन्य सदस्यों पर पूरी तरह निर्भर हो जाते हैं क्योंकि वे नाइट्रोजन से नाइट्रेट्स बनाने के अलावा अन्य कोई कार्य नहीं कर सकते।

दोहरी झिल्ली से घिरा केन्द्रक: लगभग 20 साल पहले गेमाटा ऑब्सक्यूरिग्लोबस में केन्द्रक दोहरी झिल्ली से घिरा हुआ पाया गया था। यहाँ गेमाटा के फोटोग्राफ में दोहरी झिल्ली से घिरी न्यूक्लियर बॉडी (ग़्ए) और न्यूक्लिओइड (ग़्) को दिखाया गया है।

पहले यह सोचा गया था कि इस प्रकार के उदाहरण केवल अपवाद हैं। किन्तु अब यह स्पष्ट होने लगा है कि इस प्रकार के उदाहरण बैक्टीरिया की दुनिया में काफी प्रचलित हैं। बहुत सारे बैक्टीरिया इकट्ठा होकर एक झिल्लीनुमा रचना का निर्माण कर लेते हैं। ये झिल्लियाँ कोशिकाओं का महज़ एक समूह न होकर व्यवस्थित रूप से बनी हुए संरचनाएँ होती हैं। इनकी कोशिकाओं में कार्य विभाजन के कुछ प्रमाण भी पाए गए हैं।

सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह तथ्य था कि बैक्टीरिया की कोशिकाएँ आत्महत्या (प्रोग्राम्ड सेल डेथ) भी करती हैं। बहुकोशिकीय जन्तुओं में कोशिकाओं द्वारा आत्महत्या (प्रोग्राम्ड सेल डेथ) किया जाना आम बात है। उदाहरण के लिए भ्रूणावस्था में मनुष्य की हाथों की अँगुलियाँ एक-दूसरे से त्वचा के द्वारा चिपकी रहती है। जब इस त्वचा की कोशिकाएँ आत्महत्या (प्रोग्राम्ड सेल डेथ) करती हैं तब अँगुलियाँ अलग-अलग हो पाती हैं। इसी प्रकार, वायरस से संक्रमित कोशिकाएँ आत्महत्या (प्रोग्राम्ड सेल डेथ) कर लेती हैं और संक्रमण दूसरी कोशिकाओं में नहीं फैलता। कुछ इसी प्रकार की आत्महत्या (प्रोग्राम्ड सेल डेथ) की प्रक्रिया बैक्टीरिया में भी पाई गई है। इनमें झिल्लियों या बीजाणु बनाने वाली संरचनाओं का निर्माण होता है और वायरस का संक्रमण रुक जाता है।

केन्द्रकधारी बैक्टीरिया
1991 में ऑस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैण्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा अवलोकन किया जो बैक्टीरिया के बारे में अब तक की मान्यताओं के एकदम विपरीत था। गेमाटा ऑब्स-क्यूरिग्लोबस नामक बैक्टीरियम में ऐसा केन्द्रक पाया गया जो दोहरी झिल्ली से ढँका हुआ था जैसा कि बहुकोशिकीय जीवधारियों में होता है। यही नहीं, यह भी देखा गया कि यह बैक्टीरियम अपने भोजन को उसी प्रकार निगलता है जैसे अमीबा या अन्य एककोशिकीय जीवधारी निगलते हैं। भोजन लेने की इस विधि को एंडोसायटोसिस कहते हैं।

झिल्ली से ढँका केन्द्रक होना एक संयोग हो सकता है, किन्तु इसके साथ ही भोजन को निगलने वाला लक्षण भी पाया जाना इस ओर संकेत करता है कि यह महज़ एक संयोग न होकर कुछ अधिक गहरी बात है। गेमाटा ऑब्सक्यूरिग्लोबस जिस समूह का सदस्य है उसके अन्य सदस्यों में यूकेरियोट जीवधारियों के समान वे प्रोटीन पाए जाते हैं जिनसे एंडोसायटोसिस की प्रक्रिया का नियंत्रण होता है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या समानान्तर विकास के कारण ऐसा हुआ है या जटिल कोशिका वाले जीवधारियों और बैक्टीरिया के पूर्वज एंडोसायटोसिस से भोजन लेने वाले एक ही समूह के सदस्य थे?

यदि पूर्वज वास्तव में एक ही समूह के थे तो इससे विकास की पूरी अवधारणा पर गहरा असर पड़ेगा। अभी मान्यता यह है कि आदिम जीवधारी बहुत सरल शरीर रचना वाले थे और उनसे प्रोकेरियोट बैक्टीरिया तथा यूकेरियोट जीवधारियों का विकास हुआ। किन्तु ताज़ा शोध कार्यों के फलस्वरूप यह सिद्धान्त एकदम उलट जाएगा। यदि पूर्वजों में एन्डोसाय-टोसिस की प्रक्रिया होती थी तो यह भी सम्भव है कि उनका केन्द्रक झिल्ली से ढँका रहा हो। इससे यह मत बनेगा कि आदिम जीवधारी वास्तव में कहीं अधिक जटिल जीवधारी थे और आधुनिक बैक्टीरिया उनके सरलीकृत रूप हैं।


अरविन्द गुप्ते: उच्च शिक्षा में एक लम्बे दौर तक प्राणीशास्त्र का शिक्षण देने के बाद डाइट, उज्जैन के प्राचार्य पद पर भी रहे हैं। 1997 में प्रशासन अकादमी, भोपाल से सेवानिवृत्त। एकलव्य के शैक्षणिक कार्यक्रमों से लम्बा जुड़ाव, इन्दौर में निवास।
यह लेख एकलव्य द्वारा प्रकाशित ‘स्रोत फीचर्स’ से साभार।