मिठाई कुछ लोगों की कमज़ोरी होती है। मिठाई देखते ही खुद को रोकना असंभव-सा हो जाता है। लगातार ज़्यादा चीनी वाला आहार मनुष्यों में कई समस्याओं को जन्म देता है जिनमें मोटापा और मधुमेह प्रमुख हैं। अत: स्वस्थ रहने और अपनी कोशिकाओं को सीमित मात्रा में ईंधन देने के लिए शरीर में रक्त शर्करा सांद्रता को नियंत्रित करना बहुत ज़रूरी है। रक्त में शर्करा की बहुत कम या बहुत अधिक मात्रा गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं का कारण बन सकती है। उच्च रक्त शर्करा मधुमेह की पक्की पहचान है।
ग्लूकोज़ कैसे मिलता है?
ग्लूकोज़ मुख्य रूप से हमारे भोजन और पेय पदार्थों (शर्बत और फलों के रस) में मौजूद कार्बोहाइड्रेट से प्राप्त होता है। ग्लूकोज़ ही हमारे शरीर की ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। जब आहारनाल में भोजन का पाचन होता है, तो भोजन में मौजूद कार्बोहाइड्रेट (शर्करा और स्टार्च) एक अन्य प्रकार की शर्करा में टूट जाता है, जिसे ग्लूकोज़ कहते हैं। यह ग्लूकोज़ रक्त वाहिनियों में छोड़ दिया जाता है।
रक्त का एक कार्य शरीर की सभी कोशिकाओं तक ग्लूकोज़ पहुंचाना है ताकि कोशिका ऊर्जा प्राप्त कर सकें। सामान्य भोजन के बाद बढ़ी हुई ग्लूकोज़ की मात्रा, इंसुलिन नामक हॉर्मोन द्वारा यकृत में जमा कर दी जाती है। किंतु यदि ऐसा न हो पाए तो रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ जाता है जिसे हम डायबिटीज़ या मधुमेह कहते हैं। लगातार लंबे समय तक (महीनों या सालों तक) उच्च रक्त शर्करा स्तर के कारण शरीर के अंगों (जैसे नेत्र, तंत्रिकाएं, गुर्दे और रक्त वाहिकाओं) को स्थायी नुकसान हो सकता है।
यदि हमारा रक्त शर्करा स्तर समान्य से नीचे चला जाता है तो शरीर में कंपकपी होती है और धड़कन तेज़ हो जाती है, और यदि शर्करा स्तर बहुत कम हो जाता है तो यह जीवन के लिए खतरनाक हो सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मस्तिष्क को ठीक से काम करने के लिए ग्लूकोज़ की निरंतर आपूर्ति की आवश्यकता होती है।
हाल ही में, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा नेचर कम्यूनिकेशंस एंड इवॉल्यूशन में प्रकाशित शोधपत्र में बताया गया है कि मीठे फल खाने वाले फलाहारी चमगादड़ों के रक्त में चीनी की सांद्रता अन्य स्तनधारी जंतुओं की तुलना में बहुत अधिक होती है। इतनी अधिक शर्करा से अन्य स्तनधारियों के मस्तिष्क को गंभीर क्षति पहुंचती है। वैज्ञानिक इस बात से हैरान थे कि उच्च रक्त शर्करा को संभालने के लिए फलाहारी चमगादड़ (न्यू वर्ल्ड लीफ-नोज़्ड बैट) में कैसे ग्लूकोज़ सहनशीलता विकसित हुई है। शोध के निष्कर्ष शरीर में उन अनुकूलनों की ओर इशारा करते हैं जो उनके चीनी युक्त आहार को हानिकारक बनने से रोकते हैं। 
न्यू वर्ल्ड लीफ-नोज़्ड बैट
न्यू वर्ल्ड लीफ-नोज़्ड बैट विशेष रूप से दक्षिण-पश्चिमी यूएस से लेकर उत्तरी अर्जेंटीना तक पाए जाने वाले चमगादड़ हैं। तीन करोड़ साल पहले, नियोट्रॉपिकल लीफ-नोज़्ड बैट के पूर्वज का आहार केवल कीट-पतंगे थे। तब से उद्विकास के दौरान इन चमगादड़ों के आहार में बदलाव हुए और कई अलग-अलग प्रजातियां विकसित हुई। उनमें से कुछ रक्ताहारी, मकरंदाहारी और फलाहारी जैसे विविध खाद्य स्रोतों पर जीवन यापन की विशेषज्ञता हासिल करने वाले हो गए हैं। 
चमगादड़ों ने अपने आहार में विविधता कैसे अपनाई यह जानने के लिए टीम ने कई वर्षों तक मध्य अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और कैरेबियन के जंगलों में फील्डवर्क किया। टीम ने 29 प्रजातियों के लगभग 200 जंगली चमगादड़ों को पकड़ा। टीम के सदस्य चमगादड़ों को पकड़ते और तीन प्रकार के आहार (कीट, मकरंद और फलाहार) में से कोई एक आहार चमगादड़ को एक बार देते थे, और उनके रक्त में ग्लूकोज़ के स्तर को नाप कर उन्हें छोड़ देते थे।
वैज्ञानिकों ने पाया कि चमगादड़ों के शरीर में चीनी को अंगीकार करने के विभिन्न तरीके मौजूद होते हैं। अवशोषण, संग्रहण और उपयोग की प्रक्रिया विभिन्न आहारों के कारण विशिष्ट हो गई है।
ग्लूकोज़ होमियोस्टेसिस एक ऐसी प्रक्रिया है जो शरीर की आंतरिक और बाहरी स्थितियों में परिवर्तन के बावजूद रक्त शर्करा के स्तर को स्थिर करती है। ग्लूकोज़ होमियोस्टेसिस का मुख्य कारण अग्न्याशय (पैंक्रियास) के आइलेट्स ऑफ लैंगरहैंस द्वारा इंसुलिन और ग्लूकागोन हार्मोन्स का स्राव है। मधुमेह में ग्लूकोज़ होमियोस्टेसिस गड़बड़ा जाता है। 
लीफ-नोज़्ड बैट की विभिन्न प्रजातियां ग्लूकोज़ होमियोस्टेसिस के लिए अनुकूलन के विविध तरीके दर्शाती हैं। इनमें आंतों की संरचना में परिवर्तन से लेकर रक्त से कोशिकाओं तक शर्करा पहुंचाने वाले वाहक प्रोटीन में आनुवंशिक परिवर्तन भी शामिल हैं। फलाहारी चमगादड़ों में रक्त शर्करा को कम करने के लिए इंसुलिन सिग्नलिंग मार्ग बेहतर हुआ है। दूसरी ओर मकरंदाहारी चमगादड़ों में उच्च रक्त शर्करा के स्तर को सहन कर सकने की काबिलियत विकसित हुई है। फलाहारी चमगादड़ों ने एक अलग तंत्र विकसित किया है जो इंसुलिन पर निर्भर नहीं लगता है। यद्यपि मकरंदाहारी चमगादड़ ग्लूकोज़ का प्रबंधन कैसे करते हैं, यह अभी भी जांच का विषय है फिर भी शोधकर्ताओं ने इस बाबत कई सुराग प्राप्त किए हैं जिनसे लगता है कि उनमें ग्लूकोज़ विनियमन के लिए वैकल्पिक चयापचय तरीका होता है।
भोजन से पोषक तत्वों के अवशोषण के लिए मकरंदाहारी चमगादड़ों की आंतों में अधिक सतह वाली कोशिकाएं पाई गईं। इसके अलावा, इनमें ग्लूकोज़ परिवहन तंत्र फलाहारी चमगादड़ों से भिन्न होता है जिसके लिए ज़िम्मेदार जीन निरंतर अभिव्यक्त होते हैं। फलाहारी चमगादड़ों के अग्न्याशय और गुर्दे की संरचना भी परिवर्तित हुई है जो उनके आहार को समायोजित करती है। अग्न्याशय में इंसुलिन का उत्पादन करने के लिए अधिक कोशिकाएं पाई गईं जो शरीर में रक्त शर्करा को कम करने में मददगार होती हैं। साथ ही ग्लुकागॉन हार्मोन - जो रक्त में ग्लूकोज़ के स्तर को बढ़ाता है - का उत्पादन करने के लिए भी कोशिकाएं अधिक थी। मकरंद पीने वाले चमगादड़ जैसी ही विशेषता हमिंगबर्ड पक्षी में भी देखी गई हैं जो फूलों का मकरंद पीते हैं। 
यह शोध न केवल विभिन्न आहार वाली चमगादड़ प्रजातियों की चयापचय विशेषताओं के बारे में एक बेहतर समझ विकसित करने में सहायक है, बल्कि आहार में अनुकूलन के कारण आंतों में संरचनात्मक परिवर्तन, जीनोम और प्रोटीन के संरचनात्मक अंतरों को भी उजागर करता है। इस शोध में संलग्न कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि चमगादड़ के रूप में उन्हें तो एक ‘हीरो' (मॉडल जंतु) मिल गया है जो भविष्य में मधुमेह का बेहतर इलाज खोजने में मददगार साबित होगा। (स्रोत फीचर्स)