उपग्रह से प्राप्त तस्वीरों के विश्लेषण से पता चला है कि तीस साल पहले के मुकाबले आज धरती की ज़्यादा सतह पानी से ढंकी है। मगर साथ ही एक तथ्य यह भी है कि मध्य एशिया और मध्य पूर्व के कुछ देशों में सतह पर मौजूद आधा पानी गायब हो गया है।
इससे पहले सतही पानी (यानी झीलों, नदियों, तालाबों और समुद्रों के पानी) के अनुमान इस बात पर आधारित होते थे कि प्रत्येक देश स्वयं क्या अनुमान पेश करता है। इसके लिए उपग्रह तस्वीरों का सहारा लिया जाता है। मगर उपग्रह तस्वीरों के आधार पर निष्कर्ष निकालने में दिक्कत यह आती है कि गहराई, पाए जाने के स्थान वगैरह के कारण पानी बहुत अलग-अलग नज़र आता है।
अब युरोपीय संघ के संयुक्त अनुसंधान केंद्र के ज़्यां-फ्रांस्वा पेकेल और उनके साथियों ने कृत्रिम बुद्धि का उपयोग करके पूरे लैण्डसैट संग्रह को खंगाला है। 1984 से उपलब्ध लगभग 30 लाख तस्वीरों का विश्लेषण करके उन्होंने सतही जल का एक विश्व व्यापी नक्शा तैयार किया है।
विश्लेषण से पता चला है कि स्थायी रूप से जल-आच्छादित क्षेत्रफल में 3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 1980 के दशक के बाद से अब तक कुल 1 लाख 84 हज़ार वर्ग किलोमीटर नया क्षेत्र स्थायी रूप से पानी से ढंका रहने लगा है। इसके अलावा करीब 29,000 वर्ग कि.मी. क्षेत्र मौसमी तौर पर पानी में डूबा रहता है।
इनमें से कई जलराशियां तो बांध निर्माण के कारण बनी हैं मगर तिब्बत के पठार में हिमालय के ग्लेशियर पिघलने के कारण कई कुदरती झीलें भी अस्तित्व में आई हैं।
इस वैश्विक तस्वीर के विपरीत करीब 90,000 वर्ग कि.मी. स्थायी जलराशियां समाप्त हो गई हैं। इसके अलावा, करीब 62,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र स्थायी की बजाय मौसमी तौर पर ही पानी से ढंका रहने लगा है।
सतही जलराशियों का सबसे ज़्यादा ह्रास तो कज़कस्तान, उज़बेकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान में देखा गया है। उदाहरण के लिए कज़कस्तान और उज़बेकिस्तान में लगभग पूरा अरब सागर खत्म हो गया है जो एक समय में दुनिया की चौथी सबसे बड़ी झील थी। ईरान, अफगानिस्तान और इराक में क्रमश: 56, 54 और 34 प्रतिशत सतही जल सूख चुका है।
हालांकि इस अध्ययन में इस बात पर विचार नहीं किया गया है कि सतही जल में ये परिवर्तन किन वजहों से हुए हैं मगर पेकेल का कहना है कि यह मूलत: मानवीय गतिविधियों का नतीजा है। इनमें खास तौर से सिंचाई के लिए पानी का उपयोग प्रमुख है। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में खेती के लिए जितना पानी लगता है वह सारी दुनिया की नदियों के कुल पानी का आधा होता है। (स्रोत फीचर्स)