युरोपीय संघ ने अपनी नई नवीकरणीय ऊर्जा नीति की घोषणा की है और पर्यावरण समूहों का कहना है कि यह न तो कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन कम करेगी और न ही वन विनाश की रोकथाम करेगी।
युरोपीय संघ के देशों में 65 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा जैव-ईंधनों से आती है और इन जैव-ईंधनों में लकड़ी प्रमुख है। ऐसा माना जा रहा है कि कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन को जलाने की बजाय लकड़ी को जलाया जाए तो इससे कार्बन उत्सर्जन कम होगा और लकड़ी का उत्पादन तो बार-बार किया जा सकता है। इसलिए कहा जा रहा है कि नई नीति के ज़रिए जलवायु को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।
युरोप की यह नई नीति वर्ष 2030 तक के लिए है। इसमें एक प्रस्ताव यह है कि 20 मेगावॉट से अधिक बिजली पैदा करने वाले संयंत्र नए मापदंड़ों को लागू करेंगे। इसका मतलब है कि वे कोयला न जलाकर लकड़ी जलाएंगे। नीति में कहा गया है कि इससे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में 80 प्रतिशत की कमी आएगी।
किंतु पर्यावरण समूहों ने स्पष्ट किया है कि यह कमी मात्र कुछ भ्रामक मान्यताओं का परिणाम है, वास्तविक कमी नहीं होगी। युरोपीय संघ में एक मान्यता यह है कि लकड़ी जलाने से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन शून्य होता है। इस मान्यता का आधार यह है कि एक ओर आप लकड़ी जलाकर ग्रीनहाउस गैसें पैदा करते हैं तो दूसरी ओर नए जंगल लगाते हैं जो उन गैसों को सोख लेते हैं। तो नेट उत्सर्जन शून्य हो जाता है। पर्यावरण समूहों का मत है कि यह संतुलन बहुत लंबी अवधि में तो शायद कारगर साबित हो मगर आने वाले कुछ वर्षों में इससे कोई मदद नहीं मिलेगी।
पर्यावरण समूहों का मत है कि उक्त मान्यता तभी सही साबित हो सकती है जब बिजली घरों में बेकार लकड़ी जलाई जाए। यदि इसके लिए जंगलों को काटा गया तो यह संतुलन कभी नहीं बनेगा। पर्यावरण समूहों का मत है कि पिछले वर्षों में काफी सारा जैव ईंधन जंगल साफ करके ही प्राप्त किया गया है। वैसे युरोपीय संघ के अधिकारियों का कहना है कि कोशिश यह रहेगी कि ऊर्जा उत्पादन के लिए लकड़ी का उपयोग इस ढंग से किया जाए कि एक संतुलन बना रहे। (स्रोत फीचर्स)