हाल ही में जापान ने फुकुशिमा परमाणु संयंत्र से 1 करोड़ टन उपचारित पानी समुद्र में छोड़ने की योजना को मंज़ूरी दी है। जापान सरकार का तर्क है कि यह सुरक्षित होगा क्योंकि पानी को संसाधित करके लगभग सभी रेडियोधर्मी तत्व हटा दिए गए हैं और इसे तनु किया जाएगा। योजना के अनुसार समुद्र में छोड़ने से पहले पानी को साफ किया जाएगा ताकि उसमें विकिरण का स्तर पीने के पानी के तय स्तर से भी कम हो जाए।
जापान सरकार और टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी होल्डिंग्स ने अप्रैल में 2023 में उपचारित रेडियोधर्मी पानी को धीरे-धीरे छोड़ना शुरू करने की योजना की घोषणा की है, ताकि सैकड़ों भंडारण टैंकों को हटाने और नष्ट संयंत्र को बंद करने की व्यवस्था हो सके।
जापान के उत्तर-पूर्वी तट पर 11 मार्च 2011 को 9.0 तीव्रता का भूकंप आया था। इसके कुछ समय बाद ही वहां 15 मीटर ऊंची सुनामी आई, जिसने फुकुशिमा परमाणु संयंत्र को अत्यधिक नुकसान पहुंचाया था।
परमाणु संयंत्र के स्थल पर लगभग 12.5 लाख टन पानी जमा हो गया है, जो इस सुनामी के बाद के बाद गंभीर रूप से प्रभावित हुआ था। सुनामी ने रिएक्टरों के कूलिंग सिस्टम को क्षति पहुंचाई थी जिससे तीन रिएक्टर पिघल गए थे। इसके बाद पिघले हुए रिएक्टरों को ठंडा करने के लिए दस लाख टन से ज़्यादा पानी का उपयोग किया गया था। क्षतिग्रस्त परमाणु रिएक्टर को नियंत्रण में लाने के लिए पंप और पाइपिंग की एक अस्थायी प्रणाली का उपयोग किया गया था।
पिघले हुए युरेनियम की छड़ों को ठंडा रखने के लिए क्षतिग्रस्त परमाणु रिएक्टरों में कई टन पानी इंजेक्ट किया गया था। ईंधन से संपर्क करते ही यह पानी दूषित हो गया। यह अब तक की सबसे गंभीर परमाणु दुर्घटना थी जिसे अंतर्राष्ट्रीय परमाणु घटना पैमाने पर स्तर 7 के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
दक्षिण कोरिया ने जापान सरकार के उक्त फैसले पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि यह हमारे लोगों की सुरक्षा और भविष्य में आसपास के पर्यावरण को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकता है। चीन ने जापान से पानी की निकासी पर ज़िम्मेदार तरीके से कार्य करने का आग्रह किया है। वहां के स्थानीय मछुआरा समूहों ने भी चीन और दक्षिण कोरिया की तरह इस फैसले का विरोध किया है। जापान का मछली उद्योग भी इस फैसले का विरोध कर रहा है क्योंकि समुद्र में पानी छोड़ने से सी-फूड व्यापार खत्म होने की आशंका है। ग्रीनपीस जैसे पर्यावरण समूहों ने भी समुद्र में पानी छोड़ने की योजना का विरोध किया है।
किंतु अमेरिका ने जापान के इस फैसले का समर्थन किया है। अमेरिका का मानना है कि जापान ने विश्व स्तर पर स्वीकृत परमाणु सुरक्षा मानकों का ध्यान रखते हुए यह निर्णय लिया है।
रेडियोसक्रिय पानी को उपचारित करना एक जटिल फिल्टरेशन प्रक्रिया के तहत किया जाता है। जिसके बाद अधिकांश रेडियोसक्रिय तत्व पानी से हट जाते हैं। फिर भी कुछ तत्व इस उपचारित पानी में रह जाते हैं। इनमें हाइड्रोजन का समस्थानिक ट्रिशियम भी शामिल है। इसकी अत्यधिक मात्रा इंसानों के लिए हानिकारक हो सकती है। टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी (टेपको) ने ट्रिशियम को छोड़ कर इस प्रदूषित पानी को फिल्टर करने की योजना बनाई है क्योंकि ट्रिशियम को पानी से निकालना अत्यधिक जटिल और कठिन है। साथ ही ट्रिशियम अन्य रेडियोधर्मी कचरे की तुलना में कम हानिकारक है। यह मानव त्वचा में घुसने के लिए पर्याप्त ऊर्जा का उत्सर्जन नहीं करता है। परन्तु, यह कैंसर का कारण बन सकता है। फिल्टर होने के बाद पानी को बड़े टैंकों में रखा जाता है। लेकिन टेपको के पास बड़े टैंकों के लिए स्थान की कमी है जबकि मौजूदा टैंकों के 2022 तक भर जाने का अनुमान है।
स्पष्ट है कि फुकुशिमा परमाणु संयंत्र से कई लाख टन उपचारित पानी सागर में छोड़ने से प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से गंभीर दुष्परिणाम होने की संभावना है। संभवतः इसके दुष्परिणाम देर से सामने आएं। इसलिए उपचारित रेडियोधर्मी पानी समुद्र में छोड़ने से पहले इसके अन्य विकल्प अथवा दुष्परिणाम से बचने के उपायों को गंभीरता से प्राथमिकता देनी चाहिए। (स्रोत फीचर्स)