लोग सोशल मीडिया पर आजकल चॉकलेट के चित्र, फूलों के चित्र वगैरह भेजते रहते हैं। तो सिंगापुर के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की निमेशा रणसिंघे ने सोचा कि क्यों न चित्र की बजाय वास्तविक चीज़ ही भेजी जाए। उन्होंने जो प्रयोग किया उसका परिणाम यह निकला कि एक ठीक-ठाक शरबत सोशल मीडिया पर भेजा जा सका। अपने प्रयोग के परिणाम उन्होंने योकोहामा (जापान) में कॉनफरेंस ऑन टेंजिबल, एम्बेडेड एंड एम्बॉडीड इंटरेक्शन में प्रस्तुत किए हैं।
रणसिंघे और उनके दल ने एक आरजीबी (यानी लाल-हरा-नीला) रंग संवेदक और एक अम्लीयता-क्षारीयता संवेदक का उपयोग किया। आरजीबी संवेदक के ज़रिए रंग का अंदाज़ लगाया जा सकता है और अम्लीयता-क्षारीयता संवेदक का उपयोग खट्टापन पता करने में किया जा सकता है। इन दो सूचनाओंें को जोड़कर शरबती रंग और खट्टेपन को डिजिटल रूप दिया जा सकता है।
उन्होंने एक गिलास में रखे ताज़ा (वास्तविक) शरबत का रंग और खट्टापन इन संवेदकों के माध्यस से रिकॉर्ड कर लिया। ये आंकड़े सोशल मीडिया के ज़रिए दूसरे कमरे में रखे एक गिलास को भेजे गए। यह गिलास कोई साधारण गिलास नहीं था। गिलास में साफ पानी भरा था किंतु इसकी ऊपरी किनोर पर इलेक्ट्रोड्स लगे हुए थे और पानी में एलईडी लाइट लगी हुई थी। जैसे ही शरबत के रंग व खट्टेपन की सूचना इस गिलास तक पहुंची, कुछ वालंटियर्स से गिलास उठाकर पीने को कहा गया।
एलईडी लाइट्स ने रंग तो पैदा कर ही दिया था। तो पानी शरबत जैसा दिखने लगा था। रही-सही कसर किनोर के इलेक्ट्रोड्स ने पूरी कर दी। जैसे ही वालंटियर्स की जीभ किनोर को छूती, इलेक्ट्रोड से नपा तुला करंट उनकी जीभ में वही स्वाद पैदा कर देता जो शरबत में था। हां, इतना ज़रूर था वालंटियर्स को ‘शरबत’ पीते समय जीभ को गिलास की किनोर से छुआने की हिदायत पहले ही दे दी गई थी।
आम तौर पर देखा गया कि वालंटियर्स को शरबत थोड़ा ज़्यादा खट्टा लगा और उनके खट्टेपन का एहसास रंग पर भी निर्भर रहा।
ज़ाहिर है अभी यह तकनीक नई-नई है और इसके ज़रिए शरबत की पूरी तासीर भेजना संभव नहीं हो पाया है। मगर भारत के सेंट्रल साइन्टिफिक इंस्टØमेंट्स संगठन के अमोल भोंडेकर का मानना है कि यदि इस तरीके से स्वाद और रंग के अलावा उस शरबत की गंध भी भेजी जाए तो पार्टी पूरी हो जाएगी। वैसे सोशल मीडिया पर पार्टी करने के अलावा इस तरह के पेय पदार्थ का एक फायदा यह भी हो सकता है कि आप मीठे पदार्थों का लुत्फ इस बात की चिंता किए बिना उठा सकेंगे कि कहीं वह आपकी शुगर को तो नहीं बढ़ाएगा, क्योंकि उसमें शकर है ही नहीं, सिर्फ शकर का एहसास है। (स्रोत फीचर्स)
-
Srote - May 2017
- क्या समकक्ष समीक्षा से खराब विज्ञान की छंटाई संभव है?
- समकक्ष-समीक्षा के नए मॉडल्स
- 45 फुट ऊंचा मक्का का पौधा
- मक्का की उपज अधिक धूप के कारण बढ़ी है
- पहली रात की बेचैन नींद
- कहानी ड्युटेरियम की खोज की
- बच्चे के पेट से अविकसित भ्रूण निकाला गया
- वैज्ञानिक अनुसंधान में महिलाओं का प्रतिशत बढ़ा है
- विज्ञान की भाषा के रूप में अंग्रेज़ी
- विज्ञान सत्य की निरंतर खोज है
- आयुष पर भरोसे से पहले प्रमाण से इन्कार क्यों?
- कैंसर के फैलने में वसा की भूमिका
- दुभाषिया मशीनें उन्नत हुईं
- कुछ आवाज़ें तोतों को खिलंदड़ बनाती हैं
- इलेक्ट्रॉनिक टैटू आपके शरीर को स्मार्ट बनाएंगे
- पौधों की सुरक्षा में रेत
- पानी को आवेशित किया जा सकता है
- संस्कृति के फेर में परिंदों की शामत
- लाखों बच्चों का जीवन बचाने की संभावना
- कैसे प्रभावित करते है सौर धब्बे पृथ्वी को?
- मौसम की विकरालता नए चरम को छू रही है
- मकड़ियां मनुष्यों से दुगना खाती हैं
- रंगभेदी चश्मे
- गाड़ी के रंग और दुर्घटनाओं का सम्बंध
- पाई का मान दशमलव के बाद खरबों अंक तक
- सोशल मीडिया पर शरबत का चित्र नहीं, शरबत भेजिए