सवालीराम

सवाल : गूलर के फूल क्यों नहीं दिखते?

जवाब : गूलर में भी दूसरे पेड़-पौधों की तरह फूल लगते हैं लेकिन जिस तरह अन्य पेड़-पौधों में फूल किसी न किसी मौसम में दिखाई दे ही जाते हैं, गूलर में साल भर के दौरान कभी भी फूल नहीं दिखते। इसलिए यह सवाल अक्सर पूछा जाता है कि गूलर में जिसे हम फल समझते हैं वह फल नहीं बल्कि फूल का ही एक हिस्सा होता है। एकाएक तो हमारी बात पर यकीन नहीं होगा लेकिन खुद अपनी आंखों से देखेंगे तो ज़रूर यकीन करना ही पड़ेगा।

चलिए, सबसे पहले गूलर के एक-दो फूल ले आते हैं। यदि गूलर का पेड़ ढूंढने में परेशानी हो तो पीपल या बरगद के पेड़ के नीचे गिरे हुए फलों से भी काम चल जाएगा क्योंकि गूलर, पीपल तथा बरगद एक ही जाति के पेड़ होने के कारण इनमें लगभग एक ही तरह के फूल लगते हैं। इन फलों को ऊपरसे देखने पर ये गोल-गोल से दिखते हैं। फल की ऊपरी सतह को ध्यान से देखने पर एक छेद दिखाई देगा। इस छेद के बारे में बाद में बात करेंगे। अब गूलर के फलों को थोड़ा चीरकर देखिए। इसमें दानों जैसी जमावट दिखाई देगी। अंदर के हिस्से की जमावट को हैंडलेंस की मदद से देखने की कोशिश करें तो हमें पुंकेसर और स्त्रीकेसर दिखाई देंगे। इस चित्र से उन्हें पहचानने में मदद मिलेगी।

फूलों के बारे में आपने पढ़ा होगा कि आमतौर पर फलों में पुकेंसर और स्त्रीकेसर दोनों होते हैं लेकिन कुछ फूल ऐसे भी होते हैं जिनमें सिर्फ पुंकेसर पाए जाते हैं और कुछ फूलों में केवल स्त्रीकेसर ही होता है। जैसे गुड़हल या बेशरम के फूल में पुंकेसर और स्त्रीकेसर दोनों मिलते हैं। लौकी या पपीते के फूल में सिर्फ स्त्रीकेसर या सिर्फ पुंकेसर वाले फूल ही खिल सकते हैं। गूलर, बरगर, पीपल और अंजीर में सिर्फ पुंकेसर या सिर्फ स्त्रीकेसर वाले ढेर सारे फूल एक साथ खिले होते हैं। जिन फूलों में पुंकेसर और स्त्रीकेसर दोनों होते हैं उन्हें पूर्ण फूल कहते हैं। वे फूल जिनमें सिर्फ पुंकेसर हो उन्हें नर फूल और जिन फूलों में केवल स्त्रीकेसर हो उन्हें मादा फूल कहते हैं।

गूलर के फूल में ढेर सारे नर और मादा फूल एक गुच्छे की शक्ल में गुफानुमा गड्ढे के अंदर जमे होते हैं।

अब आपके मन में एक सवाल ज़रूर उठ रहा होगा कि इस बंद फलनुमा रचना के अंदर खिले फूलों का निषेचन कैसे होता होगा और फल कैसे बनता होगा? इस सवाल का जवाब आपके खुद के अवलोकन से मिल सकता है। याद कीजिए कभी गूलर, पीपल वगैरह के टपके हुए फल को तोड़कर देखा हो तो आपने ज़रूर उसके अंदर ज़िंदा या मरे हुए कीड़े देखे होंगे। अब सोचिए कि कीड़ा अंदर कैसे गया और क्यों गया होगा?

शुरुआत में ही बात हुई थी न कि गूलर के फूल के ऊपरी हिस्से में एक छेद होता है। इस छेद में से ही कोई भी कीड़ा वगैरह भोजन की तलाश में गुफानुमा छेद में घुस जाता है और उसके पैरों से चिपके परागकरण स्त्रीकेसर से चिपककर मादा फूल को निषेचित कर देते हैं। निषेचन के बाद मादा फूल पर महीन दानेदार फल लगते हैं। गूलर के पेड़ से पककर टपके हुए फलों के गूदेदार हिस्से को चीरकर इन दानों को आसानी से देखा जा सकता है। एक और मज़ेदार बात बताइएं कि पीपल, बरगद, गूलर और अंज़ीर में जिस गूदेदार हिस्से को हम खाते हैं वह फल नहीं बल्कि पुष्पासन या फूल का आधार होता है।

परत के नीचे रंगीन.....

सवाल : गिरगिट अपना रंग कैसे बदलता है। मनुष्य या दूसरे जानवर अपना रंग क्यों नहीं बदलते?

जवाब : गिरगिट की त्वचा की ऊपरी परत पारदर्शक होती है। इस परत के नीचे की कोशिकाओं में पीले, लाल तथा काले रंग के पदार्थ होते हैं जो एक स्थान से दूसरे स्थान तक जा सकते है। जब गिरगिट की कोशिकाएं सिकुड़ती हैं तो एक स्थान पर इन रंगीन पदार्थों की संख्या बढ़ जाती है। यह तो स्वाभाविक है न? जब एक स्थान पर ये पदार्थ बढ़ जाते हैं तो त्वचा का रंग काला हो जाता है। जब ये दाने शरीर में तितर-बितर होते हैं तो दूसरे रंग पैदा होते हैं। इस प्रकार कोशिकाओं के सिकुड़ने-फैलने से त्वचा का रंग बदलता है।

अब आप तो बोलेंगे ही कि ये कोशिकाएं किस प्रकार सिकुड़ती हैं भाई! इसका कारण है जब गिरगिट भाई को गुस्सा आता है या वह डर जाते हैं तो उनकी कोशिकाओं को सिकुड़ने का आदेश मिलता है। इनके सिकुड़ने से त्वचा का रंग काला हो जाता है, जैसा कि मैंने पहले ही बताया था। उत्तेजना के कारण एवं उसके डरने पर शरीर पर पीले धब्बे दिखते हैं। सूरज की गरम रोशनी में भी इसकी त्वचा का रंग काला हो जाता है। लेकिन अंधेरे में उसका रंग हल्का पीला हो जाता है। इस प्रकार गिरगिट में भय, गुस्सा, सूर्य का प्रकाश, तापमान आदि के कारण कोशिकाएं सिकुड़ती हैं, फैलती हैं अत- रंग बदलता है। वैसे रहा प्रश्न कि मनुष्य या दूसरे जानवर रंग क्यों नहीं बदलते? स्पष्ट है कि इनकी ही त्वचा की नीचे की कोशिकाओं में लाल, काले, पीले रंग के पदार्थ ही होते हैं। यदि किसी जीव की त्वचा पारदर्शक हो भी गई तो भी ये पदार्थ कहां से आएंगे? वैसे भी गिरगिट तो धीमी गति से चलता है अत: यह गुण तो उसे बहुत सहायता करता है।


(गूलर वाला सवाल रुस्तम कुमार चव्हाण, मलोथर, इटारसी ने और गिरगिट का सवाल माधवी पुरोहित, टोंकखुर्द, ज़िला देवास ने पूछा था)

इस बार का सवाल

सवाल : ये पोलियों कौन सी बीमारी है? यदि बच्चे को पोलियो कि दवाई नहीं पिलाते हैं तो बच्चा अपंग क्यों हो जाता है?

बाबूलाल, सुनील, कक्षा-7,
गांव अमलेटा, ज़िला रतलाम

ज़रा सिर तो खुजलाइए

प्लास्टिक की जीभी से एक मोटर बोट जैसी आकृति बनाइए और उसकी दुम में कपूर का टुकड़ा फंसाकर उसे पानी में धीरे-से छोड़िए? अरे! यह भागने क्यों लगा।