यतीश कानूनगो

प्राथमिक शाला के विद्यार्थियों के गणितीय ज्ञान पर एक नज़र

प्रतिस्पर्धा के इस युग में शिक्षा के बारे में सोचने पर माता-पिता सामान्य तौर पर पाठ्यक्रम को बोझिल बनाने, पुस्तकों को मोटी करने या विषयों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण देने तक आकर रुक जाते हैं। ज़ोर इस बात पर है कि किसी तरह बच्चों को ज़्यादा-से-ज़्यादा सिखा दिया जाए। वैसे हम सब का अनुभव इससे अलग रहा है। इस तरह दबाव बढ़ाने से सीखना कम हुआ है। खासतौर से प्राथमिक शाला के स्तर पर। और इस प्राथमिक शाला के स्तर की पढ़ाई का असर आगे की पूरी पढ़ाई पर पड़ना स्वाभाविक ही है। प्राथमिक शिक्षा का आधार ‘श्री आर’ रहा है अर्थात लिखना, पढ़ना और गणित हमने धीरे-धीरे सामान्य विज्ञान, सामजिक अध्ययन व अन्य भाषाओं को भी पाठ्यक्रम में डाल दिया। नतीजा यह कि

न खुदा ही मिला न बिसाले सनम,
न इधर के रहे न उधर के रहे

आज स्थिति ऐसी है कि पांचवीं पास कर लेने के बाद भी अधिकतर बच्चे न तो ठीक से पढ़ पाते हैं, न लिख पाते हैं और गणित तो बस माशाअल्लाह।

हाटपीपल्या(देवास) और पीपलिया मंडी (मंदसौर) के 6वीं कक्षा के लगभग 150 विद्यार्थियों को (आधे बालक और आधी बालिकाएं लेकर) हमने गणित के कुछ लघु-प्रश्न देकर यह जानने की कोशिश की कि क्या उन्हें गणित की बुनियादी समझ है? परीक्षण हेतु लिए गए छात्र-छात्राएं पांचवीं कक्षा की जिला स्तरीय प्राथमिक परीक्षा में पास होकर प्रमाण-पत्र प्राप्त कर चुके थे।

परीक्षण के परिणाम अने आप में चौंकाने वाले हैं एवं बहुत से प्रश्न खड़े करते हैं। बात केवल दो विशेष स्थानों और चार-पांच स्कूलों की ही नहीं है, हम अनुवर्तन के समय जहां भी बच्चों से चर्चा करते हैं गणित की बुनियादी समझ में यही हाल दिखाई देता है।

परीक्षण में पूछे गए प्रश्न इस प्रकार के थे, (आप स्वयं भी इन्हें बच्चों के साथ आजमा सकते हैं):

पहला प्रश्न थाः
अंकों में लिखो
(अ) एक हज़ार तीन सौ एक
(ब) दो हजार पांच

उत्तर-1
(अ) इस खंड के उत्तर में 60 से 70% बच्चों ने इस प्रकार लिखा था 1000, 300, 1 कुछ ने तो 10000 300 1 भी लिखा था।
(ब) अधिकांश उत्तर थे 20005 और 2000005 अथवा 2, 5

उपरोक्त उत्तरों से साफ जाहिर होता है कि बच्चों में स्थानीयमान की अवधारणा नहीं हैवैसे इतनी बड़ी संख्या पढ़ना और स्थानीयमान, दोनों दूसरी और तीसरी कक्षा के पाठ्यक्रम में हैं।

दूसरा प्रश्न थाः
0.09 और 0.1 में कौन-सी संख्या बड़ी है।

उत्तर-2
इक्के-दुक्के को छोड़ सभी ने 0.09 को ही बड़ी बताया।

तीसरा प्रश्न थाः
0.1 X 0.1 का गुणा करो।

एक हजार तीन सौ एक = 1000, 300, 1
दो हजार पांच = 20005

उत्तर-3
अधिकांश बच्चों ने इसका उत्तर 0.1 लिखा। या फिर 0.2, .02, 0.11, 1.0, 0.0, 000.1, 11, 21, 100.2, 2, 3 इत्यादि।
एक बालक ने तो गुणा इस प्रकार किया!

चौथा प्रश्नः
1/100 को दशमलव में परिवर्तित करना था।

उत्तर-4
अधिकांश बच्चों ने इसका उत्तर लिखा ही नहीं। जिन्होंने लिखा उन के उत्तर इस प्रकार थे - 1.00, 1.100, 10100

पांचवां प्रश्नः
इस प्रश्न में 503 को 5 से भाग देकर भागफल व शेष लिखना भर था।

उत्तर-5
एक-दो छात्रों ने ठीक किया। अधिकतर बच्चों ने भागफल 10 और शेष 3 बताया, परन्तु फिर भी उत्तरों की विविधता कम नहीं थी!

यदि शिक्षा भवन की नींव ही इतनी कमज़ोर है, तो कलश की भव्यता की सार्थकता क्या है?

स्कूली शिक्षा की इस हालत के लिए कौन जिम्मेदार है? बालक, शिक्षक, शिक्षातंत्र या कोई और कारक?एक गड़बड़ लगभग सभी छात्रों ने की, वह थी अंकों को लिखने में। छात्र हिन्दी तथा अंग्रेजी अंकों का प्रयोग साथ-साथ करते पाए गये। इसका कारण हो सकता है कि पांचवीं कक्षा तक वे हिन्दी अंकों में लिखते रहे हैं। छठवीं कक्षा में अंग्रेजी अंकों का ही प्रयोग होता है। अगर पहली कक्षा से ही अंग्रेजी अंकों का प्रयोग कराया जाए तो क्या अनर्थ हो जाएगा? या फिर पांचवीं के बाद भी हिन्दी अंकों में गणित बना रहे तो कौन-सा पहाड़ टूट पड़ेगा?

इसी प्रकार यही परीक्षण प्राथमिक एवं माध्यमिक शालाओं के 40 शिक्षक प्रशिक्षणार्थियों के साथ किया गया। यही सवाल पूछे गए उनसे भी। उन में से 50% ने गुणा का सवाल हल कर लिया। परन्तु हैरानी की बात है कि

अगर पहली कक्षा से ही अंग्रेजी अंकों का प्रयोग कराया जाए तो क्या अनर्थ हो जाएगा? या फिर पांचवीं के बाद भी हिन्दी अंकों में गणित बना रहे तो कौन-सा पहाड़ टूट पड़ेगा?

सिर्फ 10% ही भाग का प्रश्न ठीक ठाक कर पाए। यह परिणाम तो हमें और गहराई से सोचने के लिए बाध्य करते हैं। यदि हमारे प्राथमिक शाला शिक्षकों के गणित का आधार इतना कमज़ोर है तो शिक्षक-प्रशिक्षण में शिक्षण-विधियों के साथ-साथ विषय वस्तु पर भी अधिक ध्यान देना होगा। प्राथमिक शाला शिक्षक का गणित का ज्ञान कम है, अतः प्राथमिक शाला के छात्र भी कमज़ोर रह जाते हैं। जब ये छात्र हायर सेकण्डरी पास करके शिक्षक बन जाते हैं तो इनका गणित का आधार कमजोर रह जाता है। इस प्रकार यह

यदि हमारे प्राथमिक शाला शिक्षकों के गणित का आधार इतना कमज़ोर है तो शिक्षक-प्रशिक्षण में शिक्षण-विधियों के साथ-साथ विषय-वस्तु पर भी अधिक ध्यान देना होगा।

कुचक्र चलता रहता है। अब यह समझने की आवश्यकता है कि कुचक्र को किस स्तर पर तोड़ा जाये, क्या शिक्षक प्रशिक्षण संस्थाओं से या प्राथमिक शाला के शिक्षण से या किसी अन्य स्तर से, या फिर सभी स्तर पर एक साथ? इन सब प्रश्नों का उत्तर किन से पूछे? क्या शिक्षा विभाग, शिक्षा के सतही सुधार से हटकर गहराई से सोचेगा?

यदि शिक्षा भवन की नींव ही इतनी कमज़ोर है, तो कलश की भव्यता की सार्थकता क्या है?


(यतीश कानूनगो -शिक्षक के रूप में एक लंबे अनुभव के बाद अब जिला शिक्षा प्रशिक्षण संस्था (डाईट) देवास में कार्यरता)