सायकस पेड़ों की एक दुर्लभ प्रजाति है एनसेफोलार्टोस वुडी (Encepholartos Woodii)। सायकस के पेड़ खजूर के समान, धीमी गति से वृद्धि वाले, दीर्घजीवी तथा एक लिंगी होते हैं यानी नर और मादा पेड़ अलग-अलग। नर पेड़ पर नर जननांग एक सघन शंकुरूपी रचना में जमे रहते हैं, जिसे कोन या स्ट्रॉबिलस कहा जाता है। मादा पौधे में स्त्री जननांग शंकु समान रचना नहीं बनाते हैं। सायकस के पेड़ डायनासौर युग से पहले पृथ्वी पर काफी संख्या में फैले हुए थे। वनस्पति वैज्ञानिकों ने इन्हें वनस्पतियों के अनावृतबीजी या नग्नबीजी (जिम्नोस्पर्म) समूह में रखा है।
ई. वुडी के एकमात्र ज्ञात जंगली नर पेड़ की खोज डरबन वानस्पतिक उद्यान के क्युरेटर जॉन मेडले वुड द्वारा दक्षिण अफ्रीका के क्वानज़ुलु नताल के ओंगोये जंगल में 1895 में की गई थी। उस समय पेड़ की ऊंचाई 5 मीटर थी। तना मज़बूत काष्ठीय प्रकृति का था, जिसका आधार पर व्यास 90 से.मी. आंका गया था। तने के ऊपरी सिरे पर 100 से ज़्यादा पत्तियों का एक मुकुट या छत्रक था। पत्तियां गहरे हरे रंग की चमकदार तथा 150 से 160 से.मी. लंबी थीं। पत्तियों के इस मुकुट के बीच 60 से.मी. का नर शंकु (मेल कोन) लगा था। तने के आधार पर पुश्ता (बट्रेस) जड़ें  चारों ओर फैली थीं जो भारी तने को सहारा प्रदान करती थीं।
वर्तमान मे ई. वुडी के जो भी पेड़ विश्व के अलग-अलग भागों में लगे हैं, वे सभी ई. वुडी के मूल जंगली पेड़ के ही क्लोन हैं, जो क्लोनिंग से तैयार किए गए हैं। इस विधि से किसी जीव की आनुवंशिकी रूप से हूबहू समान प्रतिलिपि बनाई जाती है। तो ई. वुडी का केवल नर पेड़ उपलब्ध होने के कारण लैंगिक प्रजनन नहीं हो सकता, जिससे बीज बनें एवं नए पौधे जन्म लें।
इस अकेले नर पेड़ की वेदना को साउथेम्पटन विश्वविद्यालय की शोधार्थी लॉरा सिंटी ने समझा। लॉरा ने एक समूह बनाकर इसके मादा पेड़ को खोजने का कार्य वर्ष 2022 में शुरू किया था। इस कार्य में ड्रोन और कृत्रिम बुद्धि (ए.आई.) तकनीक का सहारा लिया गया है। समूह को विश्वास है कि कहीं तो इस अकेले नर पेड़ की वधू होगी एवं मिलेगी। इसके बाद नर एवं मादा पौधे की जोड़ी से बीज तैयार करने के प्रयास किए जाएंगे।
वनस्पति जगत में यह एक अद्भुत पहल है। (स्रोत फीचर्स)