सुशील जोशी                                                                                                                                       [Hindi PDF, 101kB]


तापमान से आशय यह होता है कि कौन-सी चीज़ कितनी गर्म है। जैसे किसी चीज़ को हाथ लगाएं तो हम बता सकते हैं कि वह हमारे शरीर से कम गर्म है या अधिक। लेकिन अंतर कम हो तो बताना मुश्किल होता है। फिर हर चीज़ को छूकर भी तो नहीं देखा जा सकता। इसलिए कोई उपकरण चाहिए जिससे पता लगाया जा सके कि चीज़ का तापमान कितना है। यही उपकरण तापमापी या थर्मामीटर है।

वैसे तो थर्मामीटर के विकास की कहानी अपने आप में काफी दिलचस्प है लेकिन मैं यहां उस कहानी में नहीं जा रहा हूं। इतना ही कहना पर्याप्त है कि तापमापी बनाने के लिए हमें किसी ऐसे गुण की ज़रूरत है जो तापमान के साथ नियमित क्रम में बदले।

देखा गया है कि गर्मी पाकर पदार्थों में फैलाव होता है। जैसे किसी ठोस, द्रव या गैस को गर्म करें तो उनका आयतन बढ़ जाता है। आम तापमापी में पदार्थों के इसी गुण का फायदा उठाया जाता है। सबसे पहला तापमापी शायद आज से अट्ठारह सौ साल पहले बना था। फिर लगभग 500 साल पहले गैलीलियो ने गैसों के आयतन पर ताप के असर के आधार पर एक तापमापी बनाया था। लगभग इसी समय फैरनहाइट ने भी अपना तापमापी तैयार किया। रोमर और फैरनहाइट दोनों के तापमापी की एक विशेषता यह थी कि किन्हीं दो तापमान को फिक्स करके उनके बीच के अंतराल को बराबर भागों में बांटा गया था।

फैरनहाइट का तापमापी
डेनियल गैब्रियल फैरनहाइट सत्रहवीं-अट्ठारहवीं सदी में एक उपकरण-साज थे। पहला सुघड़ तापमापी बनाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। वैसे उन्होंने ही सबसे पहले यह भी पता लगाया था कि द्रवों के उबलने के तापमान (क्वथनांक) पर दबाव का असर पड़ता है। खैर, फैरनहाइट के तापमापी पर लौटें।
वैसे तो आजकल फैरनहाइट तापमापी का उपयोग काफी कम हो गया है मगर आज भी जब हम कहते हैं कि अमुक व्यक्ति को 100 या 101 डिग्री बुखार है तो यह फैरनहाइट पैमाने पर ही होता है किन्तु दूसरी ओर हम शेष सारे तापमान (जैसे वायुमंडल का तापमान, बर्फ, उबलते पानी का तापमान वगैरह) फैरनहाइट पैमाने पर नहीं बताते। ये सारे तापमान हम एक अन्य पैमाने सेल्सियस पर बताते हैं।

फैरनहाइट तापमान पैमाना बहुत रोचक है। इसमें बर्फ के पिघलने (या पानी के जमने) का तापमान 32 डिग्री फैरनहाइट होता है और पानी उबलने का तापमान 212 डिग्री होता है। मनुष्य शरीर का ‘सामान्य’ तापमान 98.6 डिग्री होता है। आजकल के हिसाब से देखें तो ये काफी बेढंगे आंकडे हैं। 32 की बजाए 30 क्यों नहीं? या 212 की बजाए 200 या 210 जैसा सरल मान क्यों नहीं? मतलब गणनाओं को आसान बनाने के लिए फैरनहाइट ने दाशमिक प्रणाली का उपयोग क्यों नहीं किया?

इन बेढंगे आंकड़ों के कारण एक सवाल और उठता है। तापमान का कोई भी पैमाना बनाने के लिए हमेंं किन्हीं प्राकृतिक तापमानों को कुछ-न-कुछ मूल्य देना पड़ेगा। जैसे बर्फ का तापमान या उबलते पानी का तापमान या शरीर का तापमान। ये प्राकृतिक तापमान ऐसे होने चाहिएं जो विभिन्न परिस्थितियों में एक समान रहें। या कम-से-कम हम बता सकें कि किन परिस्थितियों में इनके मान कैसे बदलेंगे।

इस दृष्टि से न्यूनतम व अधिकतम तापमान के लिए बर्फ जमने और उबलते पानी का उपयोग काफी प्रचलित रहा है। कई पैमानों में बर्फ के तापमान को शून्य डिग्री माना गया है, फिर फैरनहाइट को क्या सूझी कि इस तापमान को 32 डिग्री माना; और यदि उन्होंने इसे 32 डिग्री माना तो उनके पैमाने पर शून्य तापमान किस चीज़ का था?

फैरनहाइट का शून्य
फैरनहाइट ने अपने तापमापी का विवरण देते हुए बताया है कि वे नहीं चाहते थे कि उनके पैमाने पर ऋणात्मक मान आएं। वे जर्मनी व एमस्टर्डम में रहे थे। वे जानते थे कि बर्फ से भी ठंडी चीज़ें होती हैं। कई बार मौसम इतना सर्द हो जाता है कि तापमान बर्फ की अपेक्षा काफी कम होता है। इसलिए उनको पता था कि यदि बर्फ का तापमान शून्य रखा तो कई सारे तापमान शून्य से भी कम यानी ऋणात्मक होंगे। लिहाज़ा, फैरनहाइट चाहते थे कि सबसे कम उपलब्ध तापमान को शून्य रखें। उन्होंने इसका अनोखा समाधान खोजा।
यह तो आप जानते ही हैं कि बर्फ में नमक मिला दें, तो इस मिश्रण का तापमान और भी कम हो जाता है - सेल्सियस पैमाने के अनुसार यह शून्य से नीचे चला जाता है। फैरनहाइट ने बराबर मात्रा में बर्फ और नमक का मिश्रण बनाया और उसे अपने पैमाने का शून्य माना। इसके बाद उन्होंने अपने तापमापी को बर्फ में रखा। तापमापी में भरा पारा चढ़ने लगा। जहां तक यह चढ़ा, उसे फैरनहाइट ने 30 डिग्री कहा। जी हां, उन्होंने शु डिग्री में बर्फ पिघलने का तापमान 30 डिग्री ही माना था।

पारा और चढ़ा
अब उन्होंने अपने शरीर का तापमान ज्ञात किया। तापमान क्या ज्ञात किया - तापमापी को अपने मुंह में या बगल में दबाकर रखा और पारे को चढ़ने दिया। जहां तक पारा चढ़ा उसे उन्होंने 90 डिग्री कहा। अब उनके पास तीन तापमान बिन्दु थे - शून्य, 30 और 90 डिग्री। वैसे ये 30 और 90 के आंकड़े उन्हें कैसे सूझे इस मामले में कई मत हैं। एक मत यह है कि उनसे पहले रोमर ने जो तापमापी बनाया था उसमें बर्फ, नमक और नौसादर के मिश्रण का तापमान 22.5 डिग्री रखा गया था। इसमें बर्फ का तापमान 7.5 डिग्री था।
फैरनहाइट ने अपना पैमाना बनाते वक्त इनमें 4 का गुणा कर दिया अर्थात 7.5 x 4 =30 और 22.5 x 4 उ 90 डिग्री।
फिर 32 कहां से आया

अब फैरनहाइट को इन तापमानों के बीच के हिस्से को बराबर भागों में बांटना था। यह काफी मुश्किल काम था - क्योंकि उस समय मापन के इतने सटीक उपकरण नहीं थे। फैरनहाइट को यह आसान लगा कि यदि बर्फ के तापमान और शरीर के तापमान के बीच अंतर 2 के घात में हो, तो उसे बराबर भागों में बांटना आसान होगा - आपको हर बार उनके बीच की लम्बाई को आधा करना होगा। इस दृष्टि से उन्होंने बर्फ पिघलने के तापमान और शरीर के तापमान को थोड़ा ऊपर-नीचे किया और 32 तथा 96 पर फिक्स कर दिया। इनके बीच अंतर 64 है जो 2 में 2 का 6 बार गुणा करने से आ जाता है यानी 26 = 64 डिग्री। इस प्रकार से 32 व 96 के अंक सुविधा के लिए आ गए।
मगर अभी किस्सा खत्म नहीं हुआ। हम जानते हैं कि शरीर का सामान्य तापमान 98.6 डिग्री होता है। फैरनहाइट के मूल पैमाने पर तो यह 96 डिग्री है। तो यह अंतर कब व कैसे आया?

उबलता पानी
जब 0, 32 और 96 डिग्री का उपरोक्त पैमाना बन गया, तो फैरनहाइट ने अपने तापमापी से उबलते पानी का तापमान नापा। यहां फिर उन्होंने अंकों का खेल किया। उबलते पानी के तापमान को उन्होंने 212 डिग्री घोषित कर दिया। क्यों? यह तो सभी जानते हैं कि एक पूरे वृत को 360 अंश या डिग्री में बांटा जा सकता है। इस वृत में 180 डिग्री पर जो बिन्दु हैं वे एक-दूसरे के विपरीत होंगे। फैरनहाइट चाहते थे कि बर्फ पिघलने और पानी उबलने का तापमान एक-दूसरे के बिल्कुल विपरीत हो - यानी उनमें 180 डिग्री का अंतर हो। बर्फ पिघलने का तापमान तो वे 32 डिग्री फिक्स कर ही चुके थे। लिहाज़ा पानी उबलने का तापमान उन्हें 32अ180 उ 212 डिग्री रखना पड़ा। जब पानी का तापमान 212 डिग्री पर फिक्स हो गया तो शरीर का तापमान 96 पर कैसे टिका रहता। उसमें फेरबदल करके उसे 98.6 डिग्री बनाना पड़ा।
तो यह था फेरनहाइट पैमाने का गोरखधंधा। कई वर्षों तक यही एकमात्र पैमाना था। मगर इसके लगभग 50-60 वर्ष बाद सेंटीग्रेड पैमाना आ गया जिसमें बर्फ जमने और पानी उबलने के तापमान शून्य और 100 डिग्री हैं। इसके साथ गणनाएं करना आसान है। लिहाज़ा अमरीकियों को छोड़ शेष पूरी दुनिया ने इसे या इसके नए रूप सेल्सियस पैमाने को अपना लिया है।


सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा प्रकाशित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान लेखन और विज्ञान शिक्षण में रुचि।

यह लेख स्रोत फीचर (नवंबर 2002 अंक) से साभार।