एस. अनंतनारायणन
दो-तिहाई धरती पर फैला पानी एक अद्भुत पदार्थ है। इसे दबाया नहीं जा सकता, यह पृथ्वी पर मौजूद लगभग हर चीज़ को घोल लेता है, जब पानी से बर्फ बनता है तो आयतन बढ़ता है और इसे माइक्रोवेव से गर्म किया जा सकता है। सचमुच पानी हरफनमौला है। कैलिफोर्निया व वॉशिंगटन के वैज्ञानिकों रिचर्ड बेल और जेम्स कोविन ने जर्नल ऑफ अमेरिकन केमिकल सोसायटी में बताया कि तापमान बदलने के साथ पानी विद्युतीय दृष्टि से आवेशित भी हो सकता है। इस मायने में इसके गुण क्रिस्टलों से मेल खाते हैं।
कुछ क्रिस्टलों का एक जाना-माना गुण है कि यदि उन्हें कुछ निश्चित दिशाओं में दबाया जाए या खींचा जाए, तो उनमें विद्युत आवेश विकसित हो जाता है। यह गुण इस वजह से होता है क्योंकि क्रिस्टल में ऋणात्मक व धनात्मक आयन होते हैं किंतु उनकी जमावट सममित यानी सिमेट्रिकल नहीं होती। इसलिए जब क्रिस्टल पर दबाव पड़ता है तो ये आवेश थोड़े अलग-अलग हो जाते हैं। इसकी वजह से जो विद्युत उत्पन्न होती है उसे पीज़ो-विद्युत कहते हैं। आवेशों का यह पृथक्करण इतना सूक्ष्म और इतनी तेज़ गति से होता है कि इसके आधार पर नए किस्म के माइक्रोफोन और अन्य श्रव्य उपकरण बनाए गए हैं।
इसी प्रक्रिया को उल्टी तरफ से भी देखा जा सकता है। जब किसी क्रिस्टल को आवेश के संपर्क में लाया जाता है तो वह फैलता और सिकुड़ता है। यानी वह कंपन करने लगता है। चूंकि ठोस क्रिस्टलों की एक सटीक कंपन गति होती है, इसलिए इनका उपयोग धारा की आवृत्ति को स्थिरता देने में किया जा सकता है। क्रिस्टलों के इस गुण के आधार पर सटीक घड़ियां बनाई गई हैं। इन्हें आप क्वार्ट्ज़ घड़ियों के नाम से जानते हैं। इन घड़ियों ने सभी जगह पुरानी कमानी यानी स्पिं्रग वाली घड़ियों का स्थान ले लिया है।
कुछ पदार्थों में यह गुण पाया जाता है कि उन्हें गर्म करने या ठंडा करने पर वे आवेशित हो जाते हैं। यह गुण पीज़ो-विद्युत से सम्बंधित है और यह क्वार्ट्ज़ जैसे उन सारे क्रिस्टलों में पाया जाता है जिनमें पीज़ो-विद्युत गुण होता है। इसे पायरो-विद्युत कहते हैं। यह गुण भी असममित क्रिस्टलों में ही पाया जाता है। जब क्रिस्टल को गर्म किया जाता है तो उसमें मौजूद धनावेश और ऋणावेश थोड़ी अलग-अलग दिशाओं में गति करते हैं। विद्युत आवेश की मौजूदगी इस बात पर असर डालती है कि पदार्थ के परमाणु किस तरह गति करेंगे।
पायरो-विद्युत भी अत्यंत संवेदनशील गुण है और तापमान में थोड़ा-सा भी फर्क मापन योग्य आवेश उत्पन्न कर सकता है। ऐसे पायरो-विद्युत गुण वाले पदार्थों की मदद से ही इंफ्रारेड डिटेक्टर्स बनाए जाते हैं जो काफी दूरी पर खड़े व्यक्ति के शरीर की गर्मी को भी भांप सकते हैं।
अब आते हैं पानी के अणु पर। पानी का अणु भी असममित होता है। इसमें दो हाइड्रोजन (H) परमाणु और एक ऑक्सीजन (O) परमाणु होते हैं। ये आपस में जुड़कर इस तरह व्यवस्थित होते हैं कि हाइड्रोजन के परमाणु ऑक्सीजन के दोनों ओर एक सीध में नहीं होते (चित्र में देखें)। इस व्यवस्था की वजह से पानी का अणु ध्रुवीकृत होता है (यानी उसमें धन और ऋण ध्रुव एक-दूसरे को पूरी तरह निरस्त नहीं करते)। यही कारण है कि पानी इतना अच्छा विलायक है।
और यही कारण है कि पानी पर माइक्रोवेव का असर पड़ता है। ध्रुवीय प्रकृति के कारण पानी का प्रत्येक अणु एक नन्हे छड़ चुंबक की तरह व्यवहार करता है। यदि पानी को एक ऐसे विद्युत क्षेत्र में रखा जाए जो तेज़ी से कंपन कर रहा हो तो पानी के अणु घूमने लगते हैं यानी तकनीकी भाषा में घूर्णन करने लगते हैं। चूंकि माइक्रोवेव की कंपन आवृत्ति पानी के अणुओं की साइज़ से मेल खाती है, इसलिए माइक्रोवेव के असर से पानी के अणु काफी तेज़ी से घूर्णन करने लगते हैं। इस वजह से जिस खाद्य पदार्थ को माइक्रोवेव ओवन में रखा गया है उसमें उपस्थित पानी के अणु घूर्णन करने लगते हैं और खाना गर्म हो जाता है। आपने ध्यान दिया होगा कि माइक्रोवेव ओवन में रखे खाली बर्तन गर्म नहीं होते। यहां तक कि बर्फ भी माइक्रोवेव ओवन में गर्म नहीं होता क्योंकि बर्फ में पानी के अणु गति करने को स्वतंत्र नहीं होते।
आम तौर पर जब पानी जमकर बर्फ बनता है तो उसके अणु बेतरतीबी से जम जाते हैं - वे क्वार्ट्ज़ क्रिस्टल के परमाणुओं के समान असममित व्यवस्था नहीं बनाते। किंतु चूंकि पानी के अणु ध्रुवीकृत होते हैं, इसलिए यह संभव है कि विद्युत क्षेत्र आरोपित करके उन्हें एक विशेष ढंग से जमाया जा सके। अमेरिकी वैज्ञानिक बेल, कोविन और उनके साथियों ने आवेशित परमाणुओं (यानी आयनों) को बर्फ की 1 माइक्रॉन मोटी चिप पर जमाया - यह काम उन्होंने शून्य डिग्री सेल्सियस से 113 डिग्री कम तापमान पर किया। सतह पर जो परमाणु जमे उन्होंने बर्फ के अणुओं को घुमाकर एक सीध में जमा दिया। फिर जब बर्फ को और ठंडा किया गया तो ध्रुवीकरण का यह असर फ्रीज़ हो गया। इतने कम तापमान पर बर्फ के अणुओं की तापीय हलचल इतनी थी कि तापमान में परिवर्तन के साथ विद्युतीय असर देखे जा सकें।
अब थोड़ा-सा ठंडा या गर्म करने पर उक्त बर्फ की दो सतहों के बीच वोल्टेज का अंतर नापना संभव हो गया। यह अंतर लगभग अन्य पायरो-विद्युत पदार्थों के बराबर था। हो सकता है कि पानी के अणुओं का यह गुण बाह्य अंतरिक्ष में उपयोगी साबित हो। इसकी वजह से बर्फीले कण एक-दूसरे को आकर्षित करेंगे और एक ढेर में जमा हो जाएंगे। हो सकता है कि बाह्य अंतरिक्ष के निम्न तापमान पर बर्फ के कणों के रासायनिक गुण भी बदल जाएं। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - May 2017
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