टार्डिग्रेड्स, जिन्हें अक्सर जलीय भालू भी कहा जाता है, आठ पैरों वाले सूक्ष्म जीव (साइज़ 0.5-1.5 मिलीमीटर) हैं जो अत्यंत कठिन परिस्थितियों में भी जीवित रहने के लिए जाने जाते हैं। इसमें स्वयं को अत्यधिक विकिरण से सुरक्षित रखना भी शामिल है जिस पर इन दिनों वैज्ञानिक गहरी समझ विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं। गौरतलब है कि टार्डिग्रेड्स विकिरण की इतनी खुराक सहन कर सकते हैं जो इंसानों के लिए जानलेवा मात्रा से 1000 गुना ज़्यादा है।
छह वर्ष पूर्व, शोधकर्ताओं ने चीन के हेनान के फुनिउ पर्वत से मॉस के नमूने एकत्र किए थे, जिसमें टार्डिग्रेड की एक नई प्रजाति हाइप्सिबियस हेनानेंसिस मिली थी। इसके जीनोम अनुक्रमण से पता चला कि इसमें 14,701 जीन हैं, जिनमें से लगभग 30 प्रतिशत जीन मात्र टार्डिग्रेड्स में ही पाए जाते हैं।
टार्डिग्रेड्स में विकिरण झेलने की क्षमता की क्रियाविधि का पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने हाइप्सिबियस हेनानेंसिस को अत्यधिक विकिरण (ग्रे पैमाने पर 200-2000) के संपर्क में रखा। इतना विकिरण मनुष्यों के लिए घातक होता। उन्होंने पाया कि ऐसा करने पर इनमें से 2801 जीन सक्रिय हो गए। ये जीन्स डीएनए की मरम्मत, कोशिका विभाजन और प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं से सम्बंधित थे। इनमें से एक जीन (TRID1) एक ऐसे प्रोटीन का निर्माण करवाता है जो क्षतिग्रस्त डीएनए की मरम्मत करता है। यह विकिरण से क्षतिग्रस्त कोशिकाओं के लिए एक महत्वपूर्ण कार्य है। इसके अलावा, शोध से पता चला कि टार्डिग्रेड में 0.5-3.1 प्रतिशत जीन पार्श्व जीन हस्तांतरण के ज़रिए आए हैं। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें जीन का हस्तांतरण लैंगिक माध्यम से नहीं बल्कि एक से दूसरी प्रजाति को अन्य तरीकों से होता है। ऐसा ही एक जीन है DODA1, जो संभवत: बैक्टीरिया से टार्डिग्रेड में आया है। यह टार्डिग्रेड को बीटालेन नामक रंजक का उत्पादन करने में सक्षम बनाता है जो ऑक्सीकरण-रोधी के रूप में कार्य करते हैं और ऐसे हानिकारक रसायनों को हटाते हैं जो कोशिकाओं में विकिरण के प्रभाव से बनते हैं।
इस अध्ययन के निष्कर्षों का महत्वपूर्ण उपयोग हो सकता है। जब शोधकर्ताओं ने मानव कोशिकाओं को टार्डिग्रेड के एक बीटालेन से उपचारित किया तो कोशिकाएं विकिरण के प्रति अत्यधिक प्रतिरोधी हो गईं। यह खोज कैंसर उपचार में उपयोग की जाने वाली विकिरण थेरेपी में सुधार की उम्मीद जगाती है, जिससे मानव कोशिकाएं विकिरण जोखिम को बेहतर ढंग से झेलने में सक्षम हो सकती हैं।
दीर्घकालिक अंतरिक्ष मिशनों के दौरान विकिरण अंतरिक्ष यात्रियों के लिए एक बड़ा जोखिम होता है। टार्डिग्रेड में विकिरण प्रतिरोध की क्रियाविधि की समझ अंतरिक्ष यात्रियों को हानिकारक अंतरिक्ष विकिरण से बचाने में मदद कर सकती है।
टार्डिग्रेड्स न केवल विकिरण बल्कि निर्जलीकरण, ठंड और भुखमरी जैसी चरम स्थितियों में भी जीवित रहने के लिए प्रसिद्ध हैं। इन स्थितियों को वे कैसे सहन करते हैं, इसका अध्ययन करके शोधकर्ताओं को और अधिक रहस्यों को उजागर करने की उम्मीद है। मसलन, इन तंत्रों को समझने से टीकों जैसे नाज़ुक पदार्थों की शेल्फ लाइफ में सुधार हो सकता है।
संभव है कि टार्डिग्रेड्स की अन्य प्रजातियां इसी तरह के रहस्य उजागर करने का इंतज़ार कर रही हों। टार्डिग्रेड्स की विभिन्न प्रजातियों की तुलना करके वैज्ञानिकों का लक्ष्य जीवित रहनेे की उन असाधारण रणनीतियों को समझना है जो इन नन्हे जीवों को इतना आकर्षक और मूल्यवान बनाती हैं। (स्रोत फीचर्स)