आज के युग में हमारे दैनिक कार्यों में टेक्नॉलॉजी का अत्यधिक उपयोग होने लगा है। उन्नत तकनीकों और उपकरणों से न केवल काम आसान हो जाता है बल्कि समय की भी बचत होती है। खेती-बाड़ी में आधुनिक उपकरणों और विशालकाय मशीनों की मदद से कई घंटों का काम चुटकी बजाते पूरा हो जाता है। लेकिन इसके कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं।
गौरतलब है कि 1960 के दशक के बाद से ट्रैक्टर का आकार निरंतर बढ़ता गया है। वर्तमान में सबसे भारी ट्रैक्टर का वज़न सबसे पहले निर्मित ट्रैक्टर की तुलना में लगभग 10 गुना अधिक है। हालांकि, ये आधुनिक मशीनें काफी कुशल हैं लेकिन इनका अत्यधिक वज़न काफी नुकसानदायक होता है।
अनाज से भरे हार्वेस्टर का वज़न लगभग 36 टन होता है। ये भारी भरकम वाहन खेत के जिस हिस्से से गुज़रते हैं वहां की मृदा को धीरे-धीरे दबाते जाते हैं। नतीजतन पौधों की जड़ों का विकास बाधित होता है। एक नए अध्ययन के अनुसार यदि ऐसा चलता रहा तो आने वाले दशकों में विश्व स्तर पर कृषि उपज में 20 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है।
इन कृषि वाहनों द्वारा मृदा पर पड़ने वाले प्रभावों को समझने के लिए स्वीडिश युनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज़ के थॉमस केलर और डेज़र्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के डैनी ऑर ने 1958 से उद्योग द्वारा प्रकाशित डैटा एकत्रित किया। इसके बाद उन्होंने विभिन्न गहराइयों पर टायरों द्वारा मिट्टी पर पड़ने वाले बलों का मॉडल तैयार किया।
उन्होंने पाया कि मशीनीकृत खेती में ऊपरी मिट्टी, 50 सेंटीमीटर तक की गहराई में पाई जाने वाली मिट्टी, घनीभूत हो जाती है। वैसे तो कई खेतों में बोवनी के लिए ज़मीन तैयार करने के लिए हर मौसम में इस ऊपरी मृदा की जुताई की जाती है। ऐसे में इस तरह के दबाव से काफी हद तक कोई समस्या नहीं होती है। लेकिन शोधकर्ताओं के मुताबिक अब संघनन 50 सेंटीमीटर से नीचे की परतों में होने लगा है और असुरक्षित हद तक हो रहा है।
इस दबाव से मृदा के कणों के बीच के महीन अंतराल नष्ट हो जाते हैं जिससे नीचे की मृदा तक पानी और हवा की पहुंच कम हो जाती है। मृदा में इस तरह के बदलाव से फसल की पैदावार में 10 से 20 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। और तो और, ये प्रभाव दीर्घकालिक होंगे। केंचुओं और अन्य जीवों के लिए नीचे की मृदा को ढीला करने में कई दशकों का समय लग सकता है।
समस्या सिर्फ कम्बाइन हार्वेस्टर के उपयोग तक सीमित नहीं है। जुताई और उर्वरक छिड़कने के अन्य कृषि उपकरण भी भारी होते जा रहे हैं।
प्रोसीडिंग्स ऑफ दी नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज़ में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार इस समय पूरे विश्व में 20 प्रतिशत कृषि भूमि गहरी मृदा के संघनन के कारण कम पैदावार के जोखिम में है। खास तौर से ब्राज़ील के सवाना और दक्षिण-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया दो ऐसे क्षेत्र हैं जहां की भूमि कमज़ोर है और कृषि के लिए भारी उपकरण उपयोग किए जाते हैं। ये क्षेत्र विश्व के बड़े अनाज उत्पादकों में से हैं।
यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर के कृषि इंजीनियर थॉमस वे ने मृदा के संघनन को कम करने के कुछ सुझाव दिए हैं। एक तो यह कि जब मृदा गीली हो तब ड्राइव नहीं करना चाहिए। नम मृदा अधिक कमज़ोर होती है। इसके अलावा शुष्क मौसम के दौरान, जीपीएस के उपयोग से एक ही मार्ग पर वाहन चलाने में मदद मिल सकती है ताकि कुल क्षेत्रफल पर दबाव को कम किया जा सकता है। अलबत्ता, इस अध्ययन से इतना तो स्पष्ट है कि आधुनिक कृषि मशीनें डिज़ाइन करते समय मृदा पर पड़ने वाले असर का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। (स्रोत फीचर्स)