आम तौर पर किसी नई खोजी गई प्रजाति का नाम उसकी आकारिकी, उसके आवास स्थल या उसके किसी गुण को देखते हुए रखा जाता है। लेकिन कभी-कभी किसी नई खोजी गई प्रजाति के नामकरण के वक्त वैज्ञानिकों का अंदाज़ मज़ाकिया हो जाता है। जैसे एक साहित्यिक पात्र से प्रेरित होकर एक फिज़ी घोंघे का नाम बा हम्बुगी रखा था, और बच्चों के पसंदीदा कार्टून स्पंज के नाम पर एक मशरूम का नाम स्पॉन्जीफॉर्मा स्क्वेयरपेंट्सी रखा था। मज़े के अलावा, दशकों से शोधकर्ता प्रजातियों के नाम अपने साथियों या प्रतिष्ठित शोधकर्ताओं के नाम पर रखते आए हैं। यही कारण है कि जंतुओं की लगभग 300 प्रजातियों के नाम चार्ल्स डार्विन के नाम पर रखे गए हैं।
और अब, परजीवियों के नामों पर हुआ एक ताज़ा अध्ययन बताता है नामकरण की यह प्रथा सामाजिक पूर्वाग्रहों को आगे बढ़ा सकती है। पाया गया है कि हाल ही में पहचाने/खोजे गए लगभग 3000 परजीवियों के अधिकतर नाम पुरुष वैज्ञानिकों के सम्मान में रखे गए हैं।
ओटेगो विश्वविद्यालय के परजीवी विज्ञानी रॉबर्ट पोलिन और उनके साथियों ने वर्ष 2000 से 2020 के बीच परजीवी विज्ञान की आठ प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित अध्ययनों को खंगाला। आजकल स्तनधारी या पक्षियों की नई प्रजातियां मिलना अपेक्षाकृत मुश्किल है, लेकिन हर साल परजीवियों की कई नई प्रजातियों की खोज होती है। अकेले 2007 में परजीवियों की लगभग 200 नई प्रजातियां दर्ज हुई थीं।
शोधकर्ताओं ने प्रत्येक प्रजाति के नाम के अलावा यह जानकारी खंगाली कि वह किसे संक्रमित करता है और उसे वह नाम क्यों दिया गया था। इस विश्लेषण के नतीजे प्रोसीडिंग्स ऑफ दी रॉयल सोसायटी बी में प्रकाशित हुए हैं, जिनके अनुसार प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के सम्मान में नामित 596 परजीवी प्रजातियों के नाम में से केवल 18 प्रतिशत नाम किसी महिला वैज्ञानिक पर रखे गए थे। और तो और, जिन वैज्ञानिकों के नाम पर दो या दो से अधिक परजीवियों के नाम रखे गए, उनमें से 89 प्रतिशत पुरुष थे। 20 वर्षों की उक्त अवधि में यह लैंगिक असमानता बरकरार रही।
ये नतीजे पूर्व में हुए कुछ अध्ययनों से मेल खाते हैं। उदाहरण के लिए, 2010 में प्रकाशित हुए एक अध्ययन में एलो वंश के मरुस्थलीय गूदेदार पौधों की लगभग 900 किस्मों के नामों के विश्लेषण में इससे भी अधिक असमानता देखने को मिली थी: प्रजातियों के नाम पुरुष वैज्ञानिकों की तुलना में महज 10 प्रतिशत महिला वैज्ञानिकों के नाम पर रखे गए थे।
अन्य शोधकर्ता इन नतीजों से सहमत हैं, और चिंता जताते हैं कि हालांकि पिछले कुछ समय में परजीवी विज्ञान में महिला वैज्ञानिकों की आमद तो हुई है लेकिन इस क्षेत्र का लंबे समय तक रहा पुरुष-प्रधान इतिहास आगे भी नामकरण परंपराओं को प्रभावित करेगा।
कनेक्टिकट विश्वविद्यालय की परजीवी विज्ञानी जेनाइन कैरा बताती हैं कि उन्होंने हाल ही में उन 141 परजीवी प्रजातियों के नामों की जांच-पड़ताल की जिन्हें उन्होंने किसी व्यक्ति के नाम पर रखा था, और उन्होंने पाया कि 63 प्रतिशत नाम पुरुषों के नाम पर रखे गए थे।
लैंगिक असमानता के अलावा अध्ययन में यह भी दिखा कि पिछले 20 वर्षों में शोधकर्ताओं में अपने करीबी दोस्त या परिवार के सदस्य के नाम पर परजीवी का नाम रखने का चलन बढ़ा है। वर्ष 2020 तक लगभग 30 प्रतिशत परजीवी प्रजातियों के नाम उनके मेज़बान प्राणि, आवास स्थल या शरीर रचना के आधार पर नहीं रखे गए थे बल्कि शोधकर्ताओं के रिश्तेदार या दोस्त के नाम पर रखे गए थे, जबकि 2000 के दशक के शुरुआती वर्षों में यह चलन 20 प्रतिशत नामों में ही दिखा। अध्ययन में यह तक दिखा कि शोधकर्ता अपने पालतू जानवर के नाम पर भी प्रजातियों का नामकरण कर रहे हैं। 2011 में स्टिंगरे व शार्क को संक्रमित करने वाले परजीवी फीताकृमि का नाम शोधकर्ता के कुत्ते (कॉर्बेटा) के नाम पर राइनबोथ्रियम कॉर्बेटाई रख दिया गया।
अध्ययनर्ताओं का कहना है कि इस तरह के नामकरण में अक्सर किसी प्रजाति की खोज से जुड़े संग्राहकों, तकनीशियनों और स्थानीय वैज्ञानिकों की उपेक्षा हो जाती है, जबकि ये लोग शोध के लिए महत्वपूर्ण हैं। एक बिरले उदाहरण के तौर पर एक अध्ययन में पेरू के कॉर्डिलेरा अज़ुल नेशनल पार्क की एक स्थानीय संरक्षणवादी तातियाना पेक्वेनो सैको ने अमेज़ॉन के सघन इलाके से मछली के नमूने एकत्र करने में परजीवी वैज्ञानिकों के दल की मदद की थी। उनकी याद में वैज्ञानिकों ने किंगफिशर के पेट में मिलने वाले एक चपटाकृमि का नाम उवुलिफर पेक्वेने रखा था।
शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि यह अध्ययन परजीवी वैज्ञानिकों को नामकरण में वैज्ञानिक समुदाय की विविधता को दर्शाने के लिए धकेलेगा। (स्रोत फीचर्स)