मनोहर चमोली  [Hindi PDF, 226 kB]

भाषा शिक्षण की बात हो तो हम शिक्षक अक्सर स्कूली किताबों पर पूरी तरह आश्रित नज़र आते हैं। ऐसा लगता है मानो इसके अलावा भाषा के अन्य कोई संसाधन ही न हों। आप अपने चारों ओर नज़र दौड़ाकर तो देखिए कई वैकल्पिक संसाधन मिल जाएँगे। रोज़ सुबह आपके घर आने वाले समाचार पत्र को ही ले लीजिए, यह भाषा शिक्षण का महत्वपूर्ण और रोचक संसाधन साबित हो सकता है।

पठ्यपुस्तक से इतर समाचार पत्र में प्रकाशित किसी कहानी से ही नहीं बल्कि उसमें प्रकाशित किसी भी समाचार से हम भाषा शिक्षण कर सकते हैं, उदासीन कक्षा को रोचक बना सकते हैं। विमर्श के लिए हम यहाँ एक बाल पत्रिका में प्रकाशित लोक-कथा ‘अंगूर खट्टे हैं’ का अंश ले रहे हैं। यहाँ कहानी की प्रारम्भिक पंक्तियाँ दी जा रही हैं।
‘लाली लोमड़ी जंगल में घूम रही थी, तभी उसे एक जिराफ अंगूर तोड़ता दिखाई दिया। लाली उसके पास गई। जिराफ ने लाली को देखा। “अंगूर खट्टे हैं,” कहकर वह मुस्कुराकर चला गया। “हुँह, मेरा मज़ाक उड़ा रहा था!” लाली गुस्से में बड़बड़ाई।’
कहानी का उपरोक्त अंश मात्र 42 शब्दों का है। लेकिन हम इतने से अंश से भी भाषा के विस्तार में जा सकते हैं। इसके ज़रिए विभिन्न विषयक छोटी-बड़ी बातें, चर्चा, गृह-कार्य, बातचीत और साथ ही साथ लेखन भी कराया जा सकता है।
उपरोक्त अंश को हम किसी कक्षा-विशेष से बाँधकर भी नहीं देखना चाहते। कक्षा के स्तर को ध्यान में रखते हुए बातचीत, चर्चा और शिक्षण को व्यापक या सूक्ष्म किया जा सकता है। बहरहाल हम प्राथमिक तथा माध्यमिक कक्षाओं के भाषा शिक्षण को केन्द्र में रखकर चर्चा को विस्तार देने की कोशिश करेंगे।

भाषा और अन्य विषय
हम सभी जानते हैं कि अध्यापक कक्षा-कक्ष की और शिक्षण व्यवस्था की धुरी हैं। वह चाहे तो सभी विषयों का शिक्षण भाषा की कक्षा में करा सकता है।
शिक्षकों को यह बात याद रखनी चाहिए कि जब कोई औसत बच्चा पहले दिन स्कूल आता है तो वह कोरा नहीं होता। उसके पास लगभग पाँच हज़ार शब्दों की स्मृति, उनके प्रति अपना नज़रिया, उनके अर्थों के साथ मौजूद होता है। वह मोटे तौर पर उनके रूप, गुण, स्वभाव से भी परिचित होता है। मसलन वो गरम तवे और गरम इस्त्री में फर्क को जानता है। एक बार छूने से मिले उनके अनुभव से वह परिचित है। वह चाय, मिर्ची, दूध और दवाई की गन्ध को स्वादानुसार पहचानता है। वह कटोरी, गिलास, चम्मच और थाली को उनके आकार के हिसाब से पहचानता भी है और जानता भी है कि किस पात्र को किस काम में लाया जाता है। मसलन, अगर आप चाय के लिए बरतन माँगेंगे तो वह गिलास या कप ही लाएगा, थाली नहीं। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि बच्चे के लिए भाषा शिक्षण कक्षा का हिस्सा बाद में बनता है, पहले वह घर में ही दुधबोली से अपनी भाषा का नज़रिया बनाने लगता है।
अब शिक्षक पर है कि वो कोर्स की किताबी दुनिया से बाहर निकलकर, भाषा शिक्षण के तकनीकी पक्ष को छोड़ते हुए बच्चे की भाषाई योग्यता में विकास कैसे करे।

उदाहरण-1
उदाहरण के तौर पर हम कहानी के उसी छोटे-से अंश के पहले वाक्य से शु डिग्री करते हैं।
‘लाली लोमड़ी जंगल में घूम रही थी, तभी उसे एक जिराफ अंगूर तोड़ता दिखाई दिया।’
इस अंश के ज़रिए हम चर्चा के विविध आयाम खोल सकते हैं जिसमें अलग-अलग विषयों को शामिल किया जा सकता है।
* जैसे कि, जानवरों के क्या-क्या नाम रखे जा सकते हैं। बच्चे जो भी नाम बताएँगे, सबको सही माना जाना चाहिए।
* लोमड़ी एक मांसाहारी जीव है। और कौन-कौन से मांसाहारी जीव होते हैं? यह चर्चा बहुत विस्तार ले सकती है।
* इसके साथ जोड़कर हम घूँट से पानी पीने वाले और जीभ से चपड़-चपड़ कर पानी पीने वाले जानवरों को पहचानने का प्रयास कर सकते हैं।
* बच्चे यहाँ जीव विज्ञान के साथ-साथ पर्यावरण पर भी अपनी समझ बढ़ाते नज़र आते हैं।
* ‘जंगल’ शब्द पर तो असीमित चर्चा और गतिविधियाँ कराई जा सकती हैं।
* जिराफ की चर्चा कर बच्चों को कल्पना की दुनिया की सैर कराई जा सकती है। और इसी बहाने चींटी से लेकर डायनासॉर तक की चर्चा की जा सकती है।
* विज्ञान और पर्यावरण से जोड़ते हुए जीवों की शारीरिक बनावट पर भी असीमित बातें हम उदाहरण समेत कर सकते हैं।
* इसी एक वाक्य के इर्द-गिर्द हम बच्चों को सम्बन्धित चित्रों का संकलन करने और उन्हें बनाने की दिशा में ले जा सकते हैं।

व्याकरण-मुक्त लेखन
आज भाषा शिक्षण को व्याकरण और परिभाषा के बन्धनों से मुक्त करने की ज़रूरत है। प्राथमिक कक्षाओं तक बच्चों को व्याकरण के तकनीकी पक्षों से मुक्त ही रखना चाहिए। उच्च कक्षाओं में तो ज़रूरत पड़ने पर वे भाषा के इन पहलुओं से परिचित होंगे ही। शुरुआत में बच्चों को भाषा के प्रयोग की खुल कर आज़ादी देने की ज़रूरत है। बाद में वे जान ही लेंगे कि बहुधा बातचीत में, लेखन में, वे व्याकरण का प्रयोग करते ही आए हैं।
* हम बच्चों को नए वाक्य लिखने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। जैसे जंगल, अंगूर, दिखाई के सहारे बच्चों को कहा जा सकता है कि वे दो-दो वाक्य बनाएँ और लिखें। सामूहिक रूप से भी श्यामपट्ट पर इसे विस्तार दिया जा सकता है।
* इसी अंश में विराम चिन्ह भी आए हैं, जिनकी सहायता से विराम चिन्हों की जानकारी और अभ्यास कराया जा सकता है। स्वाद और भाव पर भी व्यापक चर्चा कराई जा सकती है।
* अंगूर को फलों के साथ जोड़ते हुए बच्चों के आसपास पाए जाने वाले फलों की सूची बनवाई जा सकती है। उन्होंने जिन वृक्षों को देखा है, वे उनके नाम लिख सकते हैं।
* वे जिन जानवरों को रोज़मर्रा के जीवन में देखते हैं उनके बारे में भी लिखवाया जा सकता है।
* रचनात्मकता की तो कोई सीमा ही नहीं है। लाली लोमड़ी और जिराफ को आधार बनाकर संवाद शैली में बच्चों से बहुत कुछ लिखवाया जा सकता है। अभिनय करवाया जा सकता है।
* कक्षा को कुछ समूह में बाँटकर इसी अंश को आधार मानकर नई कहानी लिखवाई जा सकती है। समूह कक्षा के आधार पर छोटे-बड़े हो सकते हैं।
हमने यहाँ बातचीत को जो विस्तार दिया है, वह सिर्फ एक छोटे-से अंश भर से हो पाया है। सम्भावनाएँ असीमित हैं, बस ज़रा-सी रचनात्मक सोच के साथ एक कदम बढ़ाने की ज़रूरत है।

उदाहरण-2
समाचार पत्र से भाषाई विस्तार की असीम सम्भावनाओं के साथ यहाँ एक सिंगल कॉलम की खबर दी जा रही है।
‘दिसम्बर तक तैयार हो सकता है गंगा यमुना एक्शन प्लान’
नई दिल्ली। गंगा और यमुना की सफाई के लिए एक्शन प्लान इस साल के आखिर तक तैयार हो सकता है। केन्द्र सरकार ने सोमवार को राज्यसभा में यह जानकारी दी। एक सवाल के जवाब में जल संसाधन राज्य मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने कहा, सम्बन्धित पक्षों से विचार-विमर्श के बाद दिसम्बर तक गंगा-यमुना की सफाई का खाका बनकर तैयार हो जाएगा। राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की शुरुआत से अब तक गंगा जिन राज्यों से गुज़रती है, उन राज्यों के 48 शहरों में इससे सम्बन्धित 76 योजनाओं के लिए 5004.19 करोड़ रुपए मंज़ूर किए जा चुके हैं। गंगवार ने कहा, ‘इस मंज़ूरी के बाद केन्द्र द्वारा 1,229.87 करोड़ जारी किए गए जिसमें राज्यों का हिस्सा भी शामिल है। परियोजना को लागू करने के लिए मार्च, 2014 तक कुल 838.76 करोड़ व्यय किए गए।’(एजेंसी)
आइए, उपरोक्त खबर पर भाषा शिक्षण के लिए सम्भावनाएँ तलाशते हैं।

इस गद्यांश से हम मौटे तौर पर मौखिक अभिव्यक्ति और लिखित अभिव्यक्ति के लिए चर्चा, समूह चर्चा और कुछ सवालों के जवाब छात्रों से चाहेंगे। यह भी सम्भव है कि हम छात्रों से कहें कि इस समाचार को ध्यान से पढ़ने के बाद इसे अपने शब्दों में लिखें। छात्रों को इसमें बड़ा आनन्द आता है। वे समाचार को अपने क्षेत्र की स्थिति से जोड़कर देखते हैं, और लिखते भी हैं। बहरहाल उपरोक्त समाचार से चर्चा के लिए निम्न बिन्दु उभारे जा सकते हैं। हम इन्हें विषय के बन्धन से मुक्त करते हुए भी चर्चा करा सकते हैं।
* भारत एवं विश्व की नदियों की सूची बनाइए।
* अपने क्षेत्र में स्थित तालाब, पोखर, ताल, झील या नदियों के नामों का संकलन कीजिए।
* बड़ों से पता कीजिए और लिखिए कि प्राकृतिक स्रोत सूख क्यों रहे हैं।
* आखिर नदियाँ दूषित हो क्यों रही हैं और उनकी सफाई के क्या मायने हैं?
* खबर में आए विदेशी शब्दों की सूची बनाइए। उनकी व्याख्या भी कीजिए।
* गंगा किन-किन राज्यों से गुज़रती है? मानचित्र की सहायता से अपनी पुस्तिका में संकलित कीजए। उनकी राजधानियों के नाम भी लिखिए।
* क्या गंगा के लुप्त होने से गंगा के तट पर स्थित शहरों पर कुछ प्रभाव पड़ेगा?
* इकाई, दहाई, सैकड़ा, हज़ार के बाद आप कहाँ तक के अंक लिख सकते हैं?
* उपरोक्त समाचार में आए कितने शब्दों के विलोम लिख सकते हैं?
श्व् उपरोक्त समाचार में आए कितने शब्दों के एक या दो-दो पर्यायवाची लिख सकते हैं?
* इस समाचार में ‘गंगा-यमुना’ शब्द योजक है। वहीं साथ-साथ शब्द भी योजक है। लेकिन दोनों में क्या अन्तर है? ऐसे ही अन्तर वाले कितने शब्दों का संकलन कर सकते हैं?
ये गतिविधियाँ समय चाहती हैं। इन्हें एक-दो कालखण्डों में निपटाना ठीक न होगा। इस गतिविधि को कराना उतना महत्वपूर्ण नहीं है, बस हमें ध्यान रखना होगा कि छात्रों द्वारा किए गए काम का आकलन महज़ भाषा विस्तार की दृष्टि से किया जाए तो यह बहुत उपयोगी है। हम इससे छात्रों का आंकलन न करें और न ही मूल्यांकन-सा व्यवहार करें। यदि हम ऐसा कर पाते हैं तो अखबार पढ़ने में छात्रों की रुचि जागेगी और इसके साथ प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से उनकी भाषा भी समृद्ध होगी। एक अध्यापक को इससे ज़्यादा और क्या चाहिए?


मनोहर चमोली: शिक्षा विभाग, विद्यालयी शिक्षा, उत्तराखण्ड में भाषा शिक्षक हैं। कहानियाँ लिखते हैं। कई कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। साहित्य के अनेक राजकीय पुरस्कारों से सम्मानित। पौड़ी (गढ़वाल) में निवास।
सभी चित्र व सज्जा: कनक शशि: स्वतंत्र कलाकार के रूप में पिछले एक दशक से बच्चों की किताबों के लिए चित्रांकन कर रही हैं। एकलव्य, भोपाल के डिज़ाइन समूह के साथ कार्यरत।