राजेन्द्र बंधु, सुनील कटियार

अपने देश के ग्रामीण इलाकों में और खासकर आदिवासी अंचलों में पीने के पानी की समस्या बहुत विकट रही है। महिलाओं व बच्चों का मीलों चलकर नदी-नालों या कुओं से पानी भरकर लाना पड़ता है। अक्सर यह पानी दूषित हो जाता है और उल्टी, दस्त, हैजा, पीलिया जैसी बीमारियां महामारी का रूप ले लेती हैं। इस समस्या का एक सरल निदान ‘हैंडपंप’ है। इसके द्वारा मोहल्ले में ही लोगों को पानी उपलब्ध करवाया जा सकता है और वह भी साफ पानी। इतना महत्व होते हुए हुए भी देखा गया हे कि गांवों में हैंडपंप खराब पड़े रहते हैं। कोई भी उपकरण उपयोग के दौरान खराब तो होता ही है। अगर लोगों में उसके बारे में पर्याप्त जानकारी हो और अन्य ज़रूरी व्यवस्था भी हो तो मरम्मत भी आसान हो सकती है।

देवास ज़िले की बागली तहसील में ‘समाज प्रगति सहयोग’ नामक संस्था ने इस मामले में उल्लेखनीय काम किया है। उन्होंने आदिवासी इलाकों की महिलाओं व पुरूषों के एक समूह को हैंडपंप की मरम्मत करने का प्रशिक्षण दिया। प्रशिक्षण के बाद उन लोगों को औज़ार और ज़रूरी पुर्ज़े भी इस संस्था ने उपलब्ध करवाए। अब ये महिलाएं और पुरूष खुद अपने गांव के हैंडपंपों की मरम्मत कर रहे हैं। यह व्यवस्था कई महीनों से सफल रूप से चल रही है। इससे यह तो साबित हो गया कि किसी खास तकनीकी डिप्लोमा के बिना, मामूली प्रशिक्षण की मदद से आम लोग भी हैंडपंप की देखरेख कर सकते हैं।

वैसे हैंडपंप एक सरल मशीन है जिसकी कार्य प्रणाली को समझना भी आसान है। इस लेख में यही समझाने का प्रयास किया गया है। 

हैंडपंप भी एक कुआं  
भूजल निकालने के लिए हम कुआं खोदते हैं। कुआं व्यास में बहुत बड़ा होता हे और इसे खोदना काफी खर्चीला होता है इसलिए यह बहुत गहराई तक नहीं जा सकता। हैंडपंप भी एक तरह का कुआं ही है जो कम व्यास का होने की वजह से कम खर्च में काफी गहराई तक जा सकता है। हैंडपंप के लिए किए गए इस गहरे छेद को बोर कहते हैं। कुएं के चारों ओर मिट्टी धसकने से बचाने के लिए जैसे दीवार खड़ी करते हैं ठीक वैसे ही बोर में केसिंग पाईप डालते हैं। केसिंग पाईप में महीन छेद होते हैं। यह पाईप बोर की दीवार से सटा होता है। केसिंग पाईप न सिर्फ बोर को धसकने से बचाता है बल्कि बोर में मिट्टी-रेत आने से भी रोकता है।

केसिंग पाइप के अन्दर छनकर आए पानी को हम जिस पाईप की मदद से पंप में ऊपर चढ़ाते हैं उसे राइज़िंग पाईप कहते हैं। राइज़िंग पाईप में पानी को ऊपर चढ़ाने के लिए हवा के दबाव को कम-ज़यादा करने के लिए राइज़िंग पाईप में सबसे नीचे सिलिंडर नाम का एक उपकरण लगा होता है। सिलिंडर को राइज़िंग पाइप के सबसे नीचे के टुकड़े से कसा जाता है और इतनी गहराई पर रखते हैं कि सिलिंडर हमेशा पानी में डूबा रहे। उदाहरण के लिए मान लीजिए आपका वोर 100 फुट तक पानी बोर में गर्मी में भी 50 फुट तक पानी का स्तर बना रहता है तो सिलिंडर को 65-70 फुट की गहराई पर लगाना ठीक होगा। इसकी मदद से पानी को ऊपर खींचा जाता है, चलिए देखते हैं। 

हैंडपंप पानी कैसे देता है   
आमतौर पर हम हैंडपंप के हत्थे को ताकत तीन-चार बार ऊपर-नीचे करते हैं और पानी नल से गिरने लगता है। लेकिन यह सारी प्रक्रिया इतनी आसान है नहीं कि हत्था चलाया और पानी ऊपर आने लगा। दरअसल यह कमाल सिलिंडर का है।

सिलिंडर में एक पिस्टल, एक चैक वाल्व, वाशर आदि होते हैं। पिस्टन कनेÏक्टग रॉड (एक तरह की लोहे की छड़) द्वारा हैंडपंप के हत्थे से जुड़ा होता है। जब हम हैंडपंप का हत्था चलाते हैं तो कनेÏक्टग रॉड से जुड़े होने के कारण सिलिंडर में पिस्टन भी ऊपर-नीचे होता है।

सिलिंडर में नीचे की ओर एक वाल्व होता है है जिसे चैक दाल्व कहते हैं। ऐसे ही सिलिंडर में ऊपर की ओर पिस्टन के साथ भी एक वाल्व होता है जिसे पिस्टन वाल्व कहते हैं। इन दोनों वाल्व की खासियत यह होती है कि यह एक ही दिशा में केवल ऊपर की तरफ खुलते हैं जिससे पानी बोर में से सिलिंडर में तो आ सकता है लेकिन सिलिंडर में से बोर में वापस नहीं जा सकता। इसी तरह राइज़िंग पाईप में चढ़ा हुआ पानी भी वापस सिलिंडर में नहीं गिर सकता। हैंडपंप में पानी कैसे चढ़ता है, वाल्व कैसे काम करते हैं.....इन सभी बारीकियों को चित्रों की मदद से समझ सकते हैं।

ये चित्र अगले पेज पर हैं। पूरी प्रक्रिया को चार हिस्सों में बांटकर समझाया गया है।

सिलिंडर : हैंडपंप का सबसे महत्वपूर्ण पुर्ज़ा जो इतनी गहराई पर रखा जाता है कि हर समय पानी में डूबा रहे।

कैसे चढ़ता है पानी ऊपर : चित्र:1- हैंडपंप के हत्थे को पूरा ऊपर उठा देने पर कनेÏक्टग रॉड और उसकी वजह से सिलिंडर में लगा पिस्टन नीचे जाता है। पिस्टन नीचे जाने से चैक वाल्व और पिस्टन के बीच की हवा का दबाव बढ़ जाता है और चैक वाल्व बंद हो जाता है।

हवा पिस्टन वाल्व को ऊपर धकेलती हुई निकल जाती है। यानी कि इस स्थिति में चैक वाल्व बंद रहता है और पिस्टन वाल्व खुला।

चित्र:2- हैंडपंप का हत्था पूरा नीचे करते हैं। अब कनेÏक्टग रॉड और उसकी वजह से सिलिंडर की पिस्टल ऊपर उठता है। इससे चैक वाल्व और पिस्टन के बीच जगह बढ़ जाने के कारण कम दबाव का क्षेत्र बनता है। अब सिलिंडर के अंदर की तुलना में बाहरी दबाव ज़्यादा होने के कारण पिस्टन वाल्व बंद हो जाता है और सिलिंडर में ऊपर से हवा नहीं आ पाती। लेकिन बोर का पानी सिलिंडर के नीचे लगे चैक वाल्व को आसानी से ऊपर ढकेलकर इस कम दबाव वाले हिस्से में घुस जाता है। इस स्थिति में चैक वाल्व खुला रहता है और पिस्टन वाल्व बंद।

चित्र:3- हैंडपंप के हत्थे को फिर से ऊपर उठाने पर पिस्टन सिलिंडर में नीचे की ओर जाता है। इस बार पिस्टन के नीचे जाने पर सिलिंडर में आया हुआ पानी पिस्टन वाल्व को धकेलकर उठता हुआ राइज़िंग पाईप में चढ़ने लगता है। इस समय चैक वाल्व बंद रहता है और पिस्टन वाल्व खुला।

चित्र:4- हैंडपंप के हत्थे को पूरा नीचे करने पर पिस्टन ऊपर उठने लगता है। अब ऊपर राइज़िंग पाईप में इकट्ठा हुए पानी के दबाव के कारण पिस्टन वाल्व बंद हो जाता है। दूसरी तरफ सिलिंडर के अंदर फिर कम दबाव का क्षेत्र बनता है और बोर के पानी के दबाव से चैक वाल्व ऊपर उठकर खुल जाता है और बोर से पानी फिर से सिलिंडर में आ जाता है। इस समय राइज़िंग पाईप में इकट्ठा पानी को ऊपर की तरफ धक्का लगता है जिससे वह और ऊपर उठता है। इस स्थिति में चैक वाल्व खुला रहता है और पिस्टल वाल्व बंद।

हैंडपंप के हत्थे को इस तरह बार-बार ऊपर-नीचे करने से बारे का पानी सिलिंडर में आता है, सिलिंडर से राइज़िंग पाईप में आता है, फिर हैंडपंप के ऊपरी हिस्से में लगी टोंटी से होता हुआ हमारे बाल्टी, बर्तनों में गिरता है।

हैंडपंप के बारे में इतनी बातें हो जाने के बाद आइए हैंडपंप के एक-दो सरल मॉडल बनाकर देखते हैं।

  1. ऊपर का पिस्टन वाल्व बंद अवस्था में
  2. ऊपर का पिस्टन वाल्व खुला हुआ
  3. नीचे का चैक वाल्व बंद अवस्था में
  4. नीचे का चैक वाल्व खुला हुआ

मॉडल : 1 
इस मॉडल को बनाने के लिए हम एक स्केच पेन के पीछे की कैप हटाकर केवल निचला हिस्सा लेते हैं। अब एक पुरानी खाली रीफिल लेकर उसका एक सेंटीमीटर लम्बा टुकड़ा काटकर अलग रख लेते हैं। यानी हमारे पास दो टुकड़े हो गए, एक लम्बा टुकड़ा तथा एक छोटा टुकड़ा। रीफिल की पीतल या स्टील वाली टिप निकालकर रीफिल के बड़े टुकड़े के एक सिरे पर धागा लपेटना शुरू करते हैं। रीफिल पर धागे को इतनी मोटाई तक लपेटते हैं कि रीफिल को स्केच पेन के अंदर थोड़ी कठिनाई से चलाया जा सके। अब स्केच पेन के ऊपरी सिरे से एक सेंटीमीटर नीचे की ओर गरम सुई की सहायता से एक छेद करके उसमें रीफिल का छोटा टुकड़ा फंसा देते हैं। यह बन गया पंप का नल वाला हिस्सा।

अब स्केच पेन के अंदर एक छर्रा (जो साइकिल वगैरह में लगा होता है) डालते हैं। रीफिल को स्केच पेन के अंदर डाल देते हैं। इस बात का ध्यान रहे कि धागा लिपटा हुआ हिस्सा पेन के अंदर हो।

यह हमारा हैंडपंप तैयार हो गया है। अब यह समझने की कोशिश करते हैं कि यह मॉडल वास्तविक पंप की तरह ही है या नहीं। हमारे मॉडल में स्केच पेन राइज़िंग पाईप है। रीफिल का बड़ा टुकड़ा कनेÏक्टग रॉड और रीफिल का छोटा टुकड़ा हैंडपंप की टोंटी है। रीफिल के लम्बे टुकड़े पर लपेटी गई धागे की मोटी परत वास्तव में पिस्टन है और स्केच पेन में डाला गया छर्रा चैक वाल्व की तरह कार्य कर रहा है। इस मॉडल में अलग से पिस्टन वाल्व नहीं है लेकिन पिस्टन और राइज़िंग पाईप के बीच इतना कम स्थान बचता है कि पिस्टन के ऊपर से हवा या पानी नीचे की ओर नहीं जा पाता।

हैंडपंप के इस मॉडल की जांच करने के लिए हम एक कटोरी या गिलास में पानी लेते हैं और पंप को उसमें अच्छी तरह से डुबो देते हैं। फिर पिस्टन को ऊपर-नीचे चलाते हैं। पांच-छह बार रीफिल को ऊपर-नीचे करने पर  पेन के ऊपरी हिस्से में लगाए गए रीफिल के टुकड़े से पानी गिरने लगता है। 

मॉडल : 2
हैंडपंप का एक और मॉडल बनाने की कोशिश करते हैं। इसे बनाना थोड़ा कठिन है लेकिन इससे हैंडपंप का सिद्धांत बेहतर ढंग से समझ में आएगा। यह मॉडल मामूली चीज़ों के इस्तेमाल से बन जाएगा। जैसे टूटी हुई ऊफननली, एक छेदी और दो-छेदी रबर कॉर्क, साइकिल का स्पोक, कांच की नली, पोलीथीन के एक-दो गोल रंगीन टुकड़े, रूई, आलपिन आदि।

काम करते समय असावधानी के कारण कभी-कभी ऊफननली टूट जाती है। ऐसी ही एक टूटी ऊफननली से हम हैंडपंप बनाने की कोशिश करेंगे।

एक टूटी ऊफननली लीजिए और इसके भीतरी व्यास के नाप का, दो छेद वाले रबर कॉर्क का एक टुकड़ा काट लीजिए। इस टुकड़े को ऊफननली के मुंह की ओर से घुसाकर दूसरे सिरे तक धका देना है। रबर कॉर्क के दो छेदों में से एक छेद में कांच की नली पिरो दीजिए।

अब इस ऊफननली के भीतरी व्यास के नाप का रबर का एक छेदवाला कॉर्क लीजिए। इस कॉर्क के संकरे भाग से एक गोल चकती काटना है। अब इस चकती के नाप का पोलीथीन का एक गोल टुकड़ा काटकर चकती के ऊपर रख दीजिए। फिर चित्र में दिखाए ढंग से चकती में एक साइकिल स्पोक घुसाना है। यह पंप का पिस्टन बन गया। पिस्टन को ऊफननली के मुंह में इस तरह डालना है कि स्पोक ऊपर वाले दो छेदी कॉर्क के एक छेद से निकल जाए। इस छेद के आसपास रूई फंसा दीजिए। अब एक-छेदी कॉर्क के बचे हुए हिस्से के संकरे भाग पर पोलीथीन का एक टुकड़ा आलपिन से लगाना है। इस कॉर्क को ऊफननली के मुंह में फंसाकर कॉर्क के छेद में एक कांच की नली लगा दीजिए। आवश्यक हो तो इसे मोम से सील कर सकते हैं।

अब किसी बर्तन में पानी लीजिए। कांच की नली पानी में डुबोकर पिस्टन को ऊपर-नीचे कीजिए। चार-पांच बार पिस्टन ऊपर-नीचे जाने पर दोनों वाल्वों को खुलते और बद होते हुए देख सकते हैं।

इस मॉडल को बनाने में लगने वाले रबर कार्क यदि नहीं मिल पा रहे हो तो चप्पल या स्लीपर का तला भी इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए तले की मोटाई कम-से-कम आधा सेंटीमीटर रखना बेहतर होता है।

इस मॉडल में भी यह देखने की कोशिश कर सकते हैं कि इसमें राइज़िंग पाईप, कनेÏक्टग रॉड, पिस्टन वाल्व, चैक वाल्व कौन-से हिस्से हैं।

हैंडपंप की कुछ आम समस्याएं

1. वाशर खराब होना: सिलिंडर में इस्तेमाल होने वाले वाशर चमड़े या नायलॉन के होते हैं। ये वाशर बहुत जल्दी गल जाते हैं या नरम पड़ जाते हैं। इस स्थिति में पिस्टन और सिलिंडर वाल्व की दीवार के बीच की जगह खुली रह जाती है जिसमें से ऊपर की हवा सिलिंडर में घुसती है। ऐसा होने से सिलिंडर के अंदर कम दबाव का क्षेत्र नहीं बन पाता है और पिस्टन ऊपर की तरफ खींचने पर भी चैक वाल्व बंद रहता है। इस कारण पंप से पानी नहीं मिल पाता। इसलिए यदि वाशर गल गए हों तो नए वाशर लगाना चाहिए और चैक वाल्व के साथ लगी रबर की सीटिंग भी बदल देनी चाहिए।

वाशर बदलने के बाद सिलिंडर सही काम कर रहा है या नहीं, यह देखने के लिए सिलिंडर को पानी से भरी बाल्टी में डुबोकर पिस्टन चलाकर देखना चाहिए कि पिस्टन ठीक से काम कर रहा है या नहीं। सिलिंडर में कहीं से पानी तो नहीं चू रहा है?

2. कनेक्टिंग रॉड के जोड़ खुलना: हैंडपंप के अंदर सिलिंडर को पानी में उतारने के लिए काफी लंबी कनेÏक्टग रॉड लगानी पड़ती है। रॉड के छोटे-छोटे टुकड़ों को एक-दूसरे से चूड़ियों से कसकर लंबी कनेÏक्टग रॉड बनाई जाती है। कई बार किन्हीं दो रॉड के बीच की चूड़ियां ढीली पड़ने के कारण रॉड खुल जाती हैं। इस स्थिति में पिस्टन ऊपर-नीचे नहीं हो सकता और पंप से पानी आना बंद हो जाता है।

ऐसी स्थिति में पंप को खोलकर बोर में डाले हुए पाईप और रॉड को निकाल कर यह देखते हैं कि कौन-सी रॉड खुल गई है। उस रॉड को फिर से कस देते हैं। यदि रॉड की चूड़ी ही खराब हो गई हो तो नई चूड़ियां बना सकते हैं या नया रॉड लगा देते हैं।

3. पाईपों के जोड़ का खुलना: कभी-कभी पाईपों के अंदर की कनेÏक्टग रॉड सही लगी रहती है लेकिन राइज़िंग पाईप के जोड़ खुल जाते हैं। राईज़िंग पाईप के खुलने के दो कारण हो सकते हैं - एक तो राइज़िंग पाईप के टुकड़ों को आपस में ठीक से कसा न गया हो जिससे कुछ समय बाद पाईप का कोई जोड़ ढीला होकर निलल जाए। दूसरा कारण है कि लगातार पानी के बहाव के कारण जंग लगने से पाईप के जोड़ कमज़ोर हो जाते हैं।

इस स्थिति में खुले हुए जोड़ के नीचे जो भी पाईप है उनका सारा वज़न कनेÏक्टग रॉड और सिलिंडर पर आ जाता है इसलिए पंप का हैंडिल भारी चलने लगता है। हैंडिल चलाने पर पानी ऊपर तो उठता है लेकिन जहां से जोड़ खुल गया है वहां से लीक होकर बोर में गिरने लगता है। इन हालातों में पंप को ज़ोर लगाकर चलाने के बजाए पंप के खुले हुए जोड़ को कसना चाहिए या खराब हुए पाईप को बदलना चाहिए।

4. जल स्तर नीचे चला जाना: कभी-कभी बोर में जल स्तर सिलिंडर से भी नीचे चला जाता है। इस स्थिति में पिस्टन चलाने पर भी इतना दबाव नहीं बन पाता कि पानी ऊपर लाया जा सके। ऐसी हालत में एक ही काम हो सकता है कि कुछ और राइज़िंग पाईप जोड़कर हैंडपंप के सिलिंडर को जल स्तर तक पहुंचा दिया जाए। ताकि सिलिंडर पानी ऊपर फेंक सके। यहां इस बात का ध्यान रखना होगा कि यदि जल स्तर 180 फुट से नीचे चला गया है तो राइज़िंग पाईप जोड़ने से कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि पंप इस गहराई पर काफी मुश्किल से ही पानी देता है।

कई बार यह भी होता है कि पानी बोर में से ही उतर गया है यानी बोर सूख गया है। बोर के सूख जाने पर राइज़िंग पाईप डालने से भी काम बनने वाला नहीं है। अब तो बोर को और गहरा करना ही एक मात्र उपाय है।

5. सिलिंडर से पानी चूना: कई बार पंप में बाकी सब तो ठीक होता है लेकिन फिर भी पानी बहुत कम मिलता है। इस स्थिति में सिलिंडर को बाहर निकालकर देखना चाहिए कि सिलिंडर में लीकेज तो नहीं है? यदि हो तो सिलिंडर के वाल्व की रबर सीटिंग को बदलना होगा।

6. हत्था ढीला चलना: ऐसा तब होता है जब हत्थे के एक्सल के नट ढीले हो गए हों या बॉल-बेयरिंग खराब हो गया हो। नय बेयरिंग डालने पर हत्था ठीक चलने लगेगा।

हैंडपंप में आने वाली खराबियों को दूर करने की बात करते हुए यह तथ्य सामने आता है कि हैंडपंप का सही रख-रखाव करना बहुत कठिन काम नहीं है। महत्वपूर्ण बात यह है कि हैंडपंप का इस्तेमाल करने वाले लोगों को (खासकर वे लोग जो पेयजल हैंडपंप से प्राप्त करते हैं) यदि हैंडपंप की ज़रूरी तकनीकी जानकारी दी जाए और कुछ ज़रूरी औज़ार-पुर्ज़े मुहैया कराए जाएं तो लोग पेयजल की ज़रूरत के लिए आत्मनिर्भर हो सकते हैं।


राजेन्द्र बंधु - समाज प्रगति सहयोग, देवास में कार्यरत। सुनील कटियार - पेशे से इंजीरियर, नई दिल्ली में रह रहे हैं।