यतीश कानूनगो

प्राथमिक शिक्षण में बच्चों को सिखाने का आधार कहानियां भी हो सकती हैं। लेकिन ज़रूरी है शिक्षक क्रियाशील हो, कहानी कहने में निपुण हो वरना यह प्रक्रिया भी नीरस और उबाऊ बन जाएगी।

प्राथमिक स्तर पर कक्षा 1, 2, 3 में बच्चों को बहुत-सी बातें कहानियों का इस्तेमाल करके सिखाई जा सकती हैं। यह रोचक और मनोरंजक तरीका है जिसमें बच्चे बिना किसी मानसिक दबाव के सीखते हैं। शिक्षक का कहानी  कहने में निपुण होना अनिवार्य है अन्यथा वह इस रोचक विधा को भी नीरस और उबाऊ बना देगा। यही नहीं शिक्षक को नई-नई कहानियां बनाना और बनवाना भी आना चाहिए।

देवास डाइट में प्राथमिक शाला शिक्षकों के सेवाकालीन प्रशिक्षण में कहानी विधा पर मैंने चार सत्र करवाए। इनकी सफलता इसी तथ्य से जानी जा सकती है कि लगातार चार सत्रों में (आठ घंटे) शिक्षकों में क्रियाशीलता और सहयोगी माहौल बना रहा। मैंने जो करवाया उसके कुछ उदाहरण यहां प्रस्तुत करता हूं।

चित्र कार्ड और कहानी  
शिक्षकों को चार-चार के समूहों में बांटकर हर समूह को चित्र-कार्डों का एक-एक सेट दिया। इन कार्डों को उचित क्रम में रखकर एक कहानी लिखनी थी। कुछ कार्ड सेट स्वयं कहानी कहते थे अर्थात इनसे कहानी बनाने में कल्पना की आवश्यकता कम थी। जैसे गधे के चित्र वाला सेट।

कुछ चित्र-कार्ड सेट ऐसे थे जिनसे कल्पना का सहारा लेकर ही कहानी बनाई जा सकती थी अर्थात अधिक सृजनात्मकता की आवश्यकता थी। जैसे समाचार पत्र से काटे गए मिकी-माऊस चित्रों का यह सेट -

शिक्षकों के प्रत्येक समूह को अपनी कहानी बनाकर कागज़ पर लिखनी थी। कहानी को शीर्षक भी देना था। इस काम के लिए प्रत्येक समूह को 10 से 15 मिनिट का समय दिया गया।

जब सबने कहानी लिख ली तो समूह के अनुसार शिक्षकों को कहानी पड़ने के लिए बुलाया गया। जिन चित्रों के आधार पर उन्होंने यह कहानी बनाई थी उन्हें भी बोर्ड पर प्रदर्शित किया गया।

जब एक समूह अपनी कहानी प्रस्तुत कर चुकता तो बाकी समूहों के शिक्षक इस प्रस्तुतिकरण की समीक्षा करते।

जब सभी समूह अपन-अपनी कहानियां सुना चुके तो कहानियों पर चर्चा की गई और सबसे अच्छी कहानी चुनने का प्रयास किया गया। शिक्षकों से चर्चा इन बिन्दुओं पर हुई:

  1. चित्र कार्डों के माध्यम से नई कहानी बनाना क्यों आसान हो गया?
  2. कल्पना और सृजनात्मकता सबसे अधिक किस टोली की कहानी में देखी और क्यों?
  3. किस कक्षा के बच्चों से इस प्रकार कहानी बनवाना संभव है?
  4. बच्चे कहानी कह सकें, इसके लिए क्या करें? क्या यह बेहतर होगा कि चित्र ऐसे लें जो स्वयं कहानी बता दें।

एक महत्वपूर्ण बात जो कहानियों की समीक्षा में सामने आई वह यह थी कि ज़रूरी नहीं कि जो कहानी सबको सबसे लगे उसमें वास्तविकता हो या वह शिक्षाप्रद हो ही। अगर कहानी शिक्षाप्रद है तो भी उसके अंत में यह न बताया जाए कि उसमें मिलने वाली शिक्षा क्या थी। तो फिर अच्छी कहानी में क्या गुण थे?

  1. हावभाव के साथ सुनाई गई थी।
  2. जानवरों की बोली का उपयोग किया गया था।
  3. शब्दों या वाक्यों की पुनरावृत्ति की गई थी।
  4. कहानी का कथ्य रुचिपूर्ण था।

खुद के चित्र खुद की कहानियां  
शिक्षकों के प्रत्येक समूह को रंगीन पेनों का एक सेट और हर शिक्षक को आधा-आधा कागज़ दिया गया। सभी को अपनी इच्छा के अनुसार कागज़ पर एक चित्र बनाना था।

दस मिनट बाद सभी चित्रों को इकट्ठा कर लिया गया।

अब इनमें से मिले-जुले चार-चार चित्रों को एक बड़े कागज़ पर किसी भी क्रम से चिपका दिया। इस तरह चित्रों के कई सेट तैयार कर लिए गए।

अब शिक्षकों के प्रत्येक समूह को एक-एक चित्र समूह दे दिया गया। प्रत्येक टोली को यह करना था:

  1. प्राप्त चित्र समूह को अपनी इच्छानुसार क्रम देकर (जो चित्र के नीचे लिख दें) एक कहानी का निर्माण।
  2. अपनी कहानी एक कागज़ पर बड़े पठनीय अक्षरों में लिखना। फिर, प्रत्येक टोली ने अपनी बनाई कहानी अपने चित्रों के साथ प्रस्तुत की। सभी कहानियों की समीक्षा की गई।

बस एक प्रयोग  
उपरोक्त गतिविधियां शिक्षक प्रशिक्षण के आदर्श मॉडयूल हैं - यह दावा मैं नहीं करता, बस एक प्रयोग है। इसका महत्व यही है कि शुरू में जब मैंने शिक्षकों से कक्षा-2 के बच्चों के लिए कहानियां लिखने को कहा था तो सभी कहानियां सुनी-सुनाई तथा उपदेशात्मक थीं।

जबकि इस गतिविधि के बाद जो कहानियां मिलीं उनमें नयापन था। साथ ही इन कहानियों को देखकर शिक्षकों को अपनी सृजनात्मकता का भी अहसास हुआ।


यतीश कानूनगो - डाइट देवास में व्याख्याता।