यह बात महामारी वैज्ञानिकों के बीच चर्चा का विषय रही है कि भारत में कोविड-19 की वजह से होने वाली मौतें वैश्विक आंकड़ों को देखते हुए काफी कम रही हैं। कुछ लोगों का मत था कि यही वास्तविक स्थिति है जबकि कुछ अन्य लोगों का मानना था कि यह अल्प-रिपोर्टिंग का परिणाम है। अब एक प्रमुख महामारी वैज्ञानिक टोरोंटो विश्वविद्यालय के प्रभात झा ने ताज़ा विश्लेषण के आधार पर बताया है कि संभवत: भारत में कोविड-19 मृत्यु दर शेष दुनिया के समान ही थी और इसकी वजह से भारत में लगभग 30 लाख मौंतें हुई थीं जो भारत सरकार द्वारा जारी की गई संख्या से छह गुना अधिक है। यदि यह सही है तो अन्य देशों के आंकड़ों की भी जांच की जा सकती है। मृतकों की वैश्विक संख्या डबल्यूएचओ द्वारा अनुमानित मृतकों की संख्या 54.5 लाख से भी अधिक हो सकती है। यह विश्लेषण साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
2021 के अंत तक भारत ने सार्स-कोव-2 संक्रमण से लगभग 4,80,000 मौतों की सूचना दी है। यानी 340 मौतें प्रति दस लाख आबादी। यह अमेरिका में प्रति व्यक्ति कोविड-19 मृत्यु दर का लगभग सातवां भाग है। झा और उनकी टीम ने शुरुआती अध्ययन में माना था कि भारत में कोविड-19 से मरने वालों की संख्या असामान्य रूप से कम है लेकिन अधिक गहराई से जांच करने पर हैरतअंगेज़ परिणाम प्राप्त हुए।
टीम ने एक स्वतंत्र पोलिंग एजेंसी से डैटा प्राप्त किया जिसने देश भर में 1,40,000 लोगों का टेलीफोन सर्वेक्षण कर उनके परिवार में कोविड से मरने वाले लोगों की संख्या का पता लगाया था। उन्होंने सरकारी रिपोर्टों का भी विश्लेषण किया और अधिकारिक तौर पर पंजीकृत मौतों का पता लगाया। नतीजे में टीम ने पाया कि सितंबर 2021 तक भारत में प्रति दस लाख आबादी में 2300 से 2500 मौतें हुई थीं।
झा के अनुसार उनके शुरुआती निष्कर्ष संक्रमण की पहली लहर पर आधारित थे जो डेल्टा संस्करण की तुलना में कम घातक थी। 2021 की वसंत ऋतु में डेल्टा संस्करण के मामलों में सबसे अधिक उछाल आया। टीम ने उस समय शहरी क्षेत्रों की ओर अधिक ध्यान केंद्रित किया था जहां मृत्यु दर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में कम हो सकती है। वैसे भी देश में मृत्यु पंजीकरण का मामला महामारी से पहले भी काफी उबड़-खाबड़ रहा है। झा का मानना है कि कोविड-19 से मृत्यु के कम आंकड़ों के पीछे ये कारण हो सकते हैं लेकिन अभी काफी कुछ समझना बाकी है।
राजनीति भी एक कारण हो सकता है। झा का मानना है कि प्रशासन ने महामारी की वास्तविक तस्वीर को ओझल रखा है और कोविड से मृत्यु की परिभाषा के ज़रिए भी संख्या को दबाने का प्रयास किया गया है। एक मुद्दा यह भी है कि नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) के माध्यम से डैटा जारी नहीं किया गया जो नियमित रूप से जन्म और मृत्यु को ट्रैक करने के लिए भारत की आबादी के एक प्रतिशत का सर्वेक्षण करता है।
वैसे, प्रिंसटन युनिवर्सिटी के महामारी विज्ञानी और अर्थशास्त्री रमनन लक्ष्मीनारायण गणना में इस चूक को पूरी तरह से इरादतन नहीं मानते हैं। जैसे, एसआरएस डैटा तो 2018 से ही जारी नहीं किया गया है। वे यह भी मानते हैं कि लगभग हर देश कोविड-19 मृत्यु दर को कम दर्शाना चाहता है ताकि वैश्विक स्तर पर खुद को शर्मिंदगी से बचा सके। लिहाज़ा, लक्ष्मीनारायण भारत को अन्य देशों की तुलना में अलग नहीं देखते हैं। अलबत्ता, लक्ष्मीनारायण चैन्नै के एक अध्ययन के आधार पर लैंसेट में बता चुके हैं कि मौतें कम करके बताई गई हैं।
अशोका युनिवर्सिटी के वायरस वैज्ञानिक शहीद जमील के अनुसार झा की टीम का देशव्यापी अनुमान दो अन्य स्वतंत्र अध्ययनों से मेल खाता है। उनका कहना है कि आंकड़ों में इस चूक का खामियाजा अगली लहर की तैयारी में कमी के रूप में भुगतना पड़ा है।
डैटा और विश्लेषण पर काम करने वाली डबल्यूएचओ की सहायक महानिदेशक समीरा अस्मा के अनुसार यह अध्ययन काफी सुदृढ है और देश-विशिष्ट अनुमान तैयार करने के लिए इस दृष्टिकोण को अपनाने का सुझाव देती हैं। इसके मद्देनज़र डबल्यूएचओ भी अपने अनुमानों को अपडेट कर रहा है और जल्द ही उन्हें जारी करने की योजना बना रहा है।
ई-लाइफ में 6 महीने पहले प्रकाशित शोध पत्र के मुताबिक महामारी के पहले और उसके दौरान सभी कारणों से होने वाली मृत्यु दर को दुनिया भर में कम रिपोर्ट किया गया था। उदाहरण के लिए, रूस में आधिकारिक आंकड़ों से 4.5 गुना अधिक मौतें हुई हैं। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - February 2022
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